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ज़ब्ती रिपोर्ट

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 14-May-2024

शेंटो वर्गीस बनाम जुल्फिकार हुसैन एवं अन्य

पुलिस अधिकारी द्वारा ज़ब्ती की शीघ्र सूचना, क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय को न देने से ज़ब्ती आदेश रद्द नहीं होगा।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि, जब विधि के अंतर्गत यह आदेश नहीं है कि, कृत्य एक युक्तियुक्त समयावधि के अंदर किया जाना चाहिये, तो इससे तात्पर्य यह होगा कि कृत्य के युक्तियुक्त समयावधि अंदर ही किया जाना चाहिये। यह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 102 (3) के संदर्भ में कहा गया था।

शेंटो वर्गीस बनाम जुल्फिकार हुसैन एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • आरोपी (प्रतिवादियों) ने अपीलकर्त्ता से 47 केरल मॉडल के सोने की चेन का ऑर्डर दिया, जो एक कंपनी में डिलीवरी एजेंट के रूप में काम करता था।
  • आरोपी, अपीलकर्त्ता को सोने की चेन के बदले समान मूल्य की सोने की ईंट प्रदान करने के लिये तैयार था।
  • अपीलकर्त्ता की शिकायत के अनुसार उसे जो सोने की ईंटें सौंपी गईं, वे नकली थीं।
  • उन्होंने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की तथा पुलिस ने जाँच शुरू की और जाँच के दौरान पुलिस ने पाया कि आरोपियों के बैंक खातों में 19,83,036/- रुपए की कुछ धनराशि जमा की गई थी।
  • जाँच अधिकारी ने 09 जनवरी 2023 को आरोपियों के बैंक खाते फ्रीज़ करने के लिये बैंक को निर्देश दिया।
  • खाता फ्रीज़ करने के आदेश की सूचना 27 जनवरी 2023 को मजिस्ट्रेट को दी गई।
  • आरोपियों ने ज़ब्त किये गए बैंक खातों को कब्ज़े में लेने के लिये क्षेत्राधिकारी मजिस्ट्रेट से संपर्क किया।
  • इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील की तथा CrPC की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर बैंक खातों को डी-फ्रीज़ करने की मांग की।
  • उच्च न्यायालय ने बैंक खातों को डी-फ्रीज़ करने का आदेश पारित किया तथा इसलिये ज़ब्ती के आदेश को केवल इस आधार पर अमान्य कर दिया कि ज़ब्ती के आदेश की सूचना अविलंब मजिस्ट्रेट को नहीं दी गई थी।
  • उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय (SC) के समक्ष अपील दायर की गई थी।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि पूर्व निर्णयों की वह पंक्ति, जिसमें यह माना गया है कि रिपोर्टिंग के दायित्व अनुपालन में विलंब के लिये 'ज़ब्ती आदेश' को दूषित कर दिया गया है, स्पष्ट रूप से गलत घोषित किया गया है तथा तद्नुसार, खारिज कर दिया गया है।
  • न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को ज़ब्ती की रिपोर्ट करने की बाध्यता न तो ज़ब्ती की शक्ति का प्रयोग करने के लिये न्यायिक पूर्व-निर्णय की आवश्यकता है तथा न ही ऐसी शक्ति का प्रयोग करने के लिये रिपोर्टिंग के दायित्व के अनुपालन के अधीन है।
  • चूँकि अधिकारी पर ज़ब्ती की ‘अविलंब’ रिपोर्ट करने का दायित्व है, इसलिये ‘अविलंब’ का अर्थ समझना आवश्यक है तथा उच्चतम न्यायालय ने अविलंब का अर्थ समझाया। अभिव्यक्ति ‘अविलंब’ का अर्थ है 'जितना जल्दी हो सके', 'उचित गति और शीघ्रता के साथ', 'तत्परता की भावना के साथ' तथा 'बिना किसी अनावश्यक विलंब के'।
  • उस अर्थ में, 'अविलंब' शब्द की व्याख्या उस क्षेत्र पर निर्भर करेगी, जिसमें वह यात्रा करता है तथा मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर अपना निर्णय लेगा, जो कि परिवर्तनशील हो सकता है।
  • इसलिये, यह तय करने में कि क्या पुलिस अधिकारी ने CrPC की धारा 102(3) के अधीन अपने दायित्व का पूर्ण निर्वहन किया है, मजिस्ट्रेट को सबसे पहले यह जाँच करनी होगी कि क्या ज़ब्ती की अविलंब सूचना दी गई थी।
  • उच्चतम न्यायालय ने दोहराया कि इस तरह के विलंब के कारण ज़ब्ती का कार्य दूषित नहीं होगा।

