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आपराधिक कानून

सज़ा का निलंबन

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 07-Nov-2023

विष्णुभाई गणपतभाई पटेल और अन्य बनाम गुजरात राज्य

ऐसा कोई सख्त नियम नहीं है जिसके तहत किसी अभियुक्त को सज़ा के निलंबन की प्रार्थना पर विचार करने से पहले एक विशेष अवधि के लिये सज़ा भुगतनी पड़े।

उच्चतम न्यायालय

 स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय (SC) ने माना है कि विष्णुभाई गणपतभाई पटेल और अन्य बनाम गुजरात राज्य के मामले में कहा कि सज़ा निलंबित करने के लिये आवेदन करने से पहले दोषी व्यक्ति को अपनी सज़ा की एक विशिष्ट अवधि पूरी करने की कोई सख्त आवश्यकता नहीं है।

विष्णुभाई गणपतभाई पटेल और अन्य बनाम गुजरात राज्य मामले की पृष्ठभूमि:

  • अपीलकर्त्ताओं को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 114, 506(2) और 504 के साथ पठित धारा 304 भाग I के तहत दंडनीय अपराधों के लिये दोषी ठहराया गया था।
    • प्रदान किये गए अपराधों के लिये अधिकतम वास्तविक सज़ा 10 साल का कठोर कारावास है।
  • अपीलकर्त्ता पहले ही लगभग 04 वर्ष की सज़ा काट चुके हैं।
  • उच्च न्यायालय (HC) में एक अपील की गई थी, अपील के लंबित रहने के दौरान सज़ा के निलंबन के लिये एक आवेदन किया गया था और खारिज़ कर दिया गया था।
    • उच्च न्यायालय (HC) के समक्ष, राज्य की ओर से एक निवेदन किया गया था कि केवल दोषसिद्धि के बाद दी गई सज़ा पर ही विचार किया जाना चाहिये ।
    • इसमें एक और निवेदन किया गया कि अपीलकर्त्ताओं ने केवल 05 महीने और 27 दिन बिताए थे।
    • उच्च न्यायालय (HC) ने उक्त दलील को यह दर्ज़ करते हुए स्वीकार कर लिया कि अपीलकर्त्ताओं ने सज़ा का 01 वर्ष भी पूरा नहीं किया है।
  • इसलिये, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया, और यह कहा गया कि अपील वर्ष 2023 की है, जिसकी सुनवाई अपीलकर्त्ताओं की सज़ा की पूरी अवधि समाप्त होने से पहले होने की संभावना नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय (HC) को सज़ा को निलंबित करने के अनुरोध की सकारात्मक समीक्षा करनी चाहिये , खासकर उन मामलों में जिसमें दोषी व्यक्ति का कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह पहले ही 40% से अधिक सज़ा काट चुका है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसा कोई सख्त नियम नहीं है जिसके लिये किसी आरोपी को सज़ा के निलंबन की प्रार्थना पर विचार करने से पहले एक विशेष अवधि के लिये सज़ा भुगतनी पड़े।

इसमें शामिल कानूनी प्रावधान:

सज़ा का निलंबन:

  • यह किसी आपराधिक सज़ा के निष्पादन पर अस्थायी या सशर्त रोक या स्थगन को संदर्भित करता है।
  • इसका तात्त्पर्य यह है कि किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्ति को तुरंत जेल में अपनी सज़ा काटने की आवश्यकता नहीं है, और इसके बजाय, कुछ शर्तों के तहत या एक विशिष्ट अवधि के लिये सज़ा को स्थगित या अस्थायी रूप से अलग रखा जा सकता है।
  • अपील के दौरान निलंबन संबंधी प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 389 के तहत प्रदान किया गया है:

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 - अपील लंबित रहने तक वंडावेश का निलम्बन, अपीलार्थी का ज़मानत पर छोड़ा जाना –

(1) अपील न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो उसके द्वारा अभिलिखित किये जाएँगे, आदेश दे सकता है कि उस दंडादेश या आदेश का निष्पादन, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा की गई अपील के लंबित रहने तक निलंबित किया जाये और यदि वह व्यक्ति परिरोध में है तो यह भी आदेश दे सकता है कि उसे ज़मानत पर या उसके अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया जाये:

परन्तु अपील न्यायालय ऐसे दोषसिद्ध व्यक्ति को, जो मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अन्यून अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध किया गया है, ज़मानत पर या उसके अपने बंधपत्र पर छोड़ने से पूर्व, लोक अभियोजक को ऐसे छोड़ने के विरुद्ध लिखित में कारण दर्शाने का अवसर देगा, परन्तु यह और कि ऐसे मामलों में, जहाँ किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को ज़मानत पर छोड़ा जाता है वहाँ लोक अभियोजक ज़मानत रद्द किये जाने के लिये आवेदन फाइल कर सकेगा।

(2) अपील न्यायालय को इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उच्च न्यायालय भी किसी ऐसी अपील के मामले में कर सकता है. जो किसी दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा उसके अधीनस्थ न्यायालय में की गई है।

(3) जहाँ दोषसिद्ध व्यक्ति ऐसे न्यायालय का जिसके द्वारा वह दोषसिद्ध किया गया है यह समाधान कर देता है कि वह अपील प्रस्तुत करना चाहता है वहाँ वह न्यायालय,

(i) उस दशा में जब ऐसा व्यक्ति, ज़मानत पर होते हुए, तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिये कारावास से दंडादिष्ट किया गया

या

(ii) उस दशा में जब वह अपराध, जिसके लिये ऐसा व्यक्ति दोषसिद्ध किया गया है. ज़मानतीय है और वह ज़मानत पर है,

यह आदेश देगा कि दोषसिद्ध व्यक्ति को इतनी अवधि के लिये जितनी से अपील प्रस्तुत करने और उपधारा (1) के अधीन अपील-

न्यायालय के आदेश प्राप्त करने के लिये पर्याप्त समय मिल जायेगा ज़मानत पर छोड़ दिया जाये जब तक कि ज़मानत से इंकार करने के विशेष कारण न हो और जब तक वह ऐसे ज़मानत पर छूटा रहता है तब तक कारावास का दंडादेश निलम्बित समझा जायेगा। (4) जब अंततोगत्वा अपीलार्थी को किसी अवधि के कारावास या आजीवन कारावास का दंडादेश दिया जाता है, तब वह समय जिसके दौरान वह ऐसे छूटा रहता है, उस अवधि की संगणना करने में, जिसके लिये उसे ऐसा दंडादेश दिया गया है. हिसाब में नहीं लिया जायेगा।