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सिविल कानून

विनिर्दिष्ट पालन

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 12-Sep-2023

सांघी ब्रदर्स (इंदौर) प्रा. लिमिटेड बनाम कमलेंद्र सिंह

"किसी तीसरे पक्ष को संपत्ति की बिक्री विनिर्दिष्ट पालन डिक्री देने और लागू करने को असमान बनाती है।"

न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सांघी ब्रदर्स (इंदौर) प्राइवेट लि. लिमिटेड बनाम कमलेंद्र सिंह ने माना कि किसी तीसरे पक्ष को संपत्ति की बिक्री विनिर्दिष्ट पालन डिक्री देने और लागू करने को असमान बनाती है।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2004 में, पक्षकारों के बीच निष्पादित समझौता ज्ञापन (MoU) के अनुसार मुकदमे की संपत्ति के हस्तांतरण / बिक्री के लिये वादी द्वारा प्रतिवादी के खिलाफ विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) के लिये एक मुकदमा दायर किया गया था।
  • इस समझौता ज्ञापन (MoU) के तहत, प्रतिवादी मुकदमे के अधीन संपत्ति में अपने सभी हितों को सौंपने के लिये सहमत हो गया था, जिसके लिये वह वसीयत के प्रमुख लाभार्थी के रूप में हकदार था।
  • इस मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, उक्त वसीयत, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन थी।
  • बाद में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी के पक्ष में वसीयत की वैधता को बरकरार रखा।
  • इसलिये, प्रतिवादी ने, मुकदमे वाली संपत्ति का मालिक होने के नाते, संपत्ति को एक निश्चित प्रतिफल पर किसी तीसरे पक्ष को बेच दिया था।
  • प्रतिवादी के खिलाफ विनिर्दिष्ट पालन के लिये डिक्री के लिये वादी की ओर से दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक मुकदमा दायर किया गया था।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुकदमे की संपत्ति के खिलाफ विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) की डिक्री देने से इनकार कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह की पीठ ने इस बात पर ध्यान देने के बाद कि मुकदमे के लंबित रहने के दौरान संपत्ति किसी तीसरे पक्ष को बेची गई थी, एक मुकदमे की संपत्ति के खिलाफ विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) की डिक्री देने से इनकार कर दिया क्योंकि उक्त परिस्थिति ने विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) डिक्री को देने और लागू करने को असमान बना दिया था।
  • न्यायालय ने दोहराया कि यह एक स्थापित विधि है कि विनिर्दिष्ट पालन की अनुमति दिये जाने की स्थिति में तीसरे पक्ष को होने वाली विभिन्न कठिनाइयों के कारण न्यायालयों द्वारा विनिर्दिष्ट पालन की अनुमति नहीं दी जाती है।
  • न्यायालय ने कहा कि विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) देने के विवेक का प्रयोग करते समय, न्यायालय को इसमें शामिल पक्षों के लिये न्याय और समानता के हितों को संतुलित करना होगा और ऐसे विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) देने के संभावित परिणामों पर गौर करना होगा।
  • न्यायालय ने माना कि चूँकि न्यायालय ने विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) की राहत नहीं दी थी, इसलिये, विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 20 और 21 के संदर्भ में, वादी विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) के बदले मुआवजे के अनुदान के हकदार थे।

विधि प्रावधान

विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance)

  • विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) पक्षकारों के मध्य संविदात्मक प्रतिबद्धताओं को बनाए रखने के लिये न्यायालय द्वारा दिये गए एक वादयोग्य साधन का गठन करता है।
  • क्षति के दावे के विपरीत, जिसमें अनुबंध संबंधी शर्तों को पूरा नहीं करने के लिये मुआवजा शामिल है, विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) एक ऐसे उपाय के रूप में कार्य करता है जो पक्षकारों के बीच सहमत शर्तों को लागू करता है।
  • यह विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act, 1963 (SRA)) द्वारा शासित है
  • विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act, 1963 (SRA)) की धारा 10 अनुबंधों के संबंध में विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) से संबंधित है, यह कहती है कि-
    • किसी अनुबंध का विनिर्दिष्ट पालन न्यायालय द्वारा धारा 11, धारा 14 और धारा 16 की उप-धारा (2) में निहित प्रावधानों के अधीन लागू किया जायेगा।
  • कट्टा सुजाता रेड्डी बनाम सिद्दमसेट्टी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स (पी) लिमिटेड (2023) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक अनुबंध के विनिर्दिष्ट पालन (Special Performance) के लिये अऩुतोष केवल तभी दिया जा सकता है, जब ऐसे अनुतोष का दावा करने वाला पक्ष अनुबंध के तहत अपने दायित्व के बारे में अपनी तत्परता और प्रदर्शन करने की इच्छा दिखाता है।

SRA धारा 20

विनिर्दिष्ट पालन की डिक्री करने के बारे में विवेकाधिकार (1) विनिर्दिष्ट पालन की डिक्री करने की अधिकारिता वैवेकिक है और न्यायालय ऐसा अनुतोष अनुदत्त करने के लिये आवद्ध नहीं है केवल इस कारण से कि ऐसा करना विधिपूर्ण है किन्तु न्यायालय का यह विवेकाधिकार मनमाना नहीं है वरन् स्वस्थ और युक्तियुक्त, न्यायिक सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित तथा अपील न्यायालय द्वारा शुद्धिशक्य है।

