होम / करेंट अफेयर्स
आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 20 23 की धारा 184
« »30-Jul-2024
अजय कुमार बेहरा बनाम कर्नाटक राज्य “विवेचना एवं विचारण के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रियाएँ सदैव पीड़िता के प्रति केंद्रित होनी चाहिये ” न्यायमूर्ति एम.जी. उमा |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति एम.जी.उमा की पीठ ने कहा कि विवेचना अधिकारी बलात्संग पीड़िता की जाँच आवश्यक रूप से एक महिला पंजीकृत चिकित्सक द्वारा या उसके सानिध्य में करेंगे।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अजय कुमार बेहरा बनाम कर्नाटक राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
अजय कुमार बेहरा बनाम कर्नाटक राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- इस मामले में आरोपी याचिकाकर्त्ता ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439 के अधीन ज़मानत देने की मांग की है।
- आरोपी के विरुद्ध दर्ज अपराध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 307 एवं धारा 376 के अधीन दण्डनीय हैं।
- न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या आरोपी CrPC की धारा 439 के अधीन ज़मानत का अधिकारी है।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- ज़मानत का अस्वीकरण
- उच्च न्यायालय ने इस मामले में आरोपी को ज़मानत देने से मना कर दिया।
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता को दो मामूली चोटें आई थीं, जो घटना के दौरान याचिकाकर्त्ता पर हमला करने के पीड़ित के बयान की पुष्टि करती हैं।
- प्रक्रियागत कमियों की पहचान
- ज़मानत देने से मना करते हुए न्यायालय ने बलात्संग पीड़ितों की चिकित्सा जाँच की प्रक्रिया में कमियाँ पाईं।
- न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 53 महिला अभियुक्तों के लिये सुरक्षा उपाय प्रदान करती है, जिसके अधीन महिला चिकित्सक द्वारा या उसकी सानिध्य में जाँच की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि CrPC की धारा 164A , जो बलात्संग पीड़ितों की चिकित्सा जाँच से संबंधित है, में समान सुरक्षा का अभाव है।
- विधायी निरीक्षण
- न्यायालय ने पाया कि इन प्रावधानों को इस विसंगति को संबोधित किये बिना भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में शब्दशः कॉपी कर दिया गया है।
- इस चूक के कारण 18 वर्ष से अधिक आयु की यौन उत्पीड़न पीड़िताओं के साथ बहुत अन्याय होता है।
- निजता का अधिकार
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि महिला अभियुक्तों के लिये निजता के अधिकार को मान्यता दी जाती है, तो पीड़ितों को इस विशेषाधिकार से वंचित करने का कोई बहाना नहीं है।
- न्यायालयीय निर्देश
- न्यायालय ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एवं राज्य लोक अभियोजक को निर्देश दिया कि:
- BNSS की धारा 184 में उपयुक्त संशोधनों का सुझाव दीजिये।
- सभी हितधारकों के लिये सार्थक संवेदीकरण कार्यक्रम लागू करें।
- यह सुनिश्चित करें कि BNSS में संशोधन होने तक बलात्संग पीड़िताओं की चिकित्सा जाँच महिला पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी के सानिध्य में की जाए।
- यह सुनिश्चित करें कि अस्पताल एवं चिकित्सा व्यवसायी कंप्यूटर द्वारा तैयार या सुपाठ्य रूप से लिखे गए घाव प्रमाण-पत्र/चिकित्सा रिपोर्ट प्रदान करें।
- तीन महीने के अंदर प्रक्रिया के पालन की रिपोर्ट दें।
- न्यायालय ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एवं राज्य लोक अभियोजक को निर्देश दिया कि:
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 184 क्या है?
