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आपराधिक कानून

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 307

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 01-Dec-2023

शिवमणि और अन्य बनाम पुलिस निरीक्षक द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया राज्य

"IPC की धारा 307 के तहत दोषसिद्धि स्थायी नहीं है क्योंकि बार-बार या गंभीर चोट पहुँचाने का कोई आरोप नहीं है।"

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 307 (Indian Penal Code- IPC) के तहत दोषसिद्धि स्थायी नहीं है क्योंकि बार-बार या गंभीर चोट पहुँचाने का कोई आरोप नहीं है।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला शिवमणि और अन्य बनाम पुलिस निरीक्षक द्वारा प्रतिनिधित्व किये गए राज्य में दिया।

शिवमणि और अन्य बनाम पुलिस निरीक्षक द्वारा प्रतिनिधित्व किये गए राज्य की पृष्ठभूमि क्या है?

  • शिकायतकर्ता ने 15 सितंबर, 2012 को प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) में IPC की धारा 294 (b), 323, 324, 452 और 307 के साथ IPC की धारा 109 के तहत तीन अन्य लोगों के साथ अपीलकर्ताओं को नामित किया था, जिसमें उन पर शिकायतकर्ता की मृत्यु की सज़िश रचने का आरोप लगाया गया था।
  • अभियुक्त संख्या 1, 2 और 5 को बरी कर दिया गया तथा अपीलकर्ता जो अभियुक्त संख्या 3 व 4 थे, को IPC की धारा 307 के तहत दोषी ठहराया गया तथा 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और प्रत्येक पर 1000/- रुपए का ज़ुर्माना लगाया गया।
  • उच्च न्यायालय के समक्ष अपीलकर्ताओं द्वारा की गई अपील पूरी तरह से सफल नहीं हुई तथा परिणामस्वरूप कठोर कारावास की सज़ा 10 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी गई।
  • इसलिये अपीलकर्ता ने SC में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • माना कि बार-बार या गंभीर चोट पहुँचाने का कोई आरोप नहीं है। यहाँ तक कि PW1 और PW2 की चोटें भी सामान्य प्रकृति की पाई गई हैं, जो अपीलकर्ताओं के पक्ष में एक अतिरिक्त बिंदु है। इस प्रकार, IPC की धारा 307 के तहत दोषसिद्धि स्थायी नहीं है।

IPC की धारा 307 क्या है?

  • परिचय:
  • IPC की धारा 307 'हत्या के प्रयास' से संबंधित है।
    • जो कोई ऐसे आशय या ज्ञान के साथ और ऐसी परिस्थितियों में कोई कार्य करता है कि, यदि उस कार्य के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है, तो वह हत्या का दोषी होगा, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और ज़ुर्माना भी देना होगा; और यदि इस तरह के कृत्य से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचती है, तो अपराधी या तो आजीवन कारावास या यहाँ पहले उल्लिखित सज़ा के लिये उत्तरदायी होगा।
  • आजीवन कारावास के दोषियों द्वारा प्रयास:
    • जब इस धारा के तहत अपराध करने वाले किसी भी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सज़ा दी जाती है, तो चोट लगने पर उसे मौत की सज़ा दी जा सकती है।

इस मामले में उद्धृत ऐतिहासिक निर्णय क्या है?

  • जागे राम बनाम हरियाणा राज्य (2015):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि IPC की धारा 307 के तहत दोषसिद्धि बनाए रखने के लिये गंभीर या जीवन-घातक चोट आवश्यक नहीं है, 'अभियुक्त के इरादे का पता वास्तविक चोट, यदि कोई हो, के साथ-साथ आसपास की परिस्थितियों से भी लगाया जा सकता है। अन्य बातों के अलावा, इस्तेमाल किये गए हथियार की प्रकृति और किये गए प्रहार की गंभीरता को इरादे का अनुमान लगाने के लिये माना जा सकता है।