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सिविल कानून
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 212
« »14-May-2024
गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय बनाम अनिल जिंदल "कंपनी अधिनियम के नियमों का पालन नहीं करने पर, किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों को सूचित करने की आवश्यकता नहीं है। अगर उसको औपचारिक रूप से गिरफ्तार नहीं किया गया है"। न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी |
स्रोत: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय बनाम अनिल जिंदल के मामले में कंपनी अधिनियम, 2013 के अधीन गंभीर धोखाधड़ी के मामलों में दिये गए ज़मानत आदेश को पलट दिया है।
गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय बनाम अनिल जिंदल मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में साझा विधिक प्रश्नों एवं राहत की माँग के कारण सामान्य निर्णयों की माँग करने वाली कई याचिकाएँ सम्मिलित हैं।
- इस मामले की जड़ वित्तीय घोटाले के आरोपी प्रतिवादियों को दिये गए ज़मानत आदेशों में निहित है।
- इस मामले का कथित सूत्रधार होने के बावजूद, उन्हें ट्रायल कोर्ट द्वारा नियमित ज़मानत दी गई थी।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि अदालत ने प्रतिवादियों की आर्थिक अपराध में संलिप्तता के महत्त्वपूर्ण साक्ष्यों को नज़रअंदाज़ कर दिया।
- याचिकाकर्त्ता ने 19 दिसंबर 2023 को दी गई ज़मानत को रद्द करने की माँग की।
- विशेषकर, प्रतिवादी की पहली तीन ज़मानत प्रयासों में विफलता के उपरांत, चौथा सफल प्रयास एवं उसके बाद का ज़मानत आदेश, याचिकाकर्त्ता के लिये विशेष रूप से निराशाजनक था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि केवल कंपनी अधिनियम नियमों में उल्लिखित औपचारिकताओं का पालन करने में विफल होने से, 2013 के अधिनियम की धारा 212(8) में उल्लिखित आदेश का उल्लंघन नहीं होता है, विशेषकर जब आरोपी व्यक्ति को औपचारिक रूप से गिरफ्तार नहीं किया गया हो।
- अधिनियम की धारा 212(8) के अधीन, यदि केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत SFIO के निदेशक, अतिरिक्त निदेशक या सहायक निदेशक को लिखित अभिलेखों के आधार पर विश्वास है, कि किसी व्यक्ति ने उल्लिखित धाराओं के अधीन दंडनीय अपराध किया है तो इन धाराओं के अंतर्गत, वे उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं तथा उन्हें गिरफ्तारी के कारणों के विषय में गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत सूचित करना होगा।
- न्यायालय ने पाया कि 2017 के नियमों के नियम 4 में उल्लिखित औपचारिकता का अनुपालन न करना, 2013 के अधिनियम की धारा 212(8) में दिये गए आदेश का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है, जैसा कि मौजूदा मामले में है। चूँकि कोई औपचारिक गिरफ्तारी नहीं हुई थी, अतः याचिकाकर्त्ता के लिये उपरोक्त नियमों का अनुपालन करने का कोई अवसर नहीं मिला, जो केवल तभी किया जा सकता था, जब याचिकाकर्त्ता द्वारा प्रतिवादी की औपचारिक गिरफ्तारी की गई थी”।
- इसके अलावा न्यायालय ने इस बात पर महत्त्व देते हुए कहा कि इन प्रावधानों को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य अधिकृत अधिकारी की विवेकाधीन शक्तियों को सीमित करना तथा SFIO की गिरफ्तारी प्रक्रिया में निष्पक्षता एवं उत्तरदायित्व को समाहित करना है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि गिरफ्तारी के बाद, आरोपी को 2013 अधिनियम की धारा 212(6) के प्रावधानों से गुज़रना होगा।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि चूँकि SFIO ने वारंट और न्यायिक अभिरक्षा रिमांड के लिये आवेदनों में विस्तृत सामग्री प्रदान करके सभी विधायी सुरक्षा उपायों का पालन किया था, अतः आरोपी के पास 2017 के नियमों के अनुसार "गिरफ्तारी आदेश" का अनुरोध करने का कोई कारण नहीं था, विशेषकर यह देखते हुए कि कोई औपचारिक गिरफ्तारी नहीं हुई थी।
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 212 क्या है?
