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सिविल कानून

'सेवा शुल्क' के बजाय 'कर्मचारी अंशदान

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 07-Sep-2023

नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य

" फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्य सेवा शुल्क के स्थान पर कर्मचारी अंशदान शब्द का उपयोग करेंगे और इसे कुल बिल राशि का 10% तक सीमित करेंगे।"

न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह

स्रोतः इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य मामले में एक अंतरिम आदेश पारित कर फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्यों को 'सेवा शुल्क' के स्थान पर कर्मचारी अंशदान शब्द का उपयोग करने और इसे कुल बिल राशि का 10% तक सीमित करने का निर्देश दिया।

पृष्ठभूमि

  • दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष, नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) ने 4 जुलाई, 2022 को केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा जारी दिशानिर्देश चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की गईं।
  • 4 जुलाई, 2022 के दिशानिर्देशों के अनुसार, उपभोक्ताओं से किसी अन्य नाम से सेवा शुल्क नहीं लिया जाएगा और यह वैकल्पिक और स्वैच्छिक है। सेवा शुल्क को खाने के बिल के साथ जोड़कर कुल राशि पर जीएसटी लगाकर नहीं वसूला जायेगा। इसके अलावा, उपभोक्ताओं को सूचित किये बिना इसे स्वचालित रूप से बिल में नहीं जोड़ा जा सकता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 18(2)(1) के तहत दिशानिर्देश जारी किये गए थे।
  • उच्च न्यायालय के समक्ष, फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) ने कहा कि उसके सदस्य शब्दावली को बदलने के लिये तैयार थे।
  • हालाँकि, नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) ने इनकार कर दिया क्योंकि नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) के 80% सदस्य अनिवार्य शर्त के रूप में अपने ग्राहकों पर सेवा शुल्क लगाते हैं और इसके सदस्य बदली हुई शब्दावली से सहमत नहीं थे।
  • इस मामले पर आगे भी सुनवाई होगी लेकिन इस बीच न्यायालय ने फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्यों को कर्मचारी अंशदान शब्द का उपयोग करने और इसे कुल बिल राशि का 10% तक सीमित करने का निर्देश दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायालय ने निर्देश दिया कि फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) के सदस्य सेवा शुल्क की राशि के लिये कर्मचारी अंशदान शब्दावली का उपयोग करेंगे जिसे वे वर्तमान में वसूल कर रहे हैं। यह जीएसटी को छोड़कर, कुल बिल राशि का 10% से अधिक नहीं होगा।
  • न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह ने कहा कि लगभग फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) से जुड़े लगभग 3,300 होटल और रेस्तरां अब अपने मेनू पर मोटे अक्षरों में निर्दिष्ट करेंगे कि कर्मचारियों के अंशदान का भुगतान करने के बाद टिप्स देने की आवश्यकता नहीं है।

कानूनी प्रावधान

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 18

इस अधिनियम की धारा 18 सीसीपीए की शक्तियों और कार्यों से संबंधित है। यह कहती है कि-

(1) केंद्रीय प्राधिकरण

(क) एक वर्ग के रूप में उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण, संवर्धन और प्रवर्तन करेगा तथा इस अधिनियम के अधीन उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन का निवारण करेगा;

(ख) अनुचित व्यापार व्यवहारों का निवारण करेगा और यह सुनिश्चित करेगा, कि कोई व्यक्ति अनुचित व्यापार व्यवहारों में न लगे;

(ग) यह सुनिश्चित करेगा कि किन्हीं मालों या सेवाओं का कोई ऐसा मिथ्या या भ्रामक विज्ञापन न किया जाए, जो इस अधिनियम या तदधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के उपबंधों का उल्लंघन करता है।

(घ) यह सुनिश्चित करेगा कि कोई व्यक्ति ऐसे किसी विज्ञापन के प्रकाशन में भाग न ले, जो मिथ्या या भ्रामक है।

(2) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना केंद्रीय प्राधिकरण पूर्वोक्त किसी भी प्रयोजन के लिये,

(क) या तो स्व प्रेरणा से या प्राप्त शिकायत पर या केंद्रीय सरकार के निदेश पर उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के लिये कोई जाँच या अन्वेषण करेगा या करना कारित कर सकेगा;

