Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

सिविल कानून

उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी में ASI सर्वेक्षण रोका

    «    »
 25-Jul-2023

चर्चा में क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि मस्ज़िद के एएसआई सर्वेक्षण के लिए वाराणसी ज़िला न्यायालय द्वारा 21 जुलाई 2023 को पारित आदेश को 26 जुलाई, 2023 तक प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम राखी सिंह और अन्य के मामले में लागू नहीं किया जाना चाहिए।

पृष्ठभूमि

  • वाराणसी ज़िला न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के निदेशक को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, उस क्षेत्र (वुजुखाना) को छोड़कर जिसे पहले सील कर दिया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इसे राखी सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में एक हिंदू मंदिर की मौजूदा संरचना में पहले बनाया गया है ।
  • यह मामला वाराणसी ज़िला न्यायालय के उस फैसले से संबंधित है, जिसमें उपासकों द्वारा दायर एक आवेदन को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संपूर्ण ज्ञानवापी मस्ज़िद परिसर (वुज़ुखाना को छोड़कर) का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की अनुमति दी गयी थी, ताकि यह पता लगाया जा सके कि मस्ज़िद थी या नहीं। हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर निर्माण को प्रबंधन समिति, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, वाराणसी द्वारा स्थानांतरित किया गया था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ज्ञानवापी मस्ज़िद समिति द्वारा की गई तत्काल सुनवाई के बाद एएसआई सर्वेक्षण को रोकने का आदेश पारित किया।
  • अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुये या नागरिक प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 115 के तहत ज़िला न्यायाधीश, वाराणसी के आदेश को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय में जाने के लिये स्वतंत्र हैं।

ज्ञानवापी मस्ज़िद विवाद

  • ऐसा माना जाता है कि ज्ञानवापी मस्ज़िद का निर्माण 1669ई. में मुगल शासक औरंगजेब द्वारा प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर (टोडर मल द्वारा निर्मित हिंदू देवता भगवान शिव को समर्पित) को तोड़कर किया गया था।
  • ज्ञानवापी मस्ज़िद का मामला 1991 से विवाद में है, जब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास सहित तीन लोगों ने वाराणसी के सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर किया था और दावा किया था कि औरंगजेब ने इसे ध्वस्त कर दिया था। यह मूल रूप से भगवान विश्वेश्वर का मंदिर है।
  • 2021 में वाराणसी की इसी अदालत में श्रृंगार-गौरी के मंदिर में पूजा करने की माँग को लेकर याचिका दायर की गयी थी।
  • अदालत ने इस मामले में नियुक्त आयोग से श्रृंगार गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी परिसर की वीडियोग्राफी कर सर्वेक्षण रिपोर्ट देने को कहा था।
  • इस बेसमेंट के सर्वे और वीडियोग्राफी को लेकर विवाद हो गया है।
  • पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 3 के तहत, किसी पूजा स्थल, यहाँ तक कि उसके खंड को, एक अलग धार्मिक संप्रदाय या एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित करना निषिद्ध है।
  • ज्ञानवापी मस्ज़िद के मामले से संबंधित कई याचिकाएं लंबित थीं और सभी को पिछले अवसर पर सीपीसी के आदेश 4 ए (यूपी अधिनियम 57, 1976) के तहत संयुक्त सुनवाई का आदेश दिया गया था।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पहले एएसआई को 'शिव लिंग' का वैज्ञानिक सर्वेक्षण (आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके) करने का निर्देश दिया था, जो कथित तौर पर वाराणसी में ज्ञानवापी मस्ज़िद परिसर के अंदर पाया गया था ताकि इसकी आयु का पता लगाया जा सके।

कानूनी प्रावधान

भारत का संविधान, 1950

अनुच्छेद 227 - उच्च न्यायालय द्वारा सभी न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति

  • प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा।
  • पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय-
    • ऐसे न्यायालयों से विवरण मँगा सकेगा।
    • ऐसे न्यायालयों की पद्धति और कार्यवाहियों के विनियमन के लिए साधारण नियम और प्रारूप बना सकेगा, और निकाल सकेगा तथा विहित कर सकेगा, और
    • किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्रारूप विहित कर सकेगा।
  • उच्च न्यायालय उन फीसों की सारणियाँ भी स्थिर कर सकेगा, जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ (शहर या ज़िले का हाकिम) को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को तथा उनमें विधि-व्यावसाय करने वाले अटर्नियों, अधिवक्ताओं और प्लीडरों को अनुज्ञेय होंगी। परंतु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गये कोई नियम, विहित किए गए कोई प्रारूप या स्थिर की गयी कोई सारणी तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके लिये राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी।
  • इस अनुच्छेद की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण पर अधीक्षण की शक्तियाँ देने वाली नहीं समझी जाएगी।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908

धारा 115-पुनरीक्षण

  • उच्च न्यायालय किसी भी ऐसे मामले के अभिलेख को मँगवा सकेगा जिसका ऐसे उच्च न्यायालय के अधीनस्य किसी न्यायालय ने विनिश्चय किया है और जिसकी कोई भी अपील नहीं होती है और यदि यह प्रतीत होता है कि
    (क) ऐसे अधीनस्थ न्यायालय ने ऐसी अधिकारिता का प्रयोग किया है जो उसमें विधि द्वारा निहित नहीं है, अथवा (ख) ऐसा अधीनस्थ न्यायालय ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा है जो इस प्रकार निहित है, अथवा (ग) ऐसे अधीनस्थ न्यायालय ने अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने में अवैध रूप से या तात्विक अनियमितता से कार्य किया है, तो उच्च न्यायालय उस मामले में ऐसा आदेश कर सकेगा जो ठीक समझे: परन्तु उच्च न्यायालय इस धारा के अधीन किसी वाद या अन्य कार्यवाही के अनुक्रम में पारित किये गये किसी आदेश में या कोई विवाद्यक विनिश्चित करने वाले किसी आदेश में फेरफार नहीं करेगा या उसे नहीं उलटेगा सिवाय वहाँ के जहाँ ऐसा आदेश यदि वह पुनरीक्षण के लिये आवेदन करने वाले पक्षकार के में किया गया होता तो वाद अन्य कार्यवाही का अन्तिम रूप से निपटारा कर देता।
  • उच्च न्यायालय इस धारा के अधीन किसी ऐसी डिक्री या आदेश में, जिसके विरुद्ध या तो उच्च न्यायालय में या उसके अधीनस्थ किसी न्यायालय में अपील की गयी है, फेरफार नहीं करेगा या उसे नहीं उलटेगा।
  • एक न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण किसी वाद या अन्य कार्यवाही के स्थगन के रूप में लागू नहीं होगा सिवाय वहाँ के जहाँ ऐसे वाद या अन्य कार्यवाही को उच्च न्यायालय द्वारा स्थगित कर दिया गया। स्पष्टीकरण- इस धारा में ऐसे मामले के अभिलेख को मँगवा सकेगा जिसका ऐसे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ किसी न्यायालय ने विनिश्चित किया है, अभिव्यक्ति के अन्तर्गत किसी वाद या