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आपराधिक कानून

अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 की धारा 5

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 18-Jun-2024

श्रीमती X बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य

वेश्यावृत्ति की शिकार महिला को अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 की धारा 5 के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिये दण्डित नहीं किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना

स्रोत:  कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने श्रीमती X बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य के मामले में कहा है कि वेश्यावृत्ति की शिकार महिला को अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 (अधिनियम) की धारा 5 के अंतर्गत दण्डनीय अपराधों के लिये दण्डित नहीं किया जा सकता है।

श्रीमती X बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • शिकायत का आधार यह है कि 13 जनवरी, 2013 को कुंडापुरा पुलिस स्टेशन की अपराध शाखा से जुड़े पुलिस उपनिरीक्षक को सूचना मिली कि कुछ लड़कियों को वेश्यावृत्ति में डालने के उद्देश्य से एक टेम्पो ट्रैवलर में अवैध रूप से उडुपी से गोवा ले जाया जा रहा है।
  • बाद में यह तथ्य सामने आया कि आरोपी संख्या 1, आरोपी संख्या 9 के साथ मिलकर, याचिकाकर्त्ता (आरोपी संख्या 8) तथा अन्य को वेश्यावृत्ति में शामिल करने के लिये 10-10 हज़ार रुपए देकर ले जा रहे थे।
  • उक्त घटना के आधार पर अपराध पंजीकृत किया गया और पुलिस ने जाँच के उपरांत, याचिकाकर्त्ता सहित सभी आरोपियों के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल किया, जिसे आरोपी संख्या 8 बनाया गया है।
  • संबंधित न्यायालय याचिकाकर्त्ता सहित अन्य के विरुद्ध अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध का संज्ञान लेता है।
  • इसके उपरांत, याचिकाकर्त्ता (आरोपी संख्या 8) के विरुद्ध कार्यवाही रद्द करने के लिये कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष आपराधिक याचिका दायर की जाती है।
  • याचिकाकर्त्ता की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने दृढ़तापूर्वक तर्क दिया कि याचिकाकर्त्ता अन्य आरोपियों के द्वारा वेश्यावृत्ति की शिकार है अतः याचिकाकर्त्ता पर वाद चलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • आपराधिक याचिका को उच्च न्यायालय द्वारा अनुमति दे दी गई है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों या उद्देश्य का लक्ष्य, वेश्याओं या वेश्यावृत्ति को समाप्त करना नहीं है। विधि के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो वेश्यावृत्ति में लिप्त पीड़ित को दण्डित करता हो।
  • इसमें आगे कहा गया कि अधिनियम की धारा 5 में कहीं भी यह संकेत नहीं दिया गया है कि वेश्यावृत्ति की शिकार महिला को अधिनियम की धारा 5 के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिये दण्डित किया जाना चाहिये। इसमें स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से किसी महिला या लड़की को क्रय करता है या क्रय करने का प्रयास करता है, वह इस प्रकार के अभियोजन के लिये उत्तरदायी होगा।

अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 की धारा 5 क्या है?

परिचय:

  • इस अधिनियम का उद्देश्य अनैतिक कार्यों के व्यावसायीकरण और महिलाओं की तस्करी को रोकना है।
  • यह यौन कार्य से संबंधित विधिक ढाँचे को रेखांकित करता है।
  • हालाँकि यह अधिनियम यौन कार्य को अवैध घोषित नहीं करता, परंतु यह वेश्यालय चलाने पर रोक लगाता है। वेश्यावृत्ति में शामिल होना विधिक रूप से मान्यता प्राप्त है, परंतु लोगों को बहला-फुसलाकर यौन गतिविधियों में शामिल करना अवैध माना जाता है।

वेश्यावृत्ति की परिभाषा:

  • अधिनियम के अनुसार वेश्यावृत्ति, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये व्यक्तियों का यौन शोषण या दुर्व्यवहार है

धारा 5:

  • यह धारा वेश्यावृत्ति के लिये किसी व्यक्ति को क्रय करने, प्रेरित करने या ले जाने से संबंधित है।
  • यह कहती है कि-

(1) कोई भी व्यक्ति जो-

(a) किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के प्रयोजन के लिये, चाहे उसकी सहमति से या उसके बिना, क्रय करता है या क्रय करने का प्रयास करता है; या

(b) किसी व्यक्ति को एक स्थान से जाने के लिये इस आशय से प्रेरित करना कि वह वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से वेश्यालय का निवासी बन जाए या वहाँ बार-बार जाए; या

(c) किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति कराने के लिये पालने के उद्देश्य से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है या ले जाने का प्रयास करता है, या ले जाने का कारण बनता है; या

