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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 319

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 12-Jan-2024

गुरदेव सिंह भल्ला बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य

"इस मामले में, भ्रष्टाचार के अभियुक्त पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध CrPC की धारा 319 के तहत दायर एक अर्ज़ी को बरकरार रखा।”

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और राजेश बिंदल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने गुरदेव सिंह भल्ला बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य के मामले में भ्रष्टाचार के अभियुक्त पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 के तहत दायर एक आवेदन को बरकरार रखा है।

गुरदेव सिंह भल्ला बनाम पंजाब राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • इस मामले में, पंजाब एग्रो फूडग्रेन कॉर्पोरेशन लिमिटेड, बठिंडा ने पुलिस स्टेशन, फूल, ज़िला बठिंडा में अभियुक्त देवराज मिगलानी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अपराध की शिकायत दर्ज की।
  • इस मामले की जाँच सतर्कता ब्यूरो, बठिंडा को स्थानांतरित कर दी गई, जहाँ अपीलकर्त्ता (गुरदेव सिंह भल्ला) को एक इंस्पेक्टर के रूप में तैनात किया गया था और उन्हें उक्त अपराध की जाँच का कार्य सौंपा गया था, उन्होंने अभियुक्त देवराज को गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • वर्तमान मामले के सूचक (informant) के अनुसार, हेड कांस्टेबल किक्कर सिंह ने अभियुक्त देवराज की भतीजी सुश्री ऋतु से उसके कार्यस्थल पर संपर्क किया और एक पर्ची देकर 50,000/- रुपए की मांग की, जिसके बारे में कहा गया था कि इसे अभियुक्त देवराज द्वारा लिखा हुआ था।
  • इसमें पाया गया कि प्रथम दृष्टया हेड कांस्टेबल किक्कर सिंह के विरुद्ध आरोप बनता है।
  • ट्रायल कोर्ट ने CrPC की धारा 319 के तहत आवेदन को स्वीकार कर लिया और चार पुलिस अधिकारियों जनक सिंह, गुरदेव सिंह भल्ला, हरजिंदर सिंह एवं राजवंत सिंह को तलब किया।
  • अपीलकर्त्ता ने उपर्युक्त आदेश को चंडीगढ़ में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।
  • इससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की जिसे बाद में खारिज़ कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ-

  • न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि इसे अपीलकर्त्ता के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिये रिकॉर्ड पर प्रथम दृष्टया साक्ष्य प्रतीत होते हैं।
    • न्यायालय ने भ्रष्टाचार के अभियुक्त पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध CrPC की धारा 319 के तहत दायर एक आवेदन को बरकरार रखा। इस प्रकार, न्यायालय विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने का इच्छुक नहीं है।
  • न्यायालय ने आगे यह स्पष्ट कर दिया कि इस आदेश में की गई कोई भी टिप्पणी ट्रायल कोर्ट के सामने प्रस्तुत किये गए साक्ष्यों के आधार पर अपनी योग्यता के अनुसार मुकदमे का निर्णय लेने में बाधा नहीं बनेगी, जो इस निर्णय से पूर्ण रूप से अप्रभावित है।

CrPC की धारा 319:

परिचय:

  • CrPC की धारा 319 अपराध के लिये दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की शक्ति से संबंधित है, जबकि इसी प्रावधान को धारा 358 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के तहत कवर किया गया है।
  • यह सिद्धांत ज्यूडेक्स दमनतुर कम नोसेंस एब्सोलविटुर (judex damantur cum nocens absolvitur) पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि दोषी को बरी कर दिये जाने पर न्यायाधीशों की निंदा की जाती है। यह खंड बताता है कि-

(1) जहाँ किसी अपराध की जाँच या विचारण के दौरान साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति ने, जो अभियुक्त नहीं है, कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिये ऐसे व्यक्ति का अभियुक्त के साथ विचारण किया जा सकता है, वहाँ न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध उस अपराध के लिये जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है, कार्यवाही कर सकता है।

(2) जहाँ ऐसा व्यक्ति न्यायालय में हाज़िर नहीं है वहाँ पूर्वोक्त प्रयोजन के लिये उसे मामले की परिस्थितियों की अपेक्षानुसार, गिरफ्तार या समन किया जा सकता है

(3) कोई व्यक्ति जो गिरफ्तार या समन न किये जाने पर भी न्यायालय में हाज़िर है, ऐसे न्यायालय द्वारा उस अपराध के लिये, जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है, जाँच या विचारण के प्रयोजन के लिये निरुद्ध किया जा सकता है।

(4) जहाँ न्यायालय किसी व्यक्ति के विरुद्ध उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करता है, वहाँ-

(a) उस व्यक्ति के बारे में कार्यवाही फिर से प्रारंभ की जाएगी और साक्षियों को फिर से सुना जाएगा;

(b) खंड (a) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, मामले में ऐसे कार्यवाही की जा सकती है, मानो वह व्यक्ति उस समय अभियुक्त व्यक्ति था जब न्यायालय ने उस अपराध का संज्ञान किया था जिस पर जाँच या विचारण प्रारंभ किया गया था

धारा 319 के आवश्यक तत्त्व:

  • किसी अपराध की कोई जाँच या मुकदमा चल रहा हो।
  • साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता हो, कि किसी व्यक्ति ने, अभियुक्त न होते हुए कोई अपराध किया हो, जिसके लिये उस व्यक्ति पर अभियुक्त के साथ मिलकर मुकदमा चलाए जाने योग्य हो।

निर्णयज विधि:

  • हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 319 इस सिद्धांत पर आधारित है, कि निर्दोष को दंडित नहीं किया जाए, साथ ही वास्तविक अपराधी को बचने की अनुमति न दी जाए।
  • लाल सूरज @ सूरज सिंह एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य (2008) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 319 एक विशेष प्रावधान है। इसके तहत एक असाधारण स्थिति से निपटने का प्रयास किया गया है। हालाँकि यह व्यापक आयाम प्रदान करता है, लेकिन इसका प्रयोग संयमित ढंग से करना आवश्यक है।