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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 406 और 407

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 29-Jan-2024

"CrPC की धारा 407 के तहत शक्तियों का उपयोग करके जाँच को अंतरित नहीं किया जा सकता है।"

न्यायमूर्ति शिवशंकर अमरन्नवर

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति शिवशंकर अमरन्नवर की पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 407 के अनुप्रयोग पर एक याचिका पर सुनवाई की।

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हेब्बागोडी पुलिस स्टेशन में दर्ज मेसर्स अचीवर एग्री इंडिया (P) लिमिटेड और अन्य बनाम राज्य के मामले में इस पर सुनवाई की है।

सब-इंस्पेक्टर, हेब्बागोडी पुलिस स्टेशन द्वारा मेसर्स अचीवर एग्री इंडिया (P) लिमिटेड और अन्य बनाम राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • मामले में वर्तमान याचिका विभिन्न पुलिस स्टेशनों में दर्ज 16 प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को उन न्यायालयों में से एक में अंतरित करने की मांग करते हुए दायर की गई थी, जहाँ उक्त अपराधों की एक साथ सुनवाई की जानी लंबित हैं।
  • इस मामले में न्यायालय को FIR के अंतरण के लिये CrPC की धारा 406 और 407 के अनुप्रयोग के संबंध में चर्चा करनी थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि " यह नहीं कहा जा सकता है कि CrPC की धारा 407 के तहत इस न्यायालय की शक्तियों को लागू करने के लिये अधीनस्थ न्यायालय में कोई मामला लंबित है, इसलिये याचिकाकर्त्ताओं ने FIR के अंतरण की मांग की है"।
  • उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि FIR का अंतरण जाँच के अंतरण के समान है।
    • CrPC की धारा 407 के तहत शक्तियों का उपयोग करके जाँच को अंतरित नहीं किया जा सकता। CrPC की धारा 407 की शक्तियों के तहत मामलों तथा अपीलों को अंतरित किया जा सकता है।

CrPC की धारा 406 क्या है?

  • धारा 406:
  • जब कभी उच्चतम न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि न्याय के उद्देश्यों के लिये यह समीचीन है कि इस धारा के अधीन आदेश किया जाए, तब वह निदेश दे सकता है कि कोई विशिष्ट मामला अथवा अपील एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ दंड न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ समान या वरिष्ठ अधिकारिता वाले दूसरे दंड न्यायालय को अंतरित कर दी जाए।
  • उच्चतम न्यायालय भारत के महान्यायवादी या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर ही इस धारा के अधीन कार्य कर सकता है और ऐसा प्रत्येक आवेदन समावेदन द्वारा किया जाएगा जो उस दशा के सिवाय, जब कि आवेदक भारत का महान्यायवादी या राज्य का महाधिवक्ता है, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा।

CrPC की धारा 407 क्या है?

  • धारा 407:
    • जब कभी उच्च न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि
      • उसके अधीनस्थ किसी दंड न्यायालय में ऋजु और पक्षपातरहित जाँच अथवा विचारण न हो सकेगा ; अथवा
      • किसी असाधारणतः कठिन विधिप्रश्न के उठने की संभाव्यता है ; अथवा
      • इस धारा के अधीन आदेश इस संहिता के किसी उपबंध द्वारा अपेक्षित है, या पक्षकारों या साक्षियों के लिए साधारणतः सुविधाप्रद होगा, या न्याय के उद्देश्यों के लिये समीचीन है, तब उच्च न्यायालय मामलों को अंतरित करने की नौमती डे सकता है।
  • धारा 407 के तहत आवेदन प्रक्रिया:
    • उपधारा (1) के तहत आदेश के लिये सभी आवेदन प्रस्ताव द्वारा किये जाने चाहिये।
    • राज्य के महाधिवक्ता के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रस्ताव के लिये हलफनामा अथवा प्रतिज्ञान आवश्यक है।
    • यदि आवेदक एक आरोपी व्यक्ति है, तो उच्च न्यायालय के पास उसे जमानत के साथ अथवा उसके बिना एक बंधपत्र प्रदान करने का आदेश देने का अधिकार है, जो उपधारा (7) के तहत उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किसी भी नुकसान के भुगतान की गारंटी देता है।
  • धारा 407 के तहत सरकारी वकील को नोटिस:
    • इस प्रकार के आवेदन करने वाले आरोपी व्यक्तियों को आवेदन के आधार की एक प्रति के साथ लोक अभियोजक को लिखित सूचना देना आवश्यक है।
    • आवेदन के गुण-दोष के आधार पर कोई आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि इस प्रकार का नोटिस देने तथा आवेदन की सुनवाई के बीच कम से कम चौबीस घंटे न बीत गए हों।
  • धारा 407 के तहत मामले अथवा अपील का अंतरण:
    • यदि आवेदन किसी अधीनस्थ न्यायालय से किसी मामले अथवा अपील के अंतरण के लिये है, तो उच्च न्यायालय संतुष्ट होने पर कि यह न्याय के हित में आवश्यक है, आवेदन के निपटान तक अधीनस्थ न्यायालय में कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश दे सकता है। .
    • हालाँकि इस रोक का धारा 309 के तहत अधीनस्थ न्यायालय की प्रतिप्रेषण (रिमांड) की शक्ति पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
  • धारा 407 के तहत आवेदन खारिज करना:
    • यदि उपधारा (1) के तहत कोई आवेदन खारिज कर दिया जाता है, तो उच्च न्यायालय, यदि उसे आवेदन हल्का अथवा कष्टप्रद लगता है, तो आवेदक को किसी भी विरोधी पक्ष को मुआवजा देने का आदेश दे सकता है, जो एक हज़ार रुपए से अधिक नहीं होगा, जैसा उच्च न्यायालय को उस परिस्थिति में उचित लगे।
  • धारा 407 के तहत परीक्षण प्रक्रिया:
    • जब उच्च न्यायालय उपधारा (1) के तहत किसी मामले को किसी भी न्यायालय से उसके समक्ष सुनवाई के लिये अंतरित करने का आदेश देता है, तो इसमें उसी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा जैसा कि पहले के न्यायालय में किया गया था।
  • धारा 407 के तहत अप्रभावी प्रावधान:
    • इस धारा की किसी भी बात का धारा 197 के तहत सरकार के किसी भी आदेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।