(ख) ज़िला आयोग के समक्ष शिकायतों को यथास्थिति, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के समक्ष इस अधिनियम के अधीन शिकायतों को फाइल कर सकेगा;

(ग) यथास्थिति, ज़िला आयोग या राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के समक्ष उपभोक्ता अधिकारों या अनुचित व्यापार व्यवहार के संबंध में अधिकथित उल्लंघन के संबंध में कार्यवाहियों में मध्यक्षेप कर सकेगा;

(घ) उपभोक्ता अधिकारों का उपयोग करने से संबंधित मामलों और उनका उपभोग करने से रोकने वाले कारकों, जिसके अंतर्गत तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिये उपबंधित सुरक्षोपाय का पुनर्विलोकन और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये समुचित उपचारात्मक उपायों की सिफारिश कर सकेगा;

(ङ) उपभोक्ता अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं और सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियों को अंगीकार करने की सिफारिश कर सकेगा ताकि उपभोक्ता अधिकारों के प्रभावी प्रवर्तन का सुनिश्चय किया जा सके;

(च) उपभोक्ता अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान और उसका संवर्धन कर सकेगा;

(छ) उपभोक्ता अधिकारों पर जागरुकता का प्रसार और संवर्धन कर सकेगा;

(ज) उपभोक्ता अधिकारों के क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों और अन्य संस्थाओं को उपभोक्ता संरक्षण अभिकरणों के साथ सहयोग और कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करना;

(झ) ऐसे मालों में विशिष्ट और सार्वभौमिक माल पहचानकर्ताओं के उपयोग का आदेश करना, जो अनुचित व्यापार व्यवहारों को निवारित करने और उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करने के लिये आवश्यक हो;

(ञ) खतरनाक या परिसंकटमय या असुरक्षित माल या सेवाओं के विरुद्ध उपभोक्ताओं को सावधान करने के लिये सुरक्षा सूचनाएं जारी करना:

(ट) केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के मंत्रालयों और विभागों को उपभोक्ता कल्याण उपायों पर सलाह देना;

(ठ) अनुचित व्यापार व्यवहारों को निवारित करने के लिये और उपभोक्ताओं के हित के संरक्षण के लिये आवश्यक मार्गदर्शक सिद्धांत जारी करना।

सेवा शुल्क

  • सेवा शुल्क, आमतौर पर कुल बिल का 5% से 20% तक, एक अतिरिक्त शुल्क होता है जो कि भारत में होटल और रेस्तरां द्वारा लगाया जाता है।
  • इसका उद्देश्य प्रतिष्ठान में भोजन परोसने, सफाई और रखरखाव सहित प्रदान की गई सेवाओं की लागत को कवर करना है।
  • ऐतिहासिक रूप से, सेवा शुल्क पूरी तरह से विवेकाधीन था, और रेस्तरां आदि में आने वाले ग्राहक प्राप्त सेवा से अपनी संतुष्टि के अनुसार टिप देने के लिये स्वतंत्र होते थे।
  • हालाँकि, पिछले दशक में कई प्रतिष्ठानों ने अपनी मर्जी से बिलों में सेवा शुल्क जोड़ना शुरू कर दिया, जिससे ग्राहकों के पास इसका भुगतान करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता था।
  • 21 अप्रैल, 2017 को ,केंद्र सरकार ने होटल और रेस्तरां द्वारा उपभोक्ताओं पर सेवा शुल्क लगाने पर रोक लगाने के लिये दिशानिर्देश जारी किये और "व्यक्त सहमति के बिना लागू करों के साथ मेनू कार्ड पर प्रदर्शित कीमतों" के अलावा किसी भी अन्य चीज़ के लिये शुल्क लेने के कृत्य को "ग्राहक के साथ अनुचित व्यापार व्यवहार" बताया।
  • जून 2023 में, उपभोक्ता मामलों के विभाग ने कहा कि सेवा शुल्क एक विवेकाधीन शुल्क है और इसे अनिवार्य आधार पर नहीं लगाया जाना चाहिये।