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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 202

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 12-Feb-2024

बंसीलाल एस. काबरा बनाम ग्लोबल ट्रेड फाइनेंस लिमिटेड और अन्य 

“दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 202 के प्रावधानों के अनुसार, अधिकार क्षेत्र से बाहर के किसी आरोपी को बुलाने से पहले मजिस्ट्रेट को केवल निजी शिकायत में लगाए गए आरोपों पर भरोसा नहीं करना चाहिये।” 

मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति भारती डांगरे तथा आरिफ डॉक्टर

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में बंसीलाल एस. काबरा बनाम ग्लोबल ट्रेड फाइनेंस लिमिटेड और अन्य के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना है कि जब कोई मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 202 के प्रावधानों के तहत एक अनिवार्य जाँच कर रहा है, तो अधिकार क्षेत्र से बाहर के किसी आरोपी को बुलाने से पूर्व मजिस्ट्रेट को केवल निजी शिकायत से संबंधित आरोपों पर विश्वास नहीं करना चाहिये।  

बंसीलाल एस. काबरा बनाम ग्लोबल ट्रेड फाइनेंस लिमिटेड एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • इस मामले में मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति भारती डांगरे तथा आरिफ डॉक्टर सुनवाई कर रहे थे कि क्या न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर के किसी आरोपी को बुलाने से पूर्व CrPC की धारा 202 (1) के तहत जाँच अनिवार्य है, खासकर जब आरोपी दूसरे शहर या राज्य में निवास कर रहा हो।
  • न्यायालय ने एक पुराने संदर्भ का हवाला देते हुए यह आदेश पारित किया क्योंकि 2009 और 2010 में बॉम्बे उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीशों द्वारा अलग-अलग विचार रखे गए थे। 

न्यायालय की टिप्पणी:  

  • मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ ने कहा कि जब कोई मजिस्ट्रेट न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर के किसी आरोपी को बुलाने से पहले CrPC की धारा 202(1) के तहत अनिवार्य जाँच कर रहा है, तो मजिस्ट्रेट को ' केवल निजी शिकायत के आरोपों पर विश्वास नहीं करना चाहिये क्योंकि इसका उपयोग प्रतिशोध के साधन के रूप में किया जा सकता है।
  • यह माना गया कि मजिस्ट्रेट को शपथ पर शिकायतकर्ता या गवाह के बयान और दस्तावेज़ी सबूत दर्ज करने के बाद गहन जाँच करनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरोपी के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने के लिये पर्याप्त आधार हैं या नहीं।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि न्याय की पुष्टि के साथ समाज में कानून तथा व्यवस्था बनाए रखना, आपराधिक विधि का प्राथमिक उद्देश्य होने के नाते, इसके दायरे में व्यक्तिगत प्रतिशोध को शामिल नहीं होने देना चाहिये। 

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973) की धारा 200:  

परिचय:

  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973) की धारा 200 याचिकाकर्त्ता की जाँच से संबंधित है। यह कहती है कि -
  • किसी की शिकायत पर किसी अपराध का संज्ञान लेने वाला मजिस्ट्रेट शपथ पर शिकायतकर्त्ता और उपस्थित गवाहों, यदि कोई हो, की जाँच करेगा तथा ऐसी परीक्षा का सार लिखित रूप में लिखा जाएगा और शिकायतकर्त्ता व गवाहों तथा मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा।
  • बशर्ते कि, जब शिकायत लिखित रूप में की जाती है, तो मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्त्ता और गवाहों की जाँच करने की आवश्यकता नहीं है-  
    (a)  यदि किसी लोक सेवक ने अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों या न्यायालय के निर्वहन में कार्य करने के दौरान या कार्य करने का इरादा रखते हुए शिकायत की है; या  
    (b) यदि मजिस्ट्रेट धारा 192 के तहत मामले को जाँच या सुनवाई के लिये किसी अन्य मज़िस्ट्रेट को सौंप देता है। 
  • परंतु यह और कि यदि मजिस्ट्रेट परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करने के पश्चात मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले करता है तो बाद वाले मजिस्ट्रेट के लिये उनकी फिर से परीक्षा करना आवश्यक न होगा।

उद्देश्य:  

  • मजिस्ट्रेट को शिकायत में लगाए गए आरोपों की सावधानीपूर्वक जाँच करने में सक्षम बनाना ताकि उसमें आरोपी के रूप में नामित व्यक्ति को अनावश्यक शिकायत का सामना करने से रोका जा सके।
  • यह पता लगाने के लिये कि क्या शिकायत में आरोपों का समर्थन करने के लिये कोई तथ्य मौजूद है।

निर्णयज विधि:  

  • मोहिंदर सिंह बनाम गुलवंत सिंह (1992) मामले  में उच्चतम न्यायालय ने माना कि धारा 202 के तहत जाँच का दायरा केवल शिकायत में लगाए गए आरोपों की सच्चाई या अन्यथा का पता लगाने तक ही सीमित है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि इस संहिता की धारा 204 के तहत यह प्रक्रिया जारी रखनी चाहिये अथवा नहीं या धारा 203 का सहारा लेकर इस आधार पर इसे खारिज़ कर दिया जाना चाहिये कि शिकायतकर्ता एवं उसके गवाहों के बयानों, यदि कोई हो, के आधार पर इसे आगे बढ़ने के लिये कोई पर्याप्त आधार नहीं है।