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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 321
« »07-Feb-2024
X बनाम राज्य "लोक अभियोजक स्वतंत्र निर्णय लेने का हकदार होगा कि अभियोजन वापस लेना है या नहीं।" मुख्य न्यायाधीश धीरज सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति आर. रघुनंदन राव |
स्रोत: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि एक स्वतंत्र निर्णय लिया जाना चाहिये कि किसी अभियुक्त का अभियोजन वापस लिया जाना चाहिये या नहीं, हालाँकि CrPC की धारा 321 के तहत एक लोक अभियोजक अभियोजन वापस लेने के लिये एक आवेदन दायर करने का हकदार है।
मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- जनहित में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई है जिसमें सरकारी आदेश पर प्रश्न उठाया गया है, जिसके तहत अभियुक्त के विरुद्ध दर्ज छह मामलों में अभियोजन वापस लेने का निर्णय लिया गया है और आंध्र प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को संबंधित लोक अभियोजक को उक्त छह मामलों के अभियोजन को वापस लेने के लिये CrPC की धारा 321 के तहत याचिका दायर करने का निर्देश देने के निर्देश जारी किये गए हैं।
- याचिकाकर्त्ता के संबंधित वकील अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि CrPC की धारा 321 के संदर्भ में वापस लेने की शक्ति विशेष रूप से लोक अभियोजक के पास होती है और उस शक्ति में किसी भी सरकार के हस्तक्षेप की न तो परिकल्पना की गई है तथा न ही इसकी आवश्यकता है।
- राज्य ने तर्क दिया कि केवल इसलिये कि एक सरकारी आदेश जारी किया गया था, यह CrPC की धारा 321 के तहत वापस लेने के लिये लोक अभियोजक द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्ति को दूषित नहीं करता है।
- उच्च न्यायालय ने मामले को आगे की कार्यवाही के लिये सूचीबद्ध करते हुए एक अंतरिम उपाय प्रदान किया है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- मुख्य न्यायाधीश धीरज सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति आर. रघुनंदन राव की खंडपीठ ने कहा कि एक स्वतंत्र निर्णय लिया जाना चाहिये कि किसी अभियुक्त का अभियोजन वापस लिया जाना चाहिये या नहीं, हालाँकि CrPC की धारा 321 के तहत एक लोक अभियोजक अभियोजन वापस लेने के लिये एक आवेदन दायर करने का हकदार है।
- न्यायालय ने निर्देश देते हुए कहा कि एक अंतरिम उपाय के रूप में, इस तथ्य के बावजूद कि सरकारी आदेश जारी किया गया है, हालाँकि लोक अभियोजक के पास CrPC की धारा 321 के तहत एक आवेदन दायर करने की शक्ति निहित होती है और लोक अभियोजक एक स्वतंत्र निर्णय लेने का हकदार होगा कि क्या अभियोजन वापस लेना होगा या नहीं।
CrPC की धारा 321 क्या है?
परिचय:
CrPC की धारा 321 अभियोजन से वापसी से संबंधित है जबकि यही प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 360 के तहत शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि-
किसी मामले का भारसाधक कोई लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन को या तो साधारणतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के बारे में जिनके लिये उस व्यक्ति का विचारण किया जा रहा है, न्यायालय की सम्मति से वापस ले सकता है और ऐसे वापस लिये जाने पर–
(a) यदि यह आरोप विरचित किये जाने के पहले किया जाता है तो अभियुक्त ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में उन्मोचित कर दिया जाएगा।
(b) यदि वह आरोप विरचित किये जाने के पश्चात् या जब इस संहिता द्वारा कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तब किया जाता है तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में दोषमुक्त कर दिया जाएगा।
परंतु जहाँ–
(i) ऐसा अपराध किसी ऐसी बात से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध है जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, अथवा
(ii) ऐसे अपराध का अन्वेषण दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा किया गया है, अथवा
(iii) ऐसे अपराध में केंद्रीय सरकार को किसी संपत्ति का दुर्विनियोग, नाश या नुकसान अंतर्ग्रस्त है, अथवा
(iv) ऐसा अपराध केंद्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा किया गया है, जब वह अपने पदीय कर्त्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा है या कार्य करना तात्पर्यित है,
और मामले का भारसाधक अभियोजक केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह जब तक केंद्रीय सरकार द्वारा उसे ऐसा करने की अनुज्ञा नहीं दी जाती है, अभियोजन को वापस लेने के लिये न्यायालय से उसकी सम्मति के लिये निवेदन नहीं करेगा तथा न्यायालय अपनी सम्मति देने के पूर्व, अभियोजक को यह निदेश देगा कि वह अभियोजन को वापस लेने के लिये केंद्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुज्ञा उसके समक्ष पेश करे।
निर्णयज विधि:
- केरल राज्य बनाम के. अजित एवं अन्य (2021) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने CrPC की धारा 321 के संबंध में निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किये हैं:
- CrPC की धारा 321 अभियोजन वापस लेने का निर्णय लोक अभियोजक को सौंपती है लेकिन अभियोजन वापस लेने के लिये न्यायालय की सहमति आवश्यक होती है।
- लोक अभियोजक न केवल साक्ष्यों के अभाव के आधार पर, बल्कि लोक न्याय के व्यापक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये भी अभियोजन वापस ले सकता है।
- लोक अभियोजक को अभियोजन वापस लेने के लिये न्यायालय की सहमति लेने से पूर्व एक स्वतंत्र राय बनानी चाहिये।
- हालाँकि केवल यह तथ्य कि सरकार की ओर से पहल हुई है, वापसी के लिये आवेदन को दूषित नहीं किया जाएगा, न्यायालय को वापसी के कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लोक अभियोजक इस बात से संतुष्ट था कि अच्छे और प्रासंगिक कारणों से अभियोजन वापस लेना आवश्यक है।
- यह तय करने में कि वापसी के लिये अपनी सहमति देनी है या नहीं, न्यायालय एक न्यायिक कार्य करता है, लेकिन इसे प्रकृति में पर्यवेक्षण बताया गया है।
- यह निर्धारित करते समय कि क्या अभियोजन की वापसी न्याय प्रशासन के अधीन है, न्यायालय को अपराध की प्रकृति और गंभीरता तथा लोक जीवन पर इसके प्रभाव की जाँच करना उचित होगा, खासकर जहाँ लोक धन और लोक ट्रस्ट के निर्वहन से जुड़े मामले शामिल हों।