(d) किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति करने के लिये प्रेरित करना या उसका माध्यम बनना;

दोषसिद्धि पर कम-से-कम तीन वर्ष और अधिक-से-अधिक सात वर्ष की अवधि के कठोर कारावास से दण्डनीय होगा तथा साथ ही दो हज़ार रुपए तक का अर्थदण्ड भी होगा तथा यदि इस उपधारा के अधीन कोई अपराध किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध किया जाता है तो सात वर्ष की अवधि के कारावास के दण्ड को बढ़ाकर चौदह वर्ष की अवधि के कारावास तक किया जा सकेगा।

परंतु यदि वह व्यक्ति जिसके संबंध में इस उपधारा के अधीन कोई अपराध किया गया है, -

(i) यदि वह बालक है, तो इस उपधारा के अधीन दण्ड कम-से-कम सात वर्ष की अवधि के कठोर कारावास तक, किंतु आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकेगा; तथा

(ii) यदि वह अल्पवयस्क है, तो इस उपधारा के अंतर्गत उसे कम-से-कम सात वर्ष तथा अधिक-से-अधिक चौदह वर्ष की अवधि के कठोर कारावास का दण्ड दिया जाएगा।

(3) इस धारा के अंतर्गत किया गया अपराध विचारणीय होगा-

(a) वह स्थान जहाँ से किसी व्यक्ति को प्राप्त किया जाता है, जाने के लिये प्रेरित किया जाता है, ले जाया जाता है या जहाँ से ऐसे व्यक्ति को प्राप्त करने या ले जाने का प्रयास किया जाता है; या

(b) उस स्थान पर जहाँ वह उत्प्रेरण के परिणामस्वरूप गया हो या जहाँ उसे ले जाया गया हो या ले जाने का कारण बना हो या जहाँ उसे ले जाने का प्रयास किया गया हो।

भारत में यौन कार्यों की वैधता क्या है?

पेशे के रूप में यौन कार्य:

  • बुद्धदेव करमास्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2022) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यौन कार्य को एक “पेशे” के रूप में मान्यता दी है और कहा है कि इसके कर्मी विधि के समान संरक्षण के अधिकारी हैं तथा आपराधिक विधि सभी मामलों में ‘आयु’ एवं ‘सहमति’ के आधार पर समान रूप से लागू होनी चाहिये।
  • न्यायालय ने माना कि स्वैच्छिक यौन संबंध कोई अपराध नहीं है।

बुद्धदेव करमास्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2022) में निर्णय की मुख्य विशेषताएँ :

  • आपराधिक विधि:
    • यौनकर्मियों को विधि का समान संरक्षण प्राप्त है और आपराधिक विधि सभी मामलों में ‘आयु’ एवं ‘सहमति’ के आधार पर समान रूप से लागू होनी चाहिये।
    • जब यह स्पष्ट हो जाए कि यौनकर्मी वयस्क है तथा इस कार्य में सहमति से भाग ले रही है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्यवाही करने से बचना चाहिये।
    • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को उपलब्ध है।
    • जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाए तो यौनकर्मियों को “गिरफ्तार या दण्डित या परेशान या पीड़ित नहीं किया जाना चाहिये”, “क्योंकि स्वैच्छिक यौन कार्य अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना ही विधिविरुद्ध है”।
  • यौन कर्मी के बच्चे के अधिकार:
    • किसी यौन कर्मी के बच्चे को केवल इस आधार पर उसकी माँ से अलग नहीं किया जाना चाहिये कि उसकी माँ यौन व्यापार में शामिल है।
    • मानवीय शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा यौनकर्मियों और उनके बच्चों तक विस्तारित है।
    • इसके अलावा, यदि कोई अल्पवयस्क वेश्यालय में या यौनकर्मियों के साथ रहता हुआ पाया जाता है, तो यह नहीं माना जाना चाहिये कि बच्चे की तस्करी की गई थी।
    • यदि यौनकर्मी यह दावा करता है कि वह उसका बेटा/बेटी है, तो यह निर्धारित करने के लिये परीक्षण किया जा सकता है कि क्या यह दावा सही है और यदि ऐसा है, तो उस अल्पवयस्क को बलात अलग नहीं किया जाना चाहिये।
  • चिकित्सा देखभाल:
    • यौन उत्पीड़न की शिकार यौनकर्मियों को तत्काल चिकित्सा-कानूनी देखभाल सहित हर सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
  • मीडिया की भूमिका:
    • मीडिया को गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौनकर्मियों की पहचान उजागर न करने के लिये अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिये, चाहे वे पीड़ित हों या आरोपी और ऐसी कोई भी तस्वीर प्रकाशित या प्रसारित न की जाए जिससे उनकी पहचान उजागर हो जाए।