कुछ संपत्ति ज़ब्त करने के पुलिस अधिकारी की शक्ति से संबंधित प्रावधान का विधिक इतिहास क्या है?

दण्ड प्रक्रिया संहिता

धारा

प्रावधानों का विवरण

 1882

धारा 523

किसी भी पुलिस-अधिकारी द्वारा धारा 51 के अंतर्गत ली गई संपत्ति की ज़ब्ती, या चोरी होने का आरोप या संदेह, या ऐसी परिस्थितियों में पाया जाना, जो किसी अपराध के घटित होने का संदेह पैदा करता है, तुरंत एक मजिस्ट्रेट को सूचित किया जाएगा, जो ऐसा आदेश देगा, जैसा कि वह ऐसी संपत्ति को उसके स्वामित्व के अधिकारी व्यक्ति को सौंपने के संबंध तो ऐसी संपत्ति की अभिरक्षा एवं उत्पादन के संबंध में में उचित समझता है, या, यदि ऐसे व्यक्ति को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।

1898

धारा 550

कोई भी पुलिस कार्यालय, किसी भी संपत्ति को ज़ब्त कर सकता है जिस पर चोरी होने का आरोप हो या संदेह हो, या जो ऐसी परिस्थितियों में पाई जा सकती है, जो किसी अपराध के घटित होने का संदेह पैदा करती हो, ऐसा पुलिस-अधिकारी, यदि किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी कार्यालय के अधीनस्थ है, तो शीघ्र उस अधिकारी को ज़ब्ती की रिपोर्ट करेगा।

1973

धारा 102

(1) कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी संपत्ति को ज़ब्त कर सकता है, जिस पर चोरी होने का आरोप या संदेह हो, या जो ऐसी परिस्थितियों में पाई जा सकती है, जो किसी अपराध के होने का संदेह पैदा करती है।

(2) ऐसा पुलिस अधिकारी, यदि वह किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी के अधीनस्थ है, तो ज़ब्ती की रिपोर्ट तुरंत उस अधिकारी को देगा।

(3) उप-धारा (1) के अनुसार कृत्य करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकारी तुरंत ज़ब्ती की रिपोर्ट अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को देगा और जहाँ  ज़ब्त की गई संपत्ति ऐसी है कि इसे आसानी से न्यायालय में नहीं ले जाया जा सकता है, या जहाँ उचित आवास सुरक्षित करने में कठिनाई हो रही है, ऐसी संपत्ति की अभिरक्षा के लिये, या जहाँ संपत्ति को पुलिस अभिरक्षा में बनाए रखना जाँच के उद्देश्य के लिये आवश्यक नहीं माना जा सकता है, वह किसी भी व्यक्ति को उसके समक्ष संपत्ति का उत्पादन करने के लिये बांड निष्पादित करने पर उसकी अभिरक्षा दे सकता है। न्यायालय को जब भी आवश्यक हो तथा उसके निपटान के संबंध में न्यायालय के अगले आदेशों को प्रभावी करना होगा:

