Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

वाणिज्यिक विधि

मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 29 A

    «    »
 21-May-2024

मेसर्स जियो मिलर एंड कंपनी प्रा. लिमिटेड बनाम यूपी जल निगम और अन्य

"मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 29A के अधीन किया गया आवेदन विचारणीय होगा यदि मध्यस्थ की नियुक्ति न्यायालय द्वारा A&C अधिनियम की धारा 11 के अधीन की गई थी”।

न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ

स्रोत: इलाहाबाद  उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ की पीठ ने माना कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 29A के अधीन किया गया आवेदन विचारणीय होगा यदि मध्यस्थ की नियुक्ति न्यायालय द्वारा A&C अधिनियम की धारा 11 के अधीन की गई थी।

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी मेसर्स जियो मिलर एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूपी जल निगम और अन्य के मामले में दी।

मेसर्स जियो मिलर एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूपी जल निगम और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • मेसर्स जियो मिलर एंड कंपनी प्रा. लिमिटेड (याचिकाकर्त्ता- ARBT4) तथा यू.पी. जल निगम और अन्य (प्रतिवादी - ARBT4) ने एक अनुबंध किया।
  • याचिकाकर्त्ता- ARBT4 और प्रतिवादी- ARBT4 के बीच विवाद तथा मतभेद उत्पन्न हुए जिन्हें मध्यस्थता के लिये भेजा गया था।
  • याचिकाकर्त्ता- एआरबीटी 4 ने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये अदालत के समक्ष A&C अधिनियम की धारा 11 के अधीन एक आवेदन दायर किया।
    • न्यायालय ने एक मध्यस्थ नियुक्त किया।
  • A&C अधिनियम की धारा 29A के अधीन प्रदान की गई मध्यस्थ पंचाट देने की समय-सीमा 29 फरवरी 2024 को समाप्त हो गई।
    • मध्यस्थ सांविधिक समय-सीमा के अंदर अपना पंचाट प्रकाशित नहीं कर सका तथा उसने पक्षकारों से विधि के अनुसार समय विस्तार मांगने को कहा।
  • याचिकाकर्त्ता- ARBT 4 ने A&C अधिनियम की धारा 29 A के अधीन एक आवेदन दायर किया, जिसमें मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश के समय-सीमा विस्तार की मांग की गई।
  • GPT इंफ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड (याचिकाकर्त्ता- ARBT 5) और कानपुर विकास प्राधिकरण (प्रतिवादी - ARBT 5) के बीच विवाद तथा मतभेद उत्पन्न हुए, जिन्हें मध्यस्थता के लिये भेजा गया था।
  • न्यायालय ने A&C अधिनियम की धारा 11 के तहत याचिकाकर्त्ता- ARBT 5 और प्रतिवादी - ARBT 5 के बीच मामले में मध्यस्थ नियुक्त किया।
  • अधिनियम की धारा 29A के अनुसार मध्यस्थ पंचाट देने की समय-सीमा 7 मार्च 2024 को समाप्त होने वाली थी।
  • याचिकाकर्त्ता- ARBT 5 ने अधिनियम की धारा 29A के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें न्यायालय के समक्ष समय-सीमा विस्तार की मांग की गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि न्यायिक अनुशासन का सिद्धांत और बाध्यकारी पूर्वनिर्णयों का पालन विधिक प्रणाली की आधारशिला है, जो न्यायिक निर्णयों की स्थिरता, पूर्वानुमेयता तथा वैधता बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
  • उपरोक्त मामले के प्रकाश में, चूँकि वर्ष 2024 के ARBT 4 और 5 में मध्यस्थ की नियुक्ति इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अधिनियम की धारा 11 के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए की गई थी, धारा 29A(4) तथा धारा के तहत तत्काल आवेदन दायर किये गए थे। A&C अधिनियम की धारा 29A(5) को इस न्यायालय के समक्ष विचारणीय माना गया।
    • तद्नुसार, 2024 की ARBT संख्या 4 और 5 की अनुमति दी गई तथा मध्यस्थ का समय सीमा विस्तार इस निर्णय की तारीख से 8 महीने के लिये बढ़ा दिया गया था।

मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 29 A क्या है?

  • घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता पंचाट के लिये समय-सीमा (उपधारा 1)
    • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के अतिरिक्त अन्य मामलों में निर्णय, मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा धारा 23 की उप-धारा (4) के अधीन बहस पूरी होने की तारीख से बारह महीने की अवधि के भीतर दिया जाएगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता: अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में निर्णय यथाशीघ्र किया जाना चाहिये, तथा धारा 23 की उप-धारा (4) के तहत बहस पूरी होने की तारीख से बारह महीने के भीतर मामले का निपटान करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • समय पर पंचाटों के लिये अतिरिक्त शुल्क (उपधारा 2)
    • यदि निर्णय मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा संदर्भ लिये जाने की तारीख से छह महीने के भीतर दिया जाता है, तो मध्यस्थ न्यायाधिकरण, पक्षकारों की सहमति के अनुसार अतिरिक्त शुल्क प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
  • सहमति से समय का विस्तार (उपधारा 3)
    • पक्षकार आपसी सहमति से, पंचाट देने की अवधि को छह महीने से अधिक नहीं बढ़ा सकती हैं।
  • अधिदेश और न्यायालय विस्तार की समाप्ति (उपधारा 4)
    • यदि उप-धारा (1) में निर्दिष्ट अवधि अथवा उप-धारा (3) के अधीन विस्तारित अवधि के भीतर पुरस्कार नहीं दिया जाता है, तो मध्यस्थ का अधिदेश, या तो निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पहले अथवा निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति के बाद समाप्त हो जाएगा, जब तक कि न्यायालय समय अवधि नहीं बढ़ाता।
    • शुल्क में कटौती:
      • यदि देरी का कारण मध्यस्थ न्यायाधिकरण है, तो न्यायालय प्रत्येक महीने की देरी के लिये मध्यस्थों की फीस में पाँच प्रतिशत तक की कटौती का आदेश दे सकता है।
    • लंबित आवेदन:
      • यदि उप-धारा (5) के तहत कोई आवेदन लंबित है, तो मध्यस्थ का अधिदेश आवेदन के निपटान तक जारी रहेगा।
    • मध्यस्थों के लिये अवसर:
      • शुल्क में किसी भी कटौती से पहले मध्यस्थों को सुनवाई का अवसर दिया जाएगा।
  • न्यायालय द्वारा अवधि का विस्तार (उपधारा 5)
    • पर्याप्त कारण के लिये किसी भी पक्ष द्वारा आवेदन करने पर न्यायालय उपधारा (4) में निर्दिष्ट अवधि बढ़ा सकता है तथा नियम और शर्तें लगा सकता है।
  • मध्यस्थों का प्रतिस्थापन (उपधारा 6)
    • अवधि बढ़ाते समय, न्यायालय एक या सभी मध्यस्थों को प्रतिस्थापित कर सकता है। मध्यस्थता की कार्यवाही वर्तमान चरण से जारी रहेगी और नए मध्यस्थ पहले से ही उपलब्ध साक्ष्य तथा सामग्री पर विचार करेंगे।
  • मध्यस्थ न्यायाधिकरण की निरंतरता (उपधारा 7)
    • इस धारा के अधीन पुनर्गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण, पूर्व नियुक्त न्यायाधिकरण के समान ही कार्यवाही प्रारंभ करेगा।
  • लागतों का अधिरोपण (उपधारा 8)
    • न्यायालय इस धारा के अधीन किसी भी पक्ष पर वास्तविक या अनुकरणीय लागत अधिरोपित कर सकता है।
  • आवेदनों का शीघ्र निपटान (उपधारा 9)
    • उप-धारा (5) के अधीन दायर आवेदनों को न्यायालय द्वारा यथाशीघ्रता से निपटाया जाएगा, विरोधी पक्ष को नोटिस देने की तारीख से साठ दिनों के भीतर मामले को निपटाने का प्रयास किया जाएगा।