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सिविल कानून

सरोगेसी और मातृत्त्व अवकाश

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 09-Nov-2023

टिप्पणी

जैविक माँ और सरोगेसी से बच्चा पैदा करने वाली माँ के बीच कोई अंतर नहीं है।

राजस्थान उच्च न्यायालय

 स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा है कि जब मातृत्त्व अवकाश देने की बात आती है, तो जैविक माँ और सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करने वाली माँ के बीच कोई अंतर नहीं होता है।

इस मामले की पृष्ठभूमि:

  • याचिकाकर्त्ता, जिसने सरोगेसी प्रक्रिया के माध्यम से जुड़वाँ बच्चे पैदा किये थे, ने 180 दिनों के मातृत्त्व अवकाश के लिये आवेदन किया था।
  • उनके आवेदन को राज्य अधिकारियों ने यह कहते हुए खारिज़ कर दिया कि राजस्थान सेवा नियम, 1951 में कोई संबंधित प्रावधान नहीं है।
  • वर्तमान याचिका राजस्थान सरकार के उक्त आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी।
  • राज्य का तर्क था कि राजस्थान सेवा नियम, 1951 के नियम 103 में सरोगेसी प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे को जन्म देने वाली माँ (कमीशनिंग माँ) को मातृत्त्व अवकाश के प्रावधान की कल्पना नहीं की गई है।
  • राज्य के तर्क की जाँच के बाद, न्यायालय ने आम उपयोग में 'मातृत्त्व अवकाश' की विविध परिभाषाओं के साथ-साथ मातृत्त्व लाभ अधिनियम, 1961 में उल्लिखित 'मातृत्त्व लाभ' और 'बच्चे' की व्याख्याओं पर भरोसा किया।
  • सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी [Assisted Reproductive Technology- ART] (विनियमन) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की समीक्षा करने पर, राजस्थान उच्च न्यायालय (HC) ने पाया कि एक कमीशनिं माँ को बच्चे की जैविक माँ के रूप में मान्यता दी जाती है और बच्चे पर पूर्ण अधिकार बरकरार रखती है।
  • कमीशनिंग माँ वह महिला होती है जो सरोगेट माँ के किराए के गर्भ से बच्चा प्राप्त करना चाहती है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार ने पहले ही सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के माध्यम से बांझ दंपत्तियों के लिये अपना बच्चा पैदा करने के विकल्प के रूप में सरोगेसी को मान्यता दे दी है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायालय ने निम्नलिखित मामलों पर ध्यान दिया:
    • देवश्री बांधे बनाम छत्तीसगढ़ स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड एवं अन्य (2017), छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
    • रमा पांडे बनाम भारत संघ एवं अन्य (2015), दिल्ली उच्च न्यायालय
    • डॉ. श्रीमती हेमा विजय मेनन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2015), बॉम्बे उच्च न्यायालय
  • तीनों मामलों में, विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा यह माना गया है कि ऐसी महिला कर्मचारी जो कमीशनिंग माँ है, वह दत्तक ग्रहण करने वाल माँ की तरह ही लागू नियमों और विनियमों के तहत मातृत्त्व अवकाश की हकदार होगी।
  • न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने विचार व्यक्त किया है कि सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए शिशुओं को दूसरों की देखभाल में नहीं छोड़ा जाना चाहिये ।
  • इसके बजाय, ऐसे बच्चों को जीवन के शुरुआती चरणों में माँ के प्यार, देखभाल, सुरक्षा और ध्यान की आवश्यकता होती है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में मातृत्त्व का अधिकार और प्रत्येक बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार भी शामिल है और इसलिये राज्य प्राधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया गया।

इस मामले में शामिल कानूनी प्रावधान :

मातृत्त्व लाभ अधिनियम, 1961

  • यह एक भारतीय कानून है जिसका उद्देश्य प्रसव से पहले और बाद में एक निश्चित अवधि के लिये कुछ प्रतिष्ठानों में महिलाओं के रोजगार को विनियमित करना है। कुछ प्रमुख बिंदु ये हैं:
  • प्रयोज्यता: यह अधिनियम कारखानों, खदानों, बागानों, दुकानों और अन्य संस्थाओं सहित दस या अधिक लोगों को रोजगार देने वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है।
  • अवधि: एक महिला 26 सप्ताह के मातृत्त्व अवकाश की हकदार है, जिसमें चिकित्सीय जटिलताओं या अन्य निर्दिष्ट परिस्थितियों के मामले में इसे अतिरिक्त 4 सप्ताह तक बढ़ाने का प्रावधान है।
  • छुट्टी के दौरान भुगतान: नियोक्ता को मातृत्त्व अवकाश पर गई महिला को उसकी छुट्टी की अवधि के लिये औसत दैनिक वेतन की दर से भुगतान करना आवश्यक है।
  • मेडिकल बोनस: नियोक्ताओं को उन महिलाओं को मेडिकल बोनस प्रदान करना भी होता है जो पूर्ण मातृत्त्व अवकाश का लाभ नहीं उठाती हैं, जब तक कि उन्होंने अपनी गर्भावस्था से पहले एक निश्चित अवधि के लिये काम किया हो।
  • बर्खास्तगी पर रोक: मातृत्त्व अवकाश अवधि के दौरान, नियोक्ताओं के लिये किसी महिला को बर्खास्त करना या छुट्टी देना या बर्खास्तगी का नोटिस देना गैरकानूनी है।
  • क्रेच सुविधाएँ: 50 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को क्रेच सुविधाएँ प्रदान करना और महिलाओं को काम के घंटों के दौरान क्रेच में जाने की अनुमति देना आवश्यक है।

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियम) अधिनियम, 2021

  • इस अधिनियम का उद्देश्य सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी क्लीनिकों और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंकों का विनियमन और पर्यवेक्षण करना, प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दों को संबोधित करने के लिये सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं के दुरुपयोग, सुरक्षित और नैतिक अभ्यास को रोकना है, जहाँ बनने के लिये सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है। इसका इस्तेमाल माता-पिता या बांझपन, बीमारी या सामाजिक या चिकित्सा संबंधी चिंताओं के कारण आगे उपयोग के लिये युग्मक, भ्रूण, भ्रूण के ऊतकों को फ्रीज करने के लिये और अनुसंधान और विकास के विनियमन और पर्यवेक्षण के लिये और उससे जुड़े या उसके संसक्त मामलों के लिये किया जाता है।
  • अधिनियम परिभाषित करता है:
    • धारा 2(J) के तहत बांझपन, असुरक्षित सहवास के एक वर्ष के बाद गर्भधारण करने में असमर्थता या किसी युग्म को गर्भधारण करने से रोकने वाली अन्य सिद्ध चिकित्सा स्थिति के रूप में।
    • धारा 2(E) के तहत एक बांझ विवाहित जोड़े के रूप में कमीशनिंग जोड़े जो उक्त क्लिनिक या बैंक से अधिकृत सेवाओं को प्राप्त करने के लिये एक सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी क्लिनिक या सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंक से संपर्क करते हैं।