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दंड विधि
CrPC की धारा 401
« »24-Oct-2023
"CrPC की धारा 401 के तहत उच्च न्यायालयों के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का दायरा सीमित है"।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने दोहराया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 401 के तहत उच्च न्यायालयों के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का दायरा सीमित है और इसका उपयोग निचली अदालतों द्वारा स्थापित निष्कर्षों के प्रतिकूल नहीं किया जा सकता है।
इस चर्चा की पृष्ठभूमि क्या है?
- याचिकाकर्त्ता और प्रतिवादी का विवाह 14 फरवरी 2009 को हुआ था।
- विवाह उपरांत प्रतिवादी ने याचिकाकर्त्ता का उसकी घरेलू कार्यशैली को लेकर मानसिक और शारीरिक उत्पीडन आरंभ कर दिया और उस पर नौकरी छोड़ने का भी दबाव बनाया।
- आगे आरोप है कि उन्होंने 20 लाख रुपए दहेज़ की भी मांग की और दहेज की मांग पूरी न करने पर चोट भी पहुँचाई।
- पुलिस ने प्रतिवादी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498-A, धारा 323, धारा 506 और धारा 34 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज़ की थी।
- सक्षम ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी को IPC की धारा 498A, 323, 506 और 34 के तहत अपराधमुक्त कर दिया।
- सक्षम ट्रायल कोर्ट द्वारा अपराधमुक्ति के उपरोक्त आदेश से व्यथित होकर, याचिकाकर्त्ता ने द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील दायर की थी, जिसे बाद में खारिज़ कर दिया गया था।
- इसके बाद याचिकाकर्त्ता द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर की गई है।
- उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज़ कर दी और निचली अदालतों द्वारा अपराधमुक्ति के आदेश की उच्च न्यायालय ने पुष्टि की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति प्रेम नारायण सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 401 के तहत उच्च न्यायालय के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का दायरा सीमित है और इसका उपयोग इसकी निचली अदालतों द्वारा स्थापित निष्कर्षों के प्रतिकूल नहीं किया जा सकता है।
- न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि उच्च न्यायालय किसी मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस नहीं भेज सकता जब तक कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दिये गए फैसले में स्पष्ट अवैधता या न्याय वंचना न हो, जैसा कि कप्तान सिंह एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (1997) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया था।
- इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि निर्णय करते हुए अपराधमुक्ति के आदेश पर उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग तब तक नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि निर्णय या अपराधमुक्ति के आदेश में कोई स्पष्ट अवैधता मौजूद न हो या न्याय की गंभीर वंचना न हो।
- न्यायालय ने आगे निष्कर्ष दिया कि उच्च न्यायालय एक अपील न्यायालय की तरह तभी कार्य कर सकता है जब CrPC की धारा 401(5) में परिकल्पित स्थिति स्वतः प्रकट होती है।
इसमें कौन-से कानूनी प्रावधान शामिल हैं?
CrPC की धारा 401 — उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियाँ —
- ऐसी किसी कार्यवाही के मामले में, जिसका अभिलेख उच्च न्यायालय ने स्वयं मँगवाया है या जिसकी उसे अन्यथा जानकारी हुई है, वह धाराएँ 386, 389, 390 और 391 द्वारा अपील न्यायालय को या धारा 307 द्वारा सेशन न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों में से किसी का स्वविवेकानुसार प्रयोग कर सकता है और जब वे न्यायाधीश, जो पुनरीक्षण न्यायालय में पीठासीन हैं, राय में समान रूप से विभाजित हैं तब मामले का निपटारा धारा 392 द्वारा उपबंधित रीति से किया जायेगा।
- इस धारा के अधीन कोई आदेश, जो अभियुक्त या अन्य व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, तब तक न किया जायेगा जब तक उसे अपनी प्रतिरक्षा में या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा सुने जाने का अवसर न मिल चुका हो।
- इस धारा की कोई बात उच्च न्यायालय को दोषमुक्ति के निष्कर्ष को दोषसिद्धि के निष्कर्ष में संपरिवर्तित करने के लिये प्राधिकृत करने वाली न समझी जायेगी।
- जहाँ इस संहिता के अधीन अपील हो सकती है, किन्तु कोई अपील की नहीं जाती है वहाँ उस पक्षकार की प्रेरणा पर, जो अपील कर सकता था, पुनरीक्षण की कोई कार्यवाही ग्रहण न की जायेगी।
- जहाँ इस संहिता के अधीन अपील होती है किन्तु उच्च न्यायालय को किसी व्यक्ति द्वारा पुनरीक्षण के लिये आवेदन किया गया है और उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा आवेदन इस गलत विश्वास के आधार पर किया गया था कि उससे कोई अपील नहीं होती है और न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है तो उच्च न्यायालय पुनरीक्षण के लिये आवेदन को अपील की अर्जी मान सकता है और उस पर तद्नुसार कार्यवाही कर सकता है।
- केरल राज्य बनाम पुट्टुमना इलथ जथवेदन नंबूदिरी (1999) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अपने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार में, उच्च न्यायालय किसी निष्कर्ष, दंड या आदेश की वैधता या औचित्य या शुद्धता के बारे में खुद को संतुष्ट करने के उद्देश्य से किसी भी कार्यवाही के रिकॉर्ड को मांग सकता है और उसकी जाँच कर सकता है। दूसरे शब्दों में, यह क्षेत्राधिकार न्याय की गड़बड़ी को ठीक करने के लिये उच्च न्यायालय द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार में से एक है। लेकिन उक्त पुनरीक्षण शक्ति की तुलना अपीलीय न्यायालय की शक्ति से नहीं की जा सकती और न ही इसे द्वितीय अपीलीय क्षेत्राधिकार के रूप में भी माना जा सकता है।