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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 91
« »21-Feb-2024
राजस्थान राज्य बनाम स्वर्ण सिंह @ बाबा “आरोप तय करने के चरण में दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिये बाध्य करने के लिये न्यायालय CrPC की धारा 91 के तहत प्रक्रिया जारी नहीं कर सकते हैं।” न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान राज्य बनाम स्वर्ण सिंह @ बाबा के मामले में माना है कि न्यायालय आरोप तय करने के चरण में अभियुक्त द्वारा किये गए आवेदन के आधार पर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने हेतु मजबूर करने के लिये CrPC की धारा 91 के तहत प्रक्रिया जारी नहीं कर सकते हैं।
राजस्थान राज्य बनाम स्वर्ण सिंह @ बाबा मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वर्तमान मामले में, अभियुक्त को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS) के प्रावधानों के तहत अपराध के लिये ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है।
- अभियुक्त ने ज़ब्ती की तारीख के लिये ज़ब्ती अधिकारी और कुछ अन्य पुलिस अधिकारियों के कॉल विवरण को समन करने के लिये ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर किया था।
- उक्त आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज़ कर दिया था।
- इसके बाद अभियुक्त ने राजस्थान उच्च न्यायालय में अपील की।
- उच्च न्यायालय ने उक्त याचिका को स्वीकार करते हुए राजस्थान राज्य के सभी न्यायालयों को निर्देश दिया है कि जब भी आपराधिक कार्यवाही के दौरान अभियुक्त द्वारा कॉल-डिटेल्स समन करने के लिये कोई आवेदन दायर किया जाएगा, तो उसे स्थगित नहीं किया जाएगा और उसपर तुरंत निर्णय लिया जाएगा।
- यह इस आदेश के विरुद्ध; अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए अपील स्वीकार की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि न्यायालय आरोप तय करने के चरण में अभियुक्त द्वारा किये गए आवेदन के आधार पर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिये मजबूर करने के लिये CrPC की धारा 91 के तहत प्रक्रिया जारी नहीं कर सकते हैं।
- आगे कहा गया कि यदि अभियुक्त की प्रतिरक्षा के लिये कोई दस्तावेज़ आवश्यक या वांछनीय है, तो आरोप तय करने के प्रारंभिक चरण में CrPC की धारा 91 को लागू करने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि उस स्तर पर अभियुक्त की प्रतिरक्षा बचाव प्रासंगिक नहीं है। जहाँ तक अभियुक्त का सवाल है, धारा 91 के तहत आदेश मांगने का उसका अधिकार आमतौर पर प्रतिरक्षा के चरण तक नहीं आएगा।
CrPC की धारा 91 क्या है?
परिचय:
यह धारा दस्तावेज़ों या अन्य चीज़ों को प्रस्तुत करने के लिये समन से संबंधित है जबकि यही प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 94 के तहत शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि-
(1) जब कभी कोई न्यायालय या पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी यह समझता है कि किसी ऐसे अन्वेषण, जाँच, विचारण, या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों के लिये, जो इस संहिता के अधीन ऐसे न्यायालय या अधिकारी के द्वारा या समक्ष हो रही हैं, किसी दस्तावेज़ या अन्य चीज़ का पेश किया जाना आवश्यक या वांछनीय है तो जिस व्यक्ति के कब्ज़े या शक्ति में ऐसी दस्तावेज़ या चीज़ के होने का विश्वास है उसके नाम ऐसा न्यायालय एक समन या ऐसा अधिकारी एक लिखित आदेश उससे यह अपेक्षा करते हुए जारी कर सकता है कि उस समन या आदेश में उल्लिखित समय और स्थान पर उसे पेश करे अथवा हाज़िर हो तथा उसे पेश करे।
(2) यदि कोई व्यक्ति, जिससे इस धारा के अधीन दस्तावेज़ या अन्य चीज़ पेश करने की ही अपेक्षा की गई है उसे पेश करने के लिये स्वयं हाज़िर होने के बजाय उस दस्तावेज़ या चीज़ को पेश करवा दे तो यह समझा जाएगा कि उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर दिया है।
(3) इस धारा की कोई बात-(a) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 123 और 124 या बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी; अथवा
(b) डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज़ या किसी पार्सल या चीज़ को लागू होने वाली नहीं समझी जाएगी।
निर्णयज विधि:
- नित्य धर्मानंद बनाम गोपाल शीलम रेड्डी (2018) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त आरोप तय करने के चरण में CrPC की धारा 91 को लागू नहीं कर सकता है और उसे लागू करने का अधिकार नहीं होगा।