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सिविल कानून
रुग्ण कंपनी
« »03-May-2024
फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड एवं अन्य बनाम मेसर्स कोरोमंडल सैक्स प्राइवेट लिमिटेड यदि रुग्ण कंपनी के विरुद्ध वसूली के लिये मुकदमे से परिसंपत्तियों या संपत्तियों को कोई खतरा नहीं है तथा रुग्ण कंपनी के पुनरुद्धार की योजना पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है, तो वसूली के लिये वाद लाने पर कोई रोक नहीं है। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी रुग्ण कंपनी से बकाया की वसूली के लिये दायर किया गया वाद रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 (1985 का अधिनियम) की धारा 22 (1) से रुग्ण कंपनी या पुनरुद्धार योजना की संपत्तियाँ प्रभावित नहीं होगा, यदि यह प्रभावित नहीं होता है।
फर्टिलाइज़र कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड एवं अन्य बनाम मेसर्स कोरोमंडल सैक्स प्राइवेट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- एक कंपनी मेसर्स कोरोमंडल सैक्स प्राइवेट लिमिटेड, मूल वादी जो उच्च घनत्व पॉली एथिलीन (HDPE) बैग के निर्माण में लगी हुई है।
- एक कंपनी फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, मूल प्रतिवादी जो भारत सरकार का एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
- मूल प्रतिवादियों को अपने ग्राहकों के लिये HDPE बैग की आवश्यकता थी तथा उन्होंने वादी को इसके लिये ऑर्डर दिया।
- बैगों की तकनीकी विशिष्टताओं एवं भुगतान के लिये नियम एवं शर्तें कभी-कभी जारी किये गए निविदा आमंत्रण नोटिस (NIT) और उसके अनुसरण में जारी किये गए खरीद आदेशों में निर्दिष्ट की गई थीं।
- ऐसी शर्तों के अनुसार, प्रतिवादी को बैग की प्राप्ति एवं उसकी मंज़ूरी के 20 दिनों के भीतर पूरा भुगतान करना होगा।
- खरीद आदेश की शर्तें प्रतिवादियों को मूल वादी द्वारा बैग की आपूर्ति में देरी पर परिसमाप्त क्षति के लिये संविदा मूल्य का अधिकतम 5% तक कटौती करने का भी अधिकार देती हैं।
- वादी ने विचारण न्यायालय के समक्ष एक मुकदमा दायर किया तथा उसका तर्क यह था कि बैग की संख्या बढ़ाने के लिये खरीद आदेशों में संशोधन किया गया था और इस आवश्यकता के लिये वादी ने मात्रा से अधिक 42,000 बैग की आपूर्ति की।
- वादी आपूर्ति में देरी एवं बैग की खराब गुणवत्ता के लिये प्रतिवादियों द्वारा की गई कटौती से व्यथित था।
- वादी ने यह भी दावा किया कि ऑर्डर देने के बाद 25,000 बैग स्वीकार करने से मना करने के कारण उसे नुकसान हुआ।
- वादी ने मुकदमा शुरू होने की तिथि तक ब्याज के रूप में 10,31,803.14/- रुपए के साथ 8,27,100.74/- रुपए की वसूली के लिये सिविल वाद लाया।
- प्रतिवादी ने अपने लिखित बयान में कहा कि उन्हें रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 (1985 का अधिनियम) की धारा 3 (1) (o) के अंतर्गत एक रुग्ण कंपनी घोषित किया गया था तथा वसूली के लिये यह मुकदमा चलने योग्य नहीं है। 1985 अधिनियम की धारा 22(1) के अनुसार 24% की दर से ब्याज लगाया जाने के लिये उत्तरदायी नहीं था।
- विचारण न्यायालय ने वादी के वाद का निर्णय सुनाते हुए कहा कि प्रतिवादी की कंपनी यह सिद्ध करने में विफल रही कि वह एक रुग्ण कंपनी है और प्रतिवादी को वादी को रुपए 55710, 100,848 एवं 118000 रुपए 12% प्रतिवर्ष ब्याज के साथ तथा 172734 रुपए 12% प्रति वर्ष ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया।
- उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई। उच्च न्यायालय ने ब्याज के मुद्दे पर वादी की दलील को स्वीकार कर लिया तथा देय राशि पर 24% चक्रवृद्धि ब्याज दिया और विचारण न्यायालय के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसने वादी के पक्ष में 12% साधारण ब्याज दिया था।
- प्रतिवादी उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत करता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि यह वाद संविदा के अंतर्गत कथित अवैध कटौतियों के तहत उत्पन्न बकाया राशि की वसूली के लिये एक साधारण वाद था।
- वसूली के लिये वाद ऐसी प्रकृति का नहीं था जो प्रतिवादी रुग्ण कंपनी की संपत्तियों के लिये खतरा सिद्ध हो सकता था या पुनरुद्धार योजना पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता था।
- इसे निष्पादन, कष्ट या उस जैसी प्रकृति की कार्यवाही नहीं कहा जा सकता है तथा इसलिये मुकदमा 1985 अधिनियम की धारा 22(1) के अंतर्गत नहीं आता है।
- 1985 अधिनियम की धारा 22(1) के अंतर्गत दी गई शर्तें पूरी की जाती हैं, रुग्ण कंपनी के विरुद्ध वाद दायर करने पर कोई रोक नहीं है।
- उच्च न्यायालय के आदेश को केवल उस अवधि के संशोधन के अधीन यथावत् रखा जाता है, जिसके लिये ब्याज दिया जा सकता है और उच्च न्यायालय ने 24% ब्याज देने में कोई त्रुटि नहीं की।
इस मामले में उद्धृत महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या हैं?
- भोरुका टेक्सटाइल्स लिमिटेड बनाम कश्मीरी चावल उद्योग (2009)
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि यदि 1985 अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत लगाए गए क्षेत्राधिकार संबंधी प्रतिबंध के संदर्भ में सिविल न्यायालय के क्षेत्राधिकार को हटा दिया गया है, तो उसके द्वारा दिया गया कोई भी निर्णय गैर-न्यायिक होगा एवं परिणामस्वरूप निरर्थक भी होगा।
- रहेजा यूनिवर्सल लिमिटेड बनाम NRC लिमिटेड एवं अन्य (2012)
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि 1985 के अधिनियम की धारा 22(1) के अंतर्गत सरलता से धन की वसूली का वाद निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- टाटा मोटर्स लिमिटेड बनाम फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स ऑफ इंडिया लिमिटेड (2008)
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि 1985 का अधिनियम एक विशेष विधि है तथा इस प्रकार, कंपनी अधिनियम, 1956 जैसे अन्य अधिनियमों को आच्छादित करता है।
रुग्ण कंपनी कौन है?
- रुग्ण कंपनी से तात्पर्य ऐसी कंपनी से है, जो एक निश्चित समय के भीतर सुरक्षित लेनदारों के ऋण का भुगतान करने या उसे सुरक्षित करने में विफल रही है।
- एक कंपनी, जो अपने नेट वर्थ से अधिक या उसके बराबर संचित घाटे के साथ वित्तीय रूप से संघर्ष कर रही है, उसे रुग्ण कंपनी कहा जाता है।
- जितना संभव हो किसी रुग्ण कंपनी को बंद करने से बचा जाता है, क्योंकि इससे सरकारी राजस्व, नौकरियाँ एवं लेनदारों के पैसे पर असर पड़ता है। सबसे खराब स्थिति में, रुग्ण कंपनी बंद हो सकती है।
- 'रुग्ण औद्योगिक कंपनी' शब्द को 1985 अधिनियम की धारा 3 (1) (o) के अंतर्गत परिभाषित किया गया था, "एक औद्योगिक कंपनी, (पाँच साल से कम समय के लिये पंजीकृत कंपनी) जिसकी किसी भी वित्तीय वर्ष के अंत में संचित घाटा बराबर हो, इसकी संपूर्ण नेट वर्थ के बराबर या उससे अधिक हो”।
- कंपनी अधिनियम, 2013 रुग्ण कंपनियों को पुनर्जीवित एवं पुनर्वास करने के लिये एक विस्तृत विधिक प्रक्रिया निर्धारित करता है।
रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 क्या है?