(2) निम्नलिखित दशाएँ ऐसी हैं जिनमें न्यायालय विनिर्दिष्ट पालन की डिक्री न करने के अपने विवेकाधिकार का उचिततया प्रयोग कर सकेगा

(क) जहाँ कि संविदा के निबन्धन या संविदा करने के समय पक्षकारों का आचरण या अन्य परिस्थितियां, जिनके अधीन संविदा की गई थी. ऐसी हो कि संविदा यद्यपि शून्यकरणीय नहीं है, तथापि वादी को प्रतिवादी के ऊपर अजु फायदा देती है, अथवा

(ख) जहाँ कि संविदा का पालन प्रतिवादी को कुछ ऐसे कष्ट में डाल देगा जिसकी वह पहले से कल्पना नहीं कर सका था, और उसका अपालन वादी को वैसे किसी कष्ट में नहीं डालेगा।

(ग) जहाँ कि प्रतिवादी ने संविदा ऐसी परिस्थितियों के अधीन की हो जिनसे यद्यपि संविदा शून्यकरणीय तो नहीं हो जाती किन्तु उसके विनिर्दिष्ट पालन का प्रवर्तन असामयिक हो जाता है।

स्पष्टीकरण 1 - प्रतिफल की अपर्याप्तता मात्र या वह तथ्य मात्र कि संविदा प्रतिवादी के लिये दुर्भर या अपनी प्रकृति से ही अदूरदर्शी है, खण्ड (क) के अर्थ के भीतर अऋजु फायदा अथवा खण्ड (ख) के अर्थ के भीतर कष्ट न समझा जाएगा।

स्पष्टीकरण 2 – यह प्रश्न कि संविदा का पालन खण्ड (ख) के अर्थ के भीतर प्रतिवादी को कष्ट में डाल देगा या नहीं, संविदा के समय विद्यमान परिस्थितियों के प्रति निर्देशन से अवधारित किया जाएगा सिवाय उन दशाओं के जिनमें कि कष्ट संविदा के पश्चात् वादी द्वारा किए गए ऐसे किसी कार्य के परिणामस्वरूप हुआ हो।

(3) किसी ऐसी दशा में जहाँ कि वादी ने विनिर्दिष्टतः पालनीय संविदा के परिणामस्वरूप सारवान् कार्य किये हैं या हानियाँ उठाई हैं वहाँ न्यायालय विनिर्दिष्ट पालन की डिक्री करने के विवेकाधिकार का उचिततया प्रयोग कर सकेगा।

(4) न्यायालय किसी पक्षकार को संविदा का विनिर्दिष्ट पालन कराने से इंकार केवल इस आधार पर नहीं करेगा कि संविदा दूसरे पक्षकार की प्रेरणा पर प्रवर्तनीय नहीं है।

SRA की धारा 21

यह धारा कतिपय मामलों में प्रतिकर दिलाने की शक्ति से संबंधित है। यह धारा कहती है कि-

(1) किसी संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के वाद में वादी, ऐसे पालन के या तो अतिरिक्त या स्थान पर उसके भंग के लिये प्रतिकर का भी दावा कर सकेगा।

(2) यदि किसी ऐसे वाद में, न्यायालय यह विनिश्चय करे कि विनिर्दिष्ट पालन तो अनुदत्त नहीं किया जाना चाहिये किन्तु पक्षकार के बीच ऐसी संविदा है जो प्रतिवादी द्वारा भंग की गई है और वादी उस भंग के लिये प्रतिकर पाने का हकदार है, तो वह उसे तदनुसार वैसा प्रतिकर दिलाएगा।

(3) यदि किसी ऐसे वाद में, न्यायालय यह विनिश्चय करे कि विनिर्दिष्ट पालन तो अनुदत्त किया जाना चाहिये किन्तु उस मामले में न्याय की तुष्टि के लिये इतना ही पर्याप्त नहीं है और संविदा के भंग के लिये वादी को कुछ प्रतिकर भी दिया जाना चाहिये तो वह तद्नुसार उसको ऐसा प्रतिकर दिलाएगा।

(4) इस धारा के अधीन अधिनिर्णीत किसी प्रतिकर की रकम के अवधारण में न्यायालय, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 73 में विनिर्दिष्ट सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होगा।

(5) इस धारा के अधीन कोई प्रतिकर नहीं दिलाया जायेगा जब तब कि वादी ने अपने वादपत्र में ऐसे प्रतिकर का दावा न किया हो:

परन्तु जहाँ वादपत्र में वादी ने किसी ऐसे प्रतिकर का दावा न किया हो वहाँ न्यायालय कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम में वादी को वादपत्र में ऐसे प्रतिकर का दावा अन्तर्गत करने के लिये संशोधित करने की अनुज्ञा ऐसे निबन्धनों पर देगा जैसे न्यायसंगत हों।