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आपराधिक कानून

IPC की धारा 364A

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 04-Jan-2024

नीरज शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

"व्यपहरण या अपहरण के कृत्य के लिये, अभियोजन पक्ष को फिरौती की मांग को साबित करना होगा, साथ ही अपहरण किये गए व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा भी साबित करना होगा।"

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, नीरज शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि व्यपहरण या अपहरण के कृत्य के लिये, अभियोजन पक्ष को फिरौती की मांग को साबित करना होगा, साथ ही अपहरण किये गए व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा भी साबित करना होगा।

नीरज शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • इस मामले में अपीलकर्त्ताओं ने 12वीं कक्षा के एक छात्र का अपहरण कर लिया था।
  • अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपहरण फिरौती के लिये किया गया था तथा अभियुक्त द्वारा पीड़ित को मारने का कायरतापूर्ण प्रयास भी किया गया था, हालाँकि पीड़ित बच गया, लेकिन गंभीर चोटों के कारण उसका दाहिना पैर काटना पड़ा।
  • रात के दौरान, जब शिकायतकर्त्ता विश्राम कर रहा था, तो दोनों अपीलकर्त्ताओं ने मोटरसाइकिल के क्लच वायर से उसकी गर्दन दबाकर उसे मारने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप, शिकायतकर्त्ता बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गया और अपीलकर्त्ताओं ने यह सोचकर कि शिकायतकर्त्ता मर गया है, उसके शरीर पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी।
  • शिकायतकर्त्ता भागने में सफल रहा व उसे अस्पताल ले जाया गया।
  • ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ताओं को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 364A के तहत अपराध के लिये दोषी ठहराया, जिसे छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है।
  • इसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।
  • अपील को स्वीकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे न्यायालय के समक्ष जिन आवश्यक तत्त्वों को साबित करना होगा, उनमें न केवल व्यपहरण या अपहरण का कृत्य शामिल है, बल्कि उसके बाद फिरौती की मांग के साथ-साथ व्यपहरण या अपहरण किये गए व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा भी शामिल है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 364A के दायरे में आने के लिये अपहरण से ज़्यादा फिरौती की मांग जैसे कुछ और कृत्य होने चाहिये, हमें नहीं लगता कि फिरौती की मांग की गई थी जैसा कि अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है। इस संबंध में अभियोजन पक्ष द्वारा कोई सार्थक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है।
  • इसलिये न्यायालय ने धारा 364A के तहत दोषसिद्धि के निष्कर्षों को IPC की धारा 364 में बदल दिया।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

IPC की धारा 364A:

  • IPC की धारा 364A फिरौती के लिये अपहरण आदि के अपराध से संबंधित है।
  • यह धारा 22 मई, 1993 से भारतीय दंड संहिता में शामिल की गई थी।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा या ऐसे व्यपहरण या अपहरण के पश्चात् ऐसे व्यक्ति को निरोध में रखेगा और ऐसे व्यक्ति को मृत्यु कारित करने या उपहति करने के लिये धमकी देगा या अपने इस आचरण से ऐसी युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न करेगा कि ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है या उपहति की जा सकती है या कोई कार्य करने या कोई कार्य करने से प्रविरत रहने के लिये या मुक्ति धन देने के लिये सरकार या किसी विदेशी राज्य या अंतर्राष्ट्रीय अंतर सरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति को विवश करने के लिये ऐसे व्यक्ति को उपहति करेगा या मृत्यु कारित करेगा, वह मृत्यु से या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा, और ज़ुर्माने से भी दंडनीय होगा।
  • विक्रम सिंह बनाम भारत संघ, (2015) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि IPC की धारा 364A के तीन अलग-अलग घटक हैं।
    • संबंधित व्यक्ति व्यपहरण या अपहरण कर लेता है या व्यपहरण या अपहरण के बाद पीड़ित को हिरासत में रखता है।
    • मौत या चोट पहुँचाने की धमकी देता है या मौत या चोट पहुँचाने की आशंका उत्पन्न करता है या वास्तव में चोट पहुँचाता है या मौत का कारण बनता है।
    • व्यपहरण, अपहरण या हिरासत और मौत या चोट की धमकी, ऐसी मौत या चोट या वास्तविक मौत या चोट की आशंका संबंधित व्यक्ति या किसी और को कुछ करने के लिये मज़बूर करने या कुछ करने से रोकने या फिरौती देने के लिये की जाती है।

IPC की धारा 364:

  • यह धारा हत्या के लिये व्यपहरण या अपहरण से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो भी कोई किसी व्यक्ति की हत्या करने के लिये उसका व्यपहरण या अपहरण करे या उस व्यक्ति को ऐसे व्यवस्थित करे कि उसे अपनी हत्या होने का खतरा हो जाए, तो उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिये कठिन कारावास जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दंडित किया जाएगा और साथ ही वह आर्थिक दंड के लिये भी उत्तरदायी होगा।