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आपराधिक कानून

IPC की धारा 174 A

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 10-Jan-2024

सुमित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

"IPC की धारा 174 A के तहत अपराध का संज्ञान केवल उस न्यायालय की लिखित शिकायत के आधार पर लिया जा सकता है जिसने कार्यवाही शुरू की थी"

न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुमित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में माना है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 174 A के तहत अपराध का संज्ञान केवल उस न्यायालय की लिखित शिकायत के आधार पर लिया जा सकता है जिसने कार्यवाही शुरू की थी और पुलिस के पास ऐसे मामलों में FIR दर्ज करने की कोई शक्ति नहीं होती है।

सुमित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में पुलिस की ओर से वर्तमान याचिकाकर्त्ताओं के खिलाफ IPC की धारा 395 और 412 के तहत चार्जशीट दाखिल की गई थी।
  • संबंधित मजिस्ट्रेट ने भी उपर्युक्त चार्जशीट पर संज्ञान लिया और उसके बाद याचिकाकर्त्ताओं के खिलाफ गैर-ज़मानती वारंट जारी किया गया।
  • इसके बाद याचिकाकर्त्ताओं के खिलाफ IPC की धारा 174A के तहत FIR दर्ज की गई।
  • वर्तमान याचिका याचिकाकर्त्ता द्वारा उपर्युक्त FIR को चुनौती देते हुए दायर की गई है।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका मंज़ूर करते हुए FIR रद्द कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि न्यायालय स्वयं पुलिस रिपोर्ट पर आधारित IPC की धारा 174A के तहत अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता है, फिर IPC की धारा 174A के तहत FIR दर्ज करना व्यर्थ है। इसलिये, कार्यवाही केवल उस न्यायालय से लिखित शिकायत के आधार पर शुरू की जा सकती है जिसने कार्यवाही शुरू की थी।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195(1)(a)(i) IPC की धारा 174A के तहत लिखित शिकायत के आधार को छोड़कर अपराध का संज्ञान लेने और फिर उसे दर्ज करने की अनुमति देने पर रोक लगाती है, तो FIR दर्ज करने की अनुमति देना संबंधित व्यक्ति के साथ न्याय का मज़ाक होगा।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

IPC की धारा 174A:

  • यह धारा वर्ष 2005 में पेश की गई थी और निर्दिष्ट स्थान तथा समय पर घोषित अपराधियों की गैर-उपस्थिति को अपराध मानती है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उद्घोषणा की अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट स्थान और विनिर्दिष्ट समय पर हाज़िर होने में असफल रहता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या ज़ुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा और जहाँ उस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी घोषणा की गई है जिसमें उसे उद्घोषित अपराधी के रूप में घोषित किया गया है, वहाँ वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और ज़ुर्माने का भी दायी होगा।
  • मोती सिंह सिरकरवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2015) मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि IPC की धारा 174A के तहत अपराध गैर-संज्ञेय और ज़मानती है।
  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 207 इस उपबंध से संबंधित है।

IPC की धारा 395:

  • यह धारा डकैती के लिये सज़ा से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो भी कोई डकैती करेगा, तो उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिये कठिन कारावास जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दंडित किया जाएगा, और ज़ुर्माने से भी दंडित किया जाएगा।
  • डकैती के अपराध को IPC की धारा 391 के तहत परिभाषित किया गया है, जबकि इसे BNS की धारा 308 के तहत समान रूप से परिभाषित किया गया है।
    • इसमें कहा गया है कि जब पाँच या अधिक व्यक्ति मिलकर डकैती करते हैं या करने का प्रयास करते हैं, या जहाँ डकैती करने या करने का प्रयास करने वाले व्यक्तियों की पूरी संख्या, और ऐसे कार्य में उपस्थित एवं सहायता करने वाले व्यक्तियों की संख्या पाँच या अधिक होती है, तो प्रत्येक ऐसा करने, प्रयास करने या सहायता करने वाले व्यक्ति को डकैती करने वाला कहा जाता है।

IPC की धारा 412:

  • यह धारा डकैती के दौरान चुराई गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करने से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई ऐसी चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखे रखेगा, जिसके कब्ज़े के विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डकैती द्वारा अंतरित की गई है, अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके संबंध में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डाकुओं की टोली का है या रहा है, ऐसी संपत्ति, जिसके विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और ज़ुर्माने से भी दंडनीय होगा।

CrPC की धारा 195(1)(a)(i):

  • इस धारा में कहा गया है कि कोई भी न्यायालय संबंधित लोक सेवक या किसी अन्य लोक सेवक, जिसके वह प्रशासनिक रूप से अधीनस्थ है, की लिखित परिवाद के अलावा IPC की धारा 172 से 188 (दोनों सम्मिलित) के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 215 इस उपबंध से संबंधित है।