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आपराधिक कानून

IPC की धारा 300

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 27-Dec-2023

गुजरात राज्य बनाम प्रकाश उर्फ पिद्दू मिठूभाई मुलानी और अन्य।

"एक भी चोट जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हुई है उसे IPC की धारा 300 के खंड 3 के प्रावधानों के तहत हत्या के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है"।

न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे

स्रोत: गुजरात उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात राज्य बनाम प्रकाश उर्फ पिद्दू मिठूभाई मुलानी और अन्य मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने माना है कि एक भी चोट जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हुई है, को भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code- IPC) की धारा 300 के खंड 3 के प्रावधानों के तहत हत्या के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

गुजरात राज्य बनाम प्रकाश उर्फ पिद्दू मिठू भाई मुलानी और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान अपील अपीलकर्त्ता (राज्य) द्वारा गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई है, जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कच्छ-भुज द्वारा पारित निर्णय और आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत उत्तरदाताओं को IPC की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिये बरी कर दिया गया है।
  • बताया गया है कि अभियुक्त संख्या 2- राजू मिठूभाई मुलानी की पहले ही मृत्यु हो चुकी है और इसलिये अपील केवल अभियुक्त संख्या 1- प्रकाश उर्फ पिद्दू मुथुभाई मुलानी तक ही सीमित है।
  • राज्य ने तर्क दिया था कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के प्रमुख तत्त्वों को नज़रअंदाज कर दिया था, जैसे कि मृत्यु से पहले दिये गए बयान, हथियार के साथ अभियुक्त का आत्मसमर्पण और चाकू पर मृतक के खून की पुष्टि करने वाली फोरेंसिक रिपोर्ट।
  • उच्च न्यायालय ने आरोपी प्रकाश उर्फ पिद्दू मिठुभाई मुलानी को मृतक की हत्या के लिये दोषी ठहराया और यह घटना IPC की धारा 300 के प्रावधानों को पूरा करती है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की पीठ ने कहा कि जहाँ अभियोजन यह साबित करता है कि अभियुक्त का आशय किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनने या उसे शारीरिक चोट पहुँचाने का था और इरादतन चोट मृत्यु का कारण बनने के लिये प्रकृति के सामान्य तरीके से पर्याप्त है, तो भले ही वह एक भी चोट पहुँचाता है जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, अपराध स्पष्ट रूप से IPC की धारा 300 के खंड 3 के अंतर्गत आता है जब तक कि कोई अपवाद लागू न हो।
  • न्यायालय ने धारा 300, जो हत्या से संबंधित है और धारा 299, जो गैर इरादतन हत्या से संबंधित है, के बीच अंतर को रेखांकित किया। इसने आशय और जानकारी की प्रमुख भूमिका पर ज़ोर दिया, इस बात पर ज़ोर दिया कि एक चोट को हत्या के रूप में माना जा सकता है यदि यह उद्देश्यपूर्ण रूप से घातक है और अभियुक्त संबंधित जोखिम के प्रति सचेत था।
  • इसके अलावा, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भले ही आशय विशिष्ट श्रेणियों के साथ संरेखित हो, अपराध को गैर इरादतन हत्या के रूप में पुनः वर्गीकृत किया जा सकता है यदि यह धारा 300 में निर्दिष्ट पाँच अपवादों में से किसी एक को पूरा करता है।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

  • IPC की धारा 300:
    • यह धारा हत्या से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि इसके पश्चात् अपवादित मामलों को छोड़कर आपराधिक गैर इरादतन मानव वध हत्या है, यदि ऐसा कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, या मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, अथवा
    • (दूसरा)- यदि कोई कार्य ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो जिससे उस व्यक्ति की, जिसको क्षति पहुँचाई गई है, मृत्यु होना सम्भाव्य हो, अथवा
    • (तीसरा)- यदि वह कार्य किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो और वह आशयित शारीरिक क्षति, प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिये पर्याप्त हो, अथवा
    • (चौथा)- यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि कार्य इतना आसन्न संकट है कि मृत्यु कारित होने की पूरी संभावना है या ऐसी शारीरिक क्षति कारित होगी जिससे मृत्यु होना संभाव्य है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वकथित रूप की क्षति पहुँचाने का जोखिम उठाने के लिये बिना किसी क्षमायाचना के ऐसा कार्य करे ।
    • कुछ अपवाद हैं, जैसे;
      • गैर इरादतन मानव वध कब हत्या नहीं है- आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी उस समय जब कि वह गम्भीर और अचानक प्रकोपन से आत्म संयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की, जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्युकारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे ।
        उपरोक्त अपवाद निम्नलिखित शर्तों के अध्यधीन है:-
        • वह प्रकोपन किसी व्यक्ति का वध करने या क्षति पहुँचाने के लिये अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में स्वेच्छा पूर्वक प्रकोपित न हो ।
        • यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो कि विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा उसकी शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में, की गई हो ।
        • यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो ।
    • गैर इरादतन हत्या, यदि यह निजी रक्षा के अधिकार का प्रयोग हो तो हत्या नहीं है।
    • यदि गैर इरादतन हत्या किसी लोक सेवक द्वारा सद्भावना से की गई हो तो यह हत्या नहीं है।
    • गैर इरादतन हत्या, हत्या नहीं है यदि यह बिना सोचे-समझे किसी झगड़े या अचानक हुए झगड़े परके दौरान जोश में आकर की गई हो
    • गैर इरादतन हत्या तब हत्या नहीं है जब जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, वह अठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए भी मृत्यु का कारण बनता है या अपनी सहमति से मृत्यु का जोखिम उठाता है।
  • IPC की धारा 299:
    • यह धारा गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) से संबंधित है।
    • जो भी कोई मृत्यु कारित करने के आशय से, या ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से जिससे मृत्यु होना सम्भाव्य हो, या यह जानते हुए कि यह सम्भाव्य है कि ऐसे कार्य से मृत्यु होगी, कोई कार्य करके मृत्यु कारित करता है, वह गैर इरादतन हत्या/आपराधिक मानव वध का अपराध करता है।