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पारिवारिक कानून

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 29(2)

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 06-Oct-2023

संजना कुमारी बनाम विजय कुमार

"हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 29 (2) द्वारा प्रदत्त शक्ति के तहत एक सिविल न्यायालय द्वारा प्रथागत तलाक दिया जा सकता है।"

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों:

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 29 (2) द्वारा प्रदत्त शक्ति के तहत एक सिविल न्यायालय द्वारा प्रथागत तलाक किया जा सकता है।

  • संजना कुमारी बनाम विजय कुमार के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह टिप्पणी की गई।

संजना कुमारी बनाम विजय कुमार मामले की पृष्ठभूमि:

  • अपीलकर्ता पत्नी और प्रतिवादी पति ने वर्ष 2011 में विवाह किया।
  • प्रतिवादी का दावा है कि वर्ष 2014 में दोनों पक्षों के बीच एक "प्रथागत तलाक विलेख" निष्पादित किया गया था, जिस पर अपीलकर्ता के माता-पिता, प्रतिवादी के पिता और ग्राम पंचायत के सदस्यों द्वारा विधिवत हस्ताक्षर किये गए थे।   
  • इसके बाद प्रतिवादी ने वर्ष 2018 में दूसरा विवाह कर लिया।
  • अपीलकर्ता ने तब घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत प्रतिवादी के खिलाफ शिकायत दर्ज़ की, जिसका प्रतिवादी ने तलाक विलेख के आधार पर एक आवेदन के माध्यम से विरोध किया।
  • न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उक्त आवेदन को अस्वीकार कर दिया और अपीलकर्ता को प्रति माह 3,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण भत्ता दिया।
  • इसके बाद उच्च न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को अस्वीकार करते हुए पति के पक्ष में फैसला सुनाया।
  • अत:, पत्नी ने प्रथागत तलाक विलेख की वैधता पर प्रश्न उठाते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
  • उच्चतम न्यायालय ने आंशिक रूप से अपील की अनुमति दी और यह कहते हुए मामले को उच्च न्यायालय को भेज दिया कि प्रथागत विलेख की वैधता की जाँच सक्षम प्राधिकारी द्वारा की जाएगी।
  • न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिये गए भरण-पोषण भत्ते के आदेश को भी बहाल कर दिया।

प्रथागत तलाक:

  • "प्रथागत तलाक" एक व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त कानूनी शब्द नहीं है।   
  • यह तलाक से संबंधित ऐसी कार्यवाही और प्रथाएँ हैं जो एक विशिष्ट सांस्कृतिक या धार्मिक संदर्भ में प्रथागत या पारंपरिक प्रथाओं के अनुसार हैं।
  • कुछ संस्कृतियों या धार्मिक समुदायों में तलाक, राज्य के नागरिक कानूनों के बजाय पारंपरिक या प्रथागत कानूनों द्वारा शासित हो सकता है।
  • इन प्रथागत तलाक प्रथाओं में विशिष्ट अनुष्ठान, प्रक्रियाएँ या आवश्यकताएँ शामिल हो सकती हैं जो हिंदू कानून के तहत मानक कानूनी प्रक्रियाओं से भिन्न होती हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि यह मुद्दा कि चाहे पक्ष उस प्रथा द्वारा शासित हैं जिसके तहत हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का सहारा लिये बिना तलाक प्राप्त किया जा सकता है, अनिवार्य रूप से तथ्य का प्रश्न है जिसे ठोस साक्ष्य के माध्यम से विशेष रूप से दलील देने और साबित करने की आवश्यकता है।  
  • इस तरह के प्रश्न पर सामान्यत: केवल एक सिविल न्यायालय द्वारा निर्णय लिया जा सकता है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रथागत तलाक विलेख यह स्थापित करने के लिये बाध्य है कि इस तरह की परंपरा को एक प्रथा द्वारा अनुमति दी जाती है जो लंबे समय से समान रूप से देखी जाती है और ऐसी परंपरा अनुचित या सार्वजनिक नीति का विरोध नहीं करती है और इस प्रकार इस तरह के प्रथागत तलाक की वैधता हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 29 (2) में उल्लिखित अपवाद द्वारा विधिवत संरक्षित है।

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 29 (2):

  • विधिक संरचना:
    • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 29 (2) कहती है कि इस अधिनियम में अंतर्विष्ट कोई भी बात रूढ़ि से मान्यता प्राप्त या किसी विशेष अधिनियमिति द्वारा प्रदत्त किसी ऐसे अधिकार पर प्रभाव डालने वाली न समझी जाएगी, जो किसी हिंदू विवाह का वह इस अधिनियम के प्रारंभ के चाहे पूर्व अनुष्ठापित हुआ हो चाहे पश्चात्, विघटन अभिप्राप्त करने का अधिकार हो।
  • उपयोजन:
    • इसमें शामिल पक्षों के रीति-रिवाज़ो और परंपराओं द्वारा मान्यता प्राप्त अनुष्ठानों और समारोहों के अनुसार विवाह संपन्न होना आवश्यक है।
    • यह हिंदू विवाह के अनुष्ठान में धार्मिक प्रथाओं और सांस्कृतिक मानदंडों के पालन के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
    • यह हिंदू समुदाय में सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने और विभिन्न तरीकों से किये गए विवाहों की वैधता को पहचानने के महत्त्व को रेखांकित करता है।

इससे संबंधित ऐतिहासिक मामले:

  • यमुनाजी एच. जाधव बनाम निर्मला, (2002):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तलाक के सामान्य कानून का अपवाद होने के नाते इस तरह की प्रथा को विशेष रूप से पेश किया जाना चाहिये और इस तरह की परंपरा को प्रतिपादित करने वाले पक्ष द्वारा स्थापित किया जाना चाहिये, यदि यह साबित नहीं होता है, तो यह सार्वजनिक नीति के खिलाफ एक प्रथा होगी।
  • सुब्रमणि बनाम एम. चंद्रलेखा , (2005):
    • इस मामले में भी उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विभिन्न स्तर के अधिकारियों द्वारा यह अच्छी तरह से स्थापित किया गया है कि तलाक के सामान्य कानून के विपरीत, जिस समुदाय से संबंधित हैं, उसमें प्रथागत तलाक की व्यापकता को विशेष रूप से इस तरह की परंपरा को प्रतिपादित करने वाले व्यक्ति द्वारा स्थापित किया जाना चाहिये।
  • स्वप्नांजलि संदीप पाटिल बनाम संदीप आनंद पाटिल, (2020):
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि प्रथागत विलेख के माध्यम से तलाक दिया जा सकता है लेकिन यह मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है।