वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 52A
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वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 52A

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 21-Nov-2023

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि वक्फ अधिनियम, 1955 की धारा 52A के प्रावधानों के तहत ट्रायल कोर्ट केवल बोर्ड या इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी द्वारा की गई शिकायत पर संज्ञान ले सकता है, न कि पुलिस रिपोर्ट के आधार पर।

  • उपरोक्त टिप्पणी सैय्यद मुर्तुज़ा सैय्यद कासिम हाजी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य के मामले में की गई थी।

सैय्यद मुर्तुज़ा सैय्यद कासिम हाजी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में प्रतिवादी जो वक्फ अधिकारी है, ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) दर्ज की।
  • इसके आधार पर पुलिस ने याचिकाकर्त्ता के खिलाफ वक्फ अधिनियम की धारा 52A के तहत अपराध दर्ज कर लिया है।
  • विद्वान अपर सिविल जज ने आरोप पत्र के आधार पर याचिकाकर्त्ता के खिलाफ वक्फ अधिनियम की धारा 52A के तहत अपराध मानकर संज्ञान लिया।
  • इसके बाद उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द करने के लिये कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका मंज़ूर करते हुए पूरी कार्यवाही रद्द कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि वक्फ अधिनियम की धारा 52A के प्रावधानों के तहत ट्रायल कोर्ट केवल बोर्ड या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी द्वारा की गई शिकायतों का संज्ञान ले सकता है, पुलिस रिपोर्ट के आधार पर नहीं।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि शिकायत शब्द को आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 2(d) के तहत परिभाषित किया गया है। इसमें पुलिस रिपोर्ट शामिल नहीं है।
    • CrPC की धारा 2(d) के तहत शिकायत की परिभाषा में पुलिस रिपोर्ट को स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है।

इसमें क्या कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

  • वक्फ अधिनियम:
    • वक्फ अधिनियम, 1995, जिसने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 1984 को निरस्त और प्रतिस्थापित किया, 1 जनवरी, 1996 को लागू हुआ।
    • यह अधिनियम औकाफ (संपत्तियाँ, विरासतें विशेष रूप से धर्मार्थ प्रयोजनों के लिये) के बेहतर प्रशासन और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों का प्रावधान करता है।
    • हालाँकि अधिनियम के काम करने के वर्षों में यह व्यापक भावना रही है कि यह अधिनियम औकाफ के प्रशासन में सुधार करने में पर्याप्त प्रभावी साबित नहीं हुआ है।
  • वक्फ अधिनियम की धारा 52A:
    • यह धारा बोर्ड की मंज़ूरी के बिना वक्फ संपत्ति के अन्यसंक्रामण (पैतृक या सहदायिकी संपत्ति होने का दावा करना) के लिये दंड से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
      (1) जो कोई भी किसी भी जंगम या स्थावर संपत्ति, जो कि वक्फ संपत्ति है, को बोर्ड की पूर्व मंज़ूरी के बिना, किसी भी तरीके से स्थायी या अस्थायी रूप से अन्यसंक्रामण करेगा या खरीदेगा या कब्ज़ा करेगा, वह दो वर्ष तक की अवधि के लिये कठोर कारावास से दंडनीय होगा।
      बशर्ते कि इस प्रकार अन्यसंक्रामण की गई वक्फ संपत्ति, उस समय लागू किसी भी कानून के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बिना किसी मुआवज़े के बोर्ड में निहित कर दी जाएगी।
      (2) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में निहित किसी भी तथ्य के बावजूद, इस धारा के तहत दंडनीय कोई भी अपराध संज्ञेय और गैर-ज़मानती होगा।
      (3) बोर्ड या इस ओर से राज्य सरकार द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी द्वारा की गई शिकायत के अतिरिक्त कोई भी न्यायालय इस धारा के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।
      (4) मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट से कमतर कोई भी न्यायालय इस धारा के तहत दंडनीय किसी भी अपराध की सुनवाई नहीं करेगा।