- सरकार ने पाया कि कंपनियों की रुग्णता की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन की हानि, रोज़गार की हानि, राजस्व की हानि आदि होती है।
- सरकार को रुग्ण कंपनियों को निवारक, उपचारात्मक उपाय एवं पुनर्वास प्रदान करने के लिये विधि बनाने की आवश्यकता महसूस हुई।
- रुग्ण औद्योगिक कंपनी अधिनियम 1985 को रुग्ण कंपनियों एवं संभावित रूप से रुग्ण कंपनियों की पहचान करने या पता लगाने के लिये अधिनियमित किया गया था। किसी समस्या का समाधान करना और उन्हें पुनर्जीवित एवं पुनर्वासित करने का प्रयास करना।
- अधिनियम ने रुग्ण कंपनियों की मदद एवं पुनर्वास के लिये दो स्तरीय निकाय बनाए।
- औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (BIFR)।
- औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण के लिये अपीलीय प्राधिकरण (AAIFR)
- 1985 अधिनियम को निरस्त कर दिया गया और वर्ष 2003 में रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) निरसन अधिनियम 2003 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
- 1985 अधिनियम को वर्ष 2016 में पूरी तरह से निरस्त कर दिया गया था, क्योंकि इसके कुछ प्रावधान अध्याय XIX (धारा 253 से 269) के अंतर्गत एक अलग अधिनियम, 2013 के कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के साथ आच्छादित हो गए थे।
इस मामले में क्या विधिक प्रावधान शामिल हैं?
रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 की धारा 22(1):
- यह धारा विधिक कार्यवाही, संविदा आदि के निलंबन से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जहाँ किसी औद्योगिक कंपनी के संबंध में धारा 16 के अंतर्गत जाँच लंबित है या धारा 17 के अंतर्गत संदर्भित कोई योजना तैयारी या विचाराधीन है या कोई स्वीकृत योजना कार्यान्वयन के अधीन है या जहाँ किसी औद्योगिक कंपनी के संबंध में धारा 25 के अंतर्गत अपील की गई है। लंबित है, तो, कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) या किसी अन्य विधि या औद्योगिक कंपनी के ज्ञापन एवं एसोसिएशन के लेख या उक्त अधिनियम या अन्य विधि के अधीन प्रभाव रखने वाले किसी अन्य विधि में निहित किसी भी प्रावधान के बावजूद, कोई कार्यवाही नहीं औद्योगिक कंपनी के समापन के लिये या औद्योगिक कंपनी की किसी भी संपत्ति के विरुद्ध निष्पादन, संकट आदि के लिये या उसके संबंध में एक रिसीवर की नियुक्ति के लिये और धन की वसूली के लिये या किसी सुरक्षा के प्रवर्तन के लिये कोई मुकदमा नहीं औद्योगिक कंपनी के विरुद्ध या औद्योगिक कंपनी को दिये गए किसी भी ऋण या अग्रिम के संबंध में कोई गारंटी, बोर्ड की सहमति या, जैसा भी मामला हो, अपीलीय प्राधिकारी की सहमति के बिना, रखी जाएगी या आगे बढ़ाई जाएगी।
कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत पुनर्वास एवं पुनरुद्धार की प्रक्रिया क्या है?
