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आपराधिक कानून
IPC की धारा 153A
« »22-Mar-2024
शिव प्रसाद सेमवाल बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य "भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 153A को लागू करने के लिये दो या दो से अधिक समूहों या समुदायों की उपस्थिति आवश्यक होती है।" न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने शिव प्रसाद सेमवाल बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य के मामले में माना है कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 153A को लागू करने के लिये दो या दो से अधिक समूहों या समुदायों की उपस्थिति आवश्यक होती है।
शिव प्रसाद सेमवाल बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, शिकायतकर्त्ता ने सावरा फाउंडेशन नाम से एक न्यास बनाया था, जिसके वह संस्थापक हैं और न्यासी बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं।
- शिकायतकर्त्ता ने उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री द्वारा मातृ आश्रय(एक संग्रहालय) के शिलान्यास समारोह की योजना बनाई थी। यह कार्यक्रम 20 मार्च, 2020 के लिये निर्धारित किया गया था।
- शिकायतकर्त्ता को ब्लैकमेल करने के लिये, अपीलकर्त्ता ने ई-समाचार पत्र पर्वतजन, संस्करण दिनांक 17 मार्च, 2020 में एक समाचार लेख प्रकाशित किया जिसमें यह दर्शाया गया कि जिस भूमि पर शिलान्यास किया जाना प्रस्तावित था, वह सरकारी भूमि थी जिस पर शिकायतकर्त्ता द्वारा अवैध रूप से कब्ज़ा/अतिक्रमण किया गया था। शिकायतकर्त्ता ने आरोप लगाया कि उसके निमंत्रण को भी अपमानजनक समाचार लेख में प्रकाशित किया गया था।
- अपीलकर्त्ता ने पूरी तरह से निर्दोष होने का दावा करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक दाण्डिक रिट याचिका दायर की और दलील दी कि IPC की धारा 153A के तहत दण्डनीय अपराधों के लिये FIR में लगाए गए आरोपों से किसी भी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा नहीं होता है।
- उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ता द्वारा दायर दाण्डिक रिट याचिका को खारिज़ कर दिया।
- इसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई जिसे बाद में न्यायालय ने अनुमति दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि IPC की धारा 153A की भाषा को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि इस तरह के अपराध का गठन करने के लिये, अभियोजन पक्ष को यह मामला सामने लाना होगा कि अभियुक्त के लिये कहे गए 'बोले गए' या 'लिखित' शब्दों ने धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता या मनमुटाव उत्पन्न किया है, या यह आरोप लगाया गया कि ये कृत्य सद्भाव बनाए रखने के लिये प्रतिकूल थे।
- आगे यह माना गया कि IPC की धारा 153A को लागू करने के लिये, दो या दो से अधिक समूहों या समुदायों की उपस्थिति आवश्यक होती है, जबकि वर्तमान मामले में, समाचार लेख में ऐसे किसी भी समूह या समुदायों का उल्लेख नहीं किया गया था।
IPC की धारा 153A क्या है?
परिचय:
- IPC की धारा 153A में धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बनाए रखने के लिये प्रतिकूल कार्य करने पर दण्ड का प्रावधान है।
- यह प्रावधान मूल दण्ड संहिता में नहीं था और इसे वर्ष 1898 में पेश किया गया था।
विधिक प्रावधान:
- इस धारा में कहा गया है कि-
(1) जो कोई—
(a) बोले 'गए या लिखे 'गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय या भाषायी या प्रादेशिक समूहों, जातियों या समुदायों के बीच असौहार्द अथवा शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएँ, धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर संप्रवर्तित करेगा या संप्रवर्तित करने का प्रयत्न करेगा, अथवा
(b) कोई ऐसा कार्य करेगा, जो विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है और जो लोक- प्रशांति में विघ्न डालता है या जिससे उसमें विघ्न पड़ना संभाव्य हो, अथवा
(c) कोई ऐसा अभ्यास, आंदोलन, कवायद या अन्य वैसा ही क्रियाकलाप इस आशय से संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किये जाएँगे या यह संभाव्य जानते हुए संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किये जाएँगे, अथवा ऐसे क्रियाकलाप में इस आशय से भाग लेगा कि किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किया जाए या यह संभाव्य जानते हुए भाग लेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किये जाएँगे और ऐसे क्रियाकलाप से ऐसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्यों के बीच, चाहे किसी भी कारण से, भय या संत्रास या असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है या उत्पन्न होनी संभाव्य है, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
उद्देश्य:
- इस धारा का उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों को दण्डित करना है जो किसी विशेष समूह या वर्ग के धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि या किसी धर्म के संस्थापकों और पैगंबरों को अकारण अपमानित करते हैं या उन पर हमला करते हैं।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 196:
- BNS की धारा 196 उन्हीं चिंताओं को संबोधित करती है जो IPC की धारा 153A के तहत संबोधित की गई हैं, लेकिन प्रचार के साधन के रूप में इलेक्ट्रॉनिक संचार को शामिल करने के लिये संचार विधियों के व्यापक स्पेक्ट्रम को शामिल किया गया है।