भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 95
Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है









होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 95

    «    »
 28-Jun-2024

राधे यादव बनाम प्रभास यादव

“धारा 91 सभी दस्तावेज़ो पर लागू होती है, चाहे वे अधिकारों के निपटान का दावा करते हों या नहीं, जबकि धारा 92 उन दस्तावेज़ो पर लागू होती है जिन्हें अधिकारों के निपटान के रूप में वर्णित किया जा सकता है।”

न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

स्रोत: पटना उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने राधे यादव बनाम प्रभास यादव के मामले में माना है कि जब बिक्री विलेख में प्लॉट संख्या प्रश्नगत हो तो दस्तावेज़ो की विषय-वस्तु को सत्यापित करने के लिये मौखिक साक्ष्य स्वीकार्य है।

राधे यादव बनाम प्रभास यादव मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता ने भूमि के स्वामित्व की घोषणा और मौखिक साक्ष्य को स्वीकार करने के लिये वाद दायर किया था, क्योंकि दस्तावेज़ में प्लॉट संख्या का गलत वर्णन किया गया था और यह तथ्य की गलती थी।
  • मुंसिफ न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता को वाद में शामिल भूमि की प्लॉट संख्या 659 और 654 की सीमा के आधार पर प्रतिवादी से प्रतिपरीक्षा करने की अनुमति नहीं दी।
  • यह कहा गया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 92 के अनुसार, दस्तावेज़ के विवरण को परिवर्तित करने के लिये मौखिक साक्ष्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
  • याचिकाकर्त्ता द्वारा एक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई जिसे ट्रायल कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया।
  • बाद में, वर्तमान मामले में याचिकाकर्त्ता ने पटना उच्च न्यायालय में एक सिविल विविध याचिका दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 91 और धारा 92 का अवलोकन किया और उसकी व्यापक व्याख्या की।
  • न्यायालय ने कहा कि IEA की धारा 91 और धारा 92 “सर्वोत्तम साक्ष्य नियम” पर आधारित हैं।
  • यह कहा गया कि जब श्रेष्ठ साक्ष्य उपलब्ध हो तो उसके विपरीत निम्न स्तर का साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 91 को लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 92 के अनुसार, धोखाधड़ी या गलती से प्रस्तुत किये गए दस्तावेज़ को अमान्य करने के लिये कोई भी तथ्य प्रस्तुत किया जा सकता है, बशर्ते कि गलती वास्तविक तथा आकस्मिक होनी चाहिये।
  • यह देखा गया कि धारा 91 और धारा 92 एक दूसरे की पूरक हैं।
  • यह माना गया कि विक्रय विलेख में किसी भी गलत विवरण को सिद्ध करने के लिये मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकता है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 95 क्या है?

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 95 में कहा गया है कि यदि दस्तावेज़ की शर्तें BSA की धारा 94 में सिद्ध हो गई हैं, तो कुछ शर्तों को छोड़कर कोई अन्य साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिये।
    • यह प्रावधान पहले IEA की धारा 92 के अंतर्गत आता था।
  • जब किसी ऐसे अनुबंध, अनुदान या संपत्ति के अन्य निपटान, या किसी मामले को, जिसे विधि द्वारा दस्तावेज़ के रूप में संक्षिप्त किया जाना अपेक्षित है, अंतिम खंड के अनुसार सिद्ध कर दिया गया है, तो किसी भी मौखिक समझौते या कथन का कोई साक्ष्य, पक्षकारों या उनके हित प्रतिनिधियों के बीच, उसके नियमों का खंडन करने, परिवर्तन करने, जोड़ने या घटाने के उद्देश्य से स्वीकार नहीं किया जाएगा;
  •  परंतुक (1): कोई भी तथ्य सिद्ध किया जा सकेगा जो किसी दस्तावेज़ को अवैध ठहराएगा, या जो किसी व्यक्ति को उससे संबंधित किसी डिक्री या आदेश का हकदार बनाएगा; जैसे धोखाधड़ी, धमकी, अवैधता, उचित निष्पादन का अभाव, किसी संविदाकारी पक्ष में क्षमता का अभाव, प्रतिफल का अभाव या असफलता, या तथ्य या विधि की त्रुटि;
  • परंतुक (2): किसी भी मामले में किसी भी अलग मौखिक समझौते का अस्तित्व, जिस पर कोई दस्तावेज़ सूचना नही देता है, और जो इसकी शर्तों के साथ असंगत नहीं है, सिद्ध किया जा सकता है। यह विचार करते समय कि यह परंतुक लागू होता है या नहीं, न्यायालय को दस्तावेज़ की औपचारिकता के स्तर पर ध्यान देना चाहिये;
  • परंतुक (3): किसी पृथक मौखिक करार का अस्तित्व, जो किसी ऐसी संविदा, अनुदान या संपत्ति के व्ययन के अधीन किसी बाध्यता के लिये पूर्व शर्त गठित करता है, सिद्ध किया जा सकेगा।
  • परंतुक (4): किसी ऐसी संविदा, अनुदान या संपत्ति के व्ययन को रद्द या संशोधित करने के लिये किसी सुस्पष्ट पश्चातवर्ती मौखिक करार का अस्तित्व सिद्ध किया जा सकेगा, सिवाय उन मामलों के जिनमें ऐसी संविदा, अनुदान या संपत्ति का व्ययन विधि द्वारा लिखित रूप में होना अपेक्षित है, या दस्तावेजों के रजिस्ट्रीकरण के संबंध में प्रवृत्त विधि के अनुसार रजिस्ट्रीकृत किया गया है।
  • परंतुक (5): कोई प्रथा या रीति जिसके द्वारा किसी संविदा में स्पष्ट रूप से उल्लिखित न की गई घटनाएँ सामान्यतः उस भांति की संविदाओं से संलग्न कर दी जाती हैं, सिद्ध की जा सकेगी;
  • बशर्ते कि ऐसी घटना को संलग्न करना अनुबंध की स्पष्ट शर्तों के प्रतिकूल या असंगत न हो:
  • परंतुक (6): कोई भी तथ्य सिद्ध किया जा सकेगा जो यह दर्शाता हो कि दस्तावेज़ की भाषा उसमें विद्यमान तथ्यों से किस प्रकार संबंधित है।

ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • जहुरी साह एवं अन्य बनाम द्वारका प्रसाद झुनझुनवाला एवं अन्य (1967): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि दत्तक-ग्रहण विलेख की विषय-वस्तु को सिद्ध करने के लिये मौखिक साक्ष्य स्वीकार्य है।
  • एम. डी. गोपालैया बनाम श्रीमती उषा प्रियदर्शिनी एवं अन्य (2002): इस मामले में यह माना गया कि जब किसी दस्तावेज़ में उल्लिखित अंकों में त्रुटि हो तो मौखिक साक्ष्य स्वीकार्य है।
  • चिमनराम मोतीलाल बनाम दिवानचद गोविंदराम (1932): इस मामले में यह माना गया कि जब दस्तावेज़ की सामग्री में कोई गलती होती है तो उन्हें सिद्ध करने के लिये मौखिक साक्ष्य स्वीकार्य है।