- परिचय:
- धारा 212, गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय द्वारा कंपनी मामलों की जाँच से संबंधित है।
- यह केंद्र सरकार को गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (SFIO) द्वारा किसी कंपनी के मामलों की जाँच का आदेश देने का अधिकार देता है यदि SFIO को विश्वास है कि व्यवसाय धोखाधड़ी के इरादे से अथवा जनहित के लिये हानिकारक रूप से संचालित किया जा रहा है।
- यह धारा इस प्रकार की जाँच करने के लिये SFIO की शक्तियों, प्रक्रियाओं एवं अधिकारियों की रूपरेखा बनाती है तथा इसमें कंपनी धोखाधड़ी से संबंधित अपराध करने के संदेह में व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की शक्ति भी निहित है।
- विधिक प्रावधान:
- धारा 212(8) यदि केंद्र सरकार के सामान्य अथवा विशेष आदेश द्वारा इस संबंध में अधिकृत गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय के निदेशक, अतिरिक्त निदेशक या सहायक निदेशक के पास मौजूद सामग्री के आधार पर विश्वास करने का कारण है (इस विश्वास का कारण लिखित रूप में होना चाहिये) कि कोई भी व्यक्ति उप-धारा (6) में निर्दिष्ट धाराओं के अधीन दण्डनीय अपराध का दोषी है, तो वह ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है तथा जितनी जल्दी हो सके, उस व्यक्ति को इस गिरफ़्तारी के आधार के विषय में सूचित करेगा।
- निर्णयज विधि:
- उच्चतम न्यायालय के पंकज बंसल बनाम भारत संघ और अन्य मामले में इस बात पर महत्त्व दिया गया कि 2013 अधिनियम की धारा 212(8) के प्रावधानों तथा 2017 के नियमों के नियम 4 का पालन करने में विफलता किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी को अमान्य कर देती है, तथा उसे नियमित ज़मानत का अधिकार प्रदान करती है।
कॉर्पोरेट धोखाधड़ी क्या है?
- भारत दशकों से कॉर्पोरेट धोखाधड़ी से जूझ रहा है, जिसमें 1950 के दशक में LIC /मुंदड़ा घोटाला जैसी उल्लेखनीय घटनाएँ शामिल हैं। हालाँकि उस समय के कंपनी अधिनियम ने 'धोखाधड़ी' की एक अलग परिभाषा प्रदान नहीं की थी क्योंकि भारतीय दंड संहिता में पहले से ही ऐसे अपराधों को व्यापक रूप से सम्मिलित किया गया था।
- ईरानी रिपोर्ट के आधार पर, 1956 के अधिनियम को बदलने के लिये प्रस्तावित 2008 के कंपनी विधेयक में धोखाधड़ी को संबोधित करने वाली धारा 447 जैसा कोई प्रावधान शामिल नहीं था।
- वर्ष 2007-08 के बड़े कॉर्पोरेट घोटालों ने संसदीय स्थायी समिति को निम्न अनुशंसाएँ करने के लिये प्रेरित किया:
- कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 के अंतर्गत धोखाधड़ी की एक अलग परिभाषा प्रस्तुत करना।
- ऐसी धोखाधड़ी की जाँच के लिये अधिनियम की धारा 212 के अधीन गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (SFIO) की स्थापना करना।
कंपनी अधिनियम, 2013 में धोखाधड़ी के लिये विधिक प्रावधान क्या हैं?
- धारा 447 धोखाधड़ी के दण्ड से संबंधित है।
- इसमें प्रावधान है कि धोखाधड़ी का दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को कम-से-कम छह महीने से लेकर अधिकतम दस वर्ष तक का कारावास हो सकता है। इसके अतिरिक्त, जितनी राशि की धोखाधड़ी की गई थी, उस राशि का तीन गुना तक ज़ुर्माना लगाया जा सकता है तथा यह ज़ुर्माना धोखाधड़ी की गई राशि से कम नहीं हो सकता है।
कॉर्पोरेट धोखाधड़ी के लिये दण्डनीय अपराध क्या हैं?