- BNSS की धारा 184 में बलात्संग की पीड़िता की मेडिकल जाँच का प्रावधान है।
- यह CrPC की धारा 164 A में शामिल था।
- CrPC की धारा 164 A एवं BNSS की धारा 184 के मध्य तुलनात्मक अध्ययन निम्न प्रकार है:
धारा 184 |
धारा 164 A |
(1) जहाँ, उस प्रक्रम के दौरान, जब बलात्संग करने या बलात्संग करने का प्रयास करने का अपराध विवेचना के अंतर्गत है, उस स्त्री के शरीर की, जिसके साथ बलात्संग का अभिकथन किया गया है या बलात्संग कारित करने का प्रयास किया गया है, किसी चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा जाँच कराने का प्रस्ताव है, वहाँ ऐसी जाँच सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल में नियोजित रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगी तथा ऐसे व्यवसायी की अनुपस्थिति में ऐसी स्त्री की या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिये सक्षम व्यक्ति की सहमति से किसी अन्य रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगी और ऐसी स्त्री को ऐसे अपराध के किए जाने से संबंधित सूचना प्राप्त होने के समय से चौबीस घंटे के अंदर ऐसे रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी के पास भेजा जाएगा। |
(1) जहाँ, उस प्रक्रम के दौरान, जब बलात्संग करने या बलात्संग करने का प्रयास करने का अपराध विवेचना के अंतर्गत है, उस स्त्री के शरीर की, जिसके साथ बलात्संग का अभिकथन किया गया है या बलात्संग करने का प्रयास किया गया है, किसी चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा जाँच कराने का प्रस्ताव है, वहाँ ऐसी जाँच सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल में नियोजित रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगी और ऐसे व्यवसायी की अनुपस्थिति में ऐसी स्त्री की या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिये सक्षम व्यक्ति की सहमति से किसी अन्य रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगी और ऐसी स्त्री को ऐसे अपराध के किये जाने से संबंधित सूचना प्राप्त होने के समय से चौबीस घंटे के अंदर ऐसे रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी के पास भेजा जाएगा। |
(2) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी, जिसके पास ऐसी महिला भेजी जाती है, बिना विलंब के उसके शरीर की जाँच करेगा तथा अपनी जाँच की रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें निम्नलिखित विवरण दिये जाएंगे, अर्थात्:- (i) महिला का नाम एवं पता तथा वह व्यक्ति जिसके द्वारा उसे लाया गया था; (ii) महिला की आयु; (iii) DNA प्रोफाइलिंग के लिये महिला के शरीर से ली गई सामग्री का विवरण; (iv) महिला के शरीर पर चोट के निशान, यदि कोई हों; (v) महिला की सामान्य मानसिक स्थिति; एवं (vi) उचित विवरण में अन्य भौतिक विवरण |
(2) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी, जिसके पास ऐसी महिला भेजी जाती है, बिना विलंब के उसके शरीर की जाँच करेगा तथा अपनी जाँच की रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें निम्नलिखित विवरण दिये जाएंगे, अर्थात्:- (i) महिला का नाम एवं पता तथा वह व्यक्ति जिसके द्वारा उसे लाया गया था; (ii) महिला की आयु; (iii) DNA प्रोफाइलिंग के लिये महिला के शरीर से ली गई सामग्री का विवरण; (iv) महिला के शरीर पर चोट के निशान, यदि कोई हों; (v) महिला की सामान्य मानसिक स्थिति; एवं (vi) उचित विवरण में अन्य भौतिक विवरण |
(3) रिपोर्ट में प्रत्येक निष्कर्ष के लिये स्पष्ट कारण बताए जाएंगे। |
(3) रिपोर्ट में प्रत्येक निष्कर्ष के लिये स्पष्ट कारण बताए जाएंगे। |
