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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 53 A
« »14-Feb-2024
संजय विश्वास बनाम राज्य “आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 53A को लागू करके अभियोजन मामले में अंतराल को कम करना भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा।” जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य |
स्रोत: कलकत्ता उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने संजय विश्वास बनाम राज्य के मामले में माना है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 53A को लागू करके अभियोजन मामले में अंतराल कम करना, भारत के संविधान,1950 के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा।
संजय विश्वास बनाम राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में न्यायालय विशेष न्यायाधीश के एक आदेश के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष दायर आपराधिक पुनरीक्षण की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसने डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग के लिये आरोपी, पीड़ित और पीड़ित के नाबालिग बच्चे के रक्त के नमूने लेने के लिये अभियोजन पक्ष के आवेदन को अनुमति दी थी।
- याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि डीएनए परीक्षण के लिये आवेदन केवल अभियोजन पक्ष के मामले में कमियों को भरने के लिये किया गया था।
- इसमें आगे कहा गया कि आवेदन क्रॉस-परीक्षण पूरा होने के बाद किया गया था, तथा इसमें कहा गया कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के प्रावधानों के तहत एक सरकारी अभियोजक के पास पुलिस को निर्देश देने का अधिकार नहीं था।
- राज्य ने तर्क दिया कि CrPC की धारा 53A को लागू करने को गलत नहीं ठहराया जा सकता है। यह प्रस्तुत किया गया कि अतिरिक्त साक्ष्य जोड़ने के उद्देश्य से इस धारा को किसी भी समय लागू किया जा सकता है।
- उच्च न्यायालय ने यह याचिका मंजूर कर ली।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य की एकल पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 53 A के तहत विचार किये गए तथ्य को एकत्र करने के रूप में जाँच में कमियों को नज़रअंदाज करने से यह अनुमान लगाया जाता है कि अभियोजन पक्ष ने जाँच के बाद धारा 53 A को लागू करके कमियों को भरने की कोशिश की थी।
- न्यायालय ने कहा कि अभियोजन मामले में कमियों को भरने के लिये जांच के बाद नए साक्ष्य की अनुमति दी गई और इस तरह की कार्रवाइयों से याचिकाकर्ता के अनुच्छेद 21 के अधिकारों का हनन हुआ।
- आगे यह कहा गया कि COI का अनुच्छेद 21 एक निष्पक्ष सुनवाई का प्रतीक है और इसमें माना गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को वाद का लाभ मिलेगा, जो कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करता है। आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों को नागरिक या सामाजिक विचारों को उचित ठहराने के लिये कमजोर नहीं किया जा सकता है जो प्रकृति में संपार्श्विक हैं।
CrPC की धारा 53A?
(1) जब किसी व्यक्ति को बलात्संग या बलात्संग का प्रयत्न करने का अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि उस व्यक्ति की परीक्षा से ऐसा अपराध करने के बारे में साक्ष्य प्राप्त होगा तो सरकार द्वारा या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल में नियोजित किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी के लिये और उस स्थान से जहाँ अपराध किया गया है, सोलह किलोमीटर की परिधि के भीतर ऐसे चिकित्सा-व्यवसायी की अनुपस्थिति में ऐसे पुलिस अधिकारी के निवेदन पर, जो उप निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, किसी अन्य रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी के लिये, तथा सद्भावपूर्वक उसकी सहायता के लिये तथा उसके निदेश के अधीन कार्य रहे किसी व्यक्ति के लिये, ऐसे गिरफ्तार व्यक्ति की ऐसी परीक्षा करना और उस प्रयोजन के लिये उतनी शक्ति का प्रयोग करना जितनी युक्तियुक्त रूप से आवश्यक हो, विधिपूर्ण होगा ।
(2) ऐसी परीक्षा करने वाला रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी ऐसे व्यक्ति की बिना विलंब के परीक्षा करेगा और उसकी परीक्षा की एक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें निम्नलिखित विशिष्टियां दी जाएँगी, अर्थात् :-
(i) अभियुक्त और उस व्यक्ति का, जो उसे लाया है, नाम व पता ;
(ii) अभियुक्त की आयु ;
(iii) अभियुक्त के शरीर पर क्षति के निशान, यदि कोई हों;
(iv) डी.एन.ए. प्रोफाइल करने के लिये अभियुक्त के शरीर से ली गई सामग्री का वर्णन ; और
(v) उचित ब्यौरे सहित अन्य तात्त्विक विशिष्टियाँ।
(3) रिपोर्ट में संक्षेप में वे कारण अधिकथित किये जाएँगे, जिनसे प्रत्येक निष्कर्ष निकाला गया है।
(4) परीक्षा प्रारंभ और समाप्ति करने का सही समय भी रिपोर्ट में अंकित किया जाएगा।
(5) रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी, बिना विलंब के अन्वेषण अधिकारी को रिपोर्ट भेजेगा, जो उसे धारा 173 में निर्दिष्ट मजिस्ट्रेट को उस धारा की उपधारा (5) के खंड (a) में निर्दिष्ट दस्तावेज़ों के भाग के रूप में भेजेगा।]
- धारा 53 A गिरफ्तारी के बाद पुलिस को एक रोडमैप देता है।
- यह धारा पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी को जाँच अधिकारी को रिपोर्ट भेजने का प्रावधान करती है जो इसके बाद इसे मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
- यह धारा न्यायालय को जाँच चरण के बाद उस धारा के तहत जाँच का निर्देश देने की कोई शक्ति नहीं देती है, जो आरोप तय करने के साथ समाप्त होती है।