बशर्ते कि जहाँ उपधारा (1) के अंतर्गत ज़ब्त की गई संपत्ति त्वरित एवं प्राकृतिक क्षय के अधीन है और यदि ऐसी संपत्ति के कब्ज़े का स्वामी व्यक्ति अज्ञात या अनुपस्थित है तथा ऐसी संपत्ति का मूल्य पाँच सौ रुपए से कम है, तो यह हो सकता है, पुलिस अधीक्षक के आदेशों के अधीन तुरंत नीलामी द्वारा बेचा जाएगा एवं धारा 457 तथा 458 के प्रावधान, जहाँ तक संभव हो, ऐसी बिक्री की शुद्ध आय पर लागू होंगे।

2023 (भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता

धारा 106

(1) कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी संपत्ति को ज़ब्त कर सकता है, जिस पर चोरी होने का आरोप या संदेह हो, या जो ऐसी परिस्थितियों में पाई जा सकती है, जो किसी अपराध के होने का संदेह पैदा करती है।

(2) ऐसा पुलिस अधिकारी, यदि वह किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी के अधीनस्थ है, तो ज़ब्ती की रिपोर्ट तुरंत उस अधिकारी को देगा।

(3) उप-धारा (1) के तहत कार्य करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकारी तुरंत ज़ब्ती की रिपोर्ट अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को देगा और जहाँ ज़ब्त की गई संपत्ति ऐसी है कि इसे आसानी से न्यायालय में नहीं ले जाया जा सकता है, या जहाँ उचित आवास सुरक्षित करने में कठिनाई हो रही है, ऐसी संपत्ति की अभिरक्षा के लिये, या जहाँ संपत्ति को पुलिस अभिरक्षा में रखना जाँच के प्रयोजन के लिये आवश्यक नहीं माना जा सकता है, वह न्यायालय  के समक्ष संपत्ति की सुरक्षा करने के लिये बांड निष्पादित करने पर किसी भी व्यक्ति को उसकी अभिरक्षा दे सकता है। जब भी आवश्यक हो और उसके निपटान के संबंध में न्यायालय के अगले आदेशों को प्रभावी करना:

   बशर्ते कि जहाँ उपधारा (1) के तहत ज़ब्त की गई संपत्ति त्वरित और प्राकृतिक क्षय के अधीन है तथा यदि ऐसी संपत्ति के कब्ज़े का स्वामी अज्ञात या अनुपस्थित है एवं ऐसी संपत्ति का मूल्य पाँच सौ रुपए से कम है, तो यह हो सकता है पुलिस अधीक्षक के आदेश के तहत तुरंत नीलामी द्वारा बेचा जाएगा तथा धारा 505 और 506 के प्रावधान, जहाँ तक संभव हो, ऐसी बिक्री की शुद्ध आय पर लागू होंगे।

 CrPC की धारा 102 से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या हैं?

  • नेवादा प्रॉपर्टीज़ प्राइवेट लिमिटेड (अपने निदेशकों के माध्यम से) बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2019):
    • उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 102 के अधीन 'किसी भी संपत्ति' शब्द में 'अचल संपत्ति' शामिल नहीं होगी।
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि संहिता की धारा 102 के अधीन एक पुलिस अधिकारी की किसी संपत्ति को ज़ब्त करने की शक्ति, जो ऐसी परिस्थितियों में पाई जा सकती है, जो किसी अपराध के होने का संदेह पैदा करती है, में किसी अचल संपत्ति को कुर्क करने, ज़ब्त करने और सील करने की शक्ति शामिल नहीं होगी।
  • रतन बाबूलाल लाठ बनाम कर्नाटक राज्य (2021):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन आरोपी व्यक्ति का बैंक खाता CrPC की धारा 102 लागू करके कुर्क नहीं किया जा सकता है।
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 102 का सहारा लेकर अपीलकर्त्ता के बैंक खाते को फ्रीज़ करना संभव नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अपने आप में एक संहिता है।