(4) रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से दर्ज किया जाएगा कि ऐसी जाँच के लिये महिला या उसकी ओर से सहमति देने में सक्षम व्यक्ति की सहमति प्राप्त कर ली गई है। |
(4) रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से दर्ज किया जाएगा कि ऐसी जाँच के लिये महिला या उसकी ओर से सहमति देने में सक्षम व्यक्ति की सहमति प्राप्त कर ली गई है। |
(5) परीक्षा के प्रारंभ एवं समाप्ति का सही समय भी रिपोर्ट में दर्ज किया जाएगा। |
(5) परीक्षा के प्रारंभ और समापन का सही समय भी रिपोर्ट में अंकित किया जाएगा। |
(6) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी सात दिन की अवधि के अंदर रिपोर्ट को विवेचना अधिकारी को भेजेगा जो उसे धारा 193 में निर्दिष्ट मजिस्ट्रेट को उस धारा की उपधारा (6) के खंड (a) में निर्दिष्ट दस्तावेज़ों के भाग के रूप में भेजेगा। |
(6) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी अविलंब रिपोर्ट को अन्वेषण अधिकारी को भेजेगा जो उसे धारा 173 में निर्दिष्ट मजिस्ट्रेट को उस धारा की उपधारा (5) के खंड (a) में निर्दिष्ट दस्तावेज़ों के भाग के रूप में भेजेगा। |
(7) इस धारा की किसी तथ्य का यह आशय नहीं लगाया जाएगा कि वह स्त्री की या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिये सक्षम किसी व्यक्ति की सहमति के बिना किसी परीक्षा को वैध बनाती है। स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिये, "परीक्षा" एवं "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" के वही आशय होंगे जो धारा 51 में क्रमशः उनके लिये दिये गए हैं। |
(7) इस धारा की किसी तथ्य का यह आशय नहीं लगाया जाएगा कि वह स्त्री की या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिये सक्षम किसी व्यक्ति की सहमति के बिना किसी परीक्षा को वैध बनाती है। स्पष्टीकरण— इस धारा के प्रयोजनों के लिये, “परीक्षा” और “पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी” का वही आशय होगा जो धारा 53 में है। |
- यह ध्यान देने वाली बात है कि दोनों प्रावधान एक जैसे हैं। अंतर केवल BNSS की धारा 184 (6) के संबंध में है।
- धारा 184 (6) में प्रावधान है कि विवेचना अधिकारी सात दिनों के अंदर रिपोर्ट विवेचना अधिकारी को प्रेषित करेगा जो उसे मजिस्ट्रेट को भेजेगा। सात दिनों की यह समय-सीमा पहले नहीं थी।
BNSS की धारा 184 में क्या कमियाँ हैं?
- वर्तमान विधिक प्रावधान
- BNSS की धारा 184 में यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि एक महिला चिकित्सक को बलात्संग पीड़िता की जाँच करनी चाहिये या उसकी जाँच की निगरानी करनी चाहिये।
- CrPC (दण्ड प्रक्रिया संहिता) की धारा 53 में पुलिस अधिकारियों के निवेदन पर आरोपी व्यक्तियों की चिकित्सा जाँच की चर्चा की गई है।
- महिला अभियुक्तों के लिये सुरक्षा उपाय
- CrPC की धारा 53(2) महिला अभियुक्तों को सुरक्षा प्रदान करती है:
- जब किसी महिला की परिक्षण की आवश्यकता हो, तो केवल महिला पंजीकृत चिकित्सक ही जाँच कर सकती है या उसकी देखरेख कर सकती है।
- यह सुरक्षा उपाय BNSS की धारा 51 में भी प्रावधानित है।
- संशोधन की आवश्यकता
- BNSS की धारा 184 में महिला पीड़िता के लिये समान सुरक्षा निहित करने के लिये संशोधन की आवश्यकता है।
- यह संशोधन यह सुनिश्चित करेगा कि महिला पीड़िता की जाँच केवल महिला चिकित्सकों द्वारा या उनकी सानिध्य में की जाए।
- संभावित परिणाम
- इस संशोधन के बिना, आपराधिक न्याय प्रणाली को पीड़िता के प्रति अमित्र माना जा सकता है।
- इस अनदेखी के कारण चिकित्सा जाँच के दौरान महिला पीड़िता के लिये अप्रत्याशित एवं नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।