कंपनी अधिनियम में संकट के समय में मदद करने के लिये रुग्ण औद्योगिक कंपनियों के पुनरुद्धार एवं पुनर्वास हेतु अध्याय XIX के तहत एक प्रक्रिया दी गई है।
- कंपनी की रुग्णता के निर्धारण के लिये आवेदन दाखिल करना
- कंपनी के 50% या अधिक बकाया ऋण वाला कोई भी सुरक्षित क्रेडिटर ट्रिब्यूनल के समक्ष आवेदन दायर कर सकता है।
- ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश
- ट्रिब्यूनल/अधिकरण आवेदन प्राप्त होने के 60 दिनों के अंदर सभी तथ्यों, दस्तावेज़ों और साक्ष्यों पर विचार करने के बाद एक आदेश पारित करेगा।
- यदि न्यायाधिकरण इस बात से संतुष्ट है कि कोई कंपनी एक रुग्ण कंपनी है, तो आगे की प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिये।
- पुनरुद्धार एवं पुनर्वास हेतु ट्रिब्यूनल को एक आवेदन प्रस्तुत करना
- कोई भी सुरक्षित ऋणदाता या रुग्ण कंपनी, कंपनी को पुनर्जीवित करने तथा पुनर्वास के उपाय तय करने के लिये न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन कर सकते हैं। जिसमें निम्नलिखित दस्तावेज़ जमा करने होंगे: वित्तीय विवरण, प्रारूप योजना, यदि कोई हो, अन्य जानकारी, दस्तावेज़ एवं शुल्क।
- अंतरिम प्रशासक की नियुक्ति
- ट्रिब्यूनल, आवेदन प्राप्त होने के 7 दिनों के अंदर एक अंतरिम प्रशासक नियुक्त करेगा।
- अंतरिम प्रशासक ट्रिब्यूनल के आदेश के 45 दिनों के अंदर क्रेडिटर की समिति की बैठक आयोजित करेगा।
- अंतरिम प्रशासक को ट्रिब्यूनल के आदेश के 60 दिनों के अंदर एक रिपोर्ट जमा करनी होगी।
- अंतरिम प्रशासक ऋणदाताओं की एक समिति बनाएगा।
- वह उनसे कोई भी जानकारी या दस्तावेज़ उपलब्ध कराने के लिये कह सकता है।
- अधिकरण का आदेश
- तय सुनवाई की तिथि पर ट्रिब्यूनल यह तय करता है कि कंपनी को पुनर्जीवित किया जा सकता है या पुनर्वास किया जा सकता है।
- यदि कंपनी को पुनर्जीवित करना या पुनर्वास करना संभव है, तो ट्रिब्यूनल एक मसौदा योजना तैयार करने के लिये किसी एक व्यक्ति को नियुक्त करेगा।
- कंपनी प्रशासक की नियुक्ति
- वह रुग्ण कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिये एक योजना का प्रारूप तैयार करेगा और ट्रिब्यूनल उसे कंपनी का प्रबंधन संभालने का आदेश भी दे सकता है।
- पुनरुद्धार एवं पुनर्वास हेतु योजना की तैयारी
- कंपनी प्रशासक, कंपनी द्वारा दायर ड्राफ्ट योजना पर विचार करने के बाद पुनरुद्धार एवं पुनर्वास की एक योजना तैयार करेगा।
- प्रशासक अपनी नियुक्ति के 60 दिनों के भीतर योजना प्रस्तुत करेगा।
- एक बार योजना स्वीकृत हो जाने पर, प्रशासक इसे ट्रिब्यूनल को प्रस्तुत कर सकता है।
- यदि ट्रिब्यूनल संतुष्ट है कि योजना को लागू करने की संभावना है, तो ट्रिब्यूनल योजना को मंज़ूरी दे देगा।
- योजना का कार्यान्वयन
- एक स्वीकृत योजना रुग्ण कंपनी, उसके कर्मचारियों, शेयरधारकों, लेनदारों, गारंटरों एवं विलय करने वाली कंपनी पर बाध्यकारी होती है।