धोखाधड़ी से पहले के अपराध
प्रासंगिक धाराएँ |
अपराध की प्रकृति |
अपराध के लिये उत्तरदायी व्यक्ति |
धारा 7(5); 7(6); और 8(1) |
|
प्रवर्तक, प्रथम निदेशक और घोषणा करने वाले व्यक्ति। कंपनी के निदेशक और अधिकारी। |
धारा 34 |
गलत या भ्रामक सूचना वाला सूचीपत्र जारी करना। |
सूचीपत्र जारी करने के लिये किसी को अधिकृत करने वाला व्यक्ति |
धारा 36 |
झूठी, कपटपूर्ण , भ्रामक अथवा छुपाई गई सूचना के आधार पर व्यक्तियों को पैसा निवेश करने या बैंकों/वित्तीय संस्थानों से ऋण सुविधाएँ प्राप्त करने के लिये प्रेरित करना। |
दूसरे व्यक्ति को ऐसा प्रेरित करने वाला व्यक्ति |
धारा 38(1) |
छद्म नामों से आवेदन जमा करना अथवा शेयर प्राप्त करने के लिये कई आवेदन जमा करना अथवा कंपनी को छद्म नामों से शेयर आवंटित करने अथवा पंजीकृत करने के लिये राज़ी करना। |
वह व्यक्ति जो ऐसे आवेदन करता है तथा जो कंपनी को इस प्रकार राज़ी करता है। |
धारा 46(5) |
धोखाधड़ी के इरादे से जाली (नकली) शेयर प्रमाण-पत्र जारी करना। |
चूक करने वाले अधिकारी |
धारा 56(7) |
धोखाधड़ी के इरादे से, डिपॉजिटरी के माध्यम से शेयरों को स्थानांतरित करना अथवा प्रसारित करना। |
डिपॉजिटरी/डिपॉजिटरी भागीदार। |
धारा 66(10) |
ऐसे ऋणदाता की पहचान छिपाना जो या तो पूँजी में कमी पर आपत्ति करता है अथवा किसी ऋण की प्रकृति, राशि या दावे को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है। |
नाम छिपाने अथवा गलत बयानी करने वाले अधिकारी |
धोखाधड़ी के अपराध के बाद की स्थिति:
प्रासंगिक धाराएँ |
अपराध की प्रकृति |
अपराध के लिये उत्तरदायी व्यक्ति |
धारा 75(1) |
धोखाधड़ी के आशय से या कपटपूर्ण उद्देश्यों के लिये जमा स्वीकार करना या निर्दिष्ट समय-सीमा के अंदर जमा एवं ब्याज चुकाने में असफल होना। |
जमा स्वीकार करने के लिये प्रत्येक अधिकारी उत्तरदायी है। |
धारा 140(5) |
लेखापरीक्षकों को कपटपूर्ण गतिविधियों में शामिल पाया गया या कंपनी, उसके निदेशकों या अधिकारियों द्वारा की गई धोखाधड़ी में सहायता करने एवं बढ़ावा देने का दोषी पाया गया। |
ऑडिटर व्यक्तिगत रूप से या फर्म या ऑडिट फर्म के भागीदार संयुक्त रूप से या अलग-अलग |
धारा 206(4) |
कंपनी धोखाधड़ी या अविधिक उद्देश्यों के लिये व्यवसाय में संलग्न है। |
चूक करने वाले अधिकारी |
धारा 213 का परंतुक |
धोखाधड़ी या अविधिक आशय के साथ एक कंपनी बनाना या सदस्यों या लेनदारों को धोखा देने के उद्देश्य से व्यावसायिक परंपरा में संलग्न होना। |
चूक करने वाला अधिकारी और कंपनी के गठन/इसके मामलों के प्रबंधन से संबंधित व्यक्ति।
|
धारा 229 |
कंपनी की संपत्ति, परिसंपत्तियों या मामलों से संबंधित किसी दस्तावेज़ के विषय में गलत बयान देना या छेड़छाड़ करना, नष्ट करना, छिपाना या हटाना। |
ऐसा व्यक्ति, जो गलत जानकारी देता है अथवा किसी दस्तावेज़ को विकृत करता है, नष्ट करता है, छुपाता है, छेड़छाड़ करता है या हटा देता है। |
धारा 251(1) |
कंपनी की देनदारियों से बचने अथवा उसके लेनदारों या व्यक्तियों को धोखा देने के इरादे से कंपनी का नाम हटाने (स्वेच्छा से नाम काटने) के लिये आवेदन करना। |
कंपनी के प्रबंधन का प्रभारी व्यक्ति। |
धारा 266 (1) |
धन या संपत्ति का दुरुपयोग करने अथवा आर्थिक रूप से संकटग्रस्त कंपनी से संबंधित किसी गड़बड़ी में शामिल होने का दोषी पाया जाना। |
ऐसे किसी कदाचार का दोषी व्यक्ति |
धारा 339 (3) |
लेनदारों अथवा अन्य व्यक्तियों को धोखा देने के इरादे से व्यवसाय संचालित करना। |
वह व्यक्ति जो जानबूझकर कंपनी के कारोबार को चलाने में एक पक्ष था। |
धारा 448 |
किसी रिटर्न, रिपोर्ट, प्रमाण-पत्र, वित्तीय विवरण, विवरणिका आदि में गलत सूचना प्रदान करना। |
ऐसे गलत बयान देने वाला व्यक्ति |