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सिविल कानून

अस्थायी कर्मचारियों का पेंशन अधिकार

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 28-Aug-2024

राजकरण सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य   

“नियमित सरकारी कर्मचारियों की तरह दशकों से काम कर रहे 'अस्थायी' कर्मचारियों को समान लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता”

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति संदीप मेहता   

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नियमित सरकारी कर्मचारियों की तरह काम करने वाले कर्मचारियों को सिर्फ उनकी अस्थायी स्थिति के कारण पेंशन लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिये। डिवीज़न बेंच ने ऐसे लाभों से वंचित करने की आलोचना की, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि समान भूमिका निभाने वाले लंबे समय से कार्यरत कर्मचारी स्थायी सरकारी कर्मचारियों के समान सुरक्षा और लाभ के अधिकारी हैं।

  • न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने राजकरण सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में निर्णय दिया।   

राजकरण सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ताओं को विशेष फ्रंटियर फोर्स (SFF) के अनिवार्य बचत योजना जमा (SSD) कोष का प्रबंधन करने के लिये जूनियर अकाउंटेंट, अकाउंटेंट, अपर डिवीजन क्लर्क और लोअर डिवीज़न क्लर्क जैसे विभिन्न पदों पर नियुक्त किया गया था।
    • SSD फंड एक कल्याणकारी पहल है, जो SFF सैनिकों द्वारा अपने वेतन से दिये गए व्यक्तिगत योगदान से वित्तपोषित होती है।
  • अपीलकर्त्ताओं को चौथे और पाँचवें केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) के अनुसार वेतन के साथ-साथ विभिन्न भत्ते तथा लाभ प्राप्त हुए।
  • 1 जनवरी 2006 को भारत संघ ने SFF के सभी सरकारी कर्मचारियों के लिये 6वें केंद्रीय वेतन आयोग को लागू किया।
  • हालाँकि अपीलकर्त्ताओं (SSD कर्मचारियों) को 6वें वेतन आयोग के ये लाभ नहीं दिये गए। इसके बजाय, उन्हें 3,000 रुपए प्रतिमाह की तदर्थ राशि दी गई।
  • अपीलकर्त्ताओं ने छठे केंद्रीय वेतन आयोग के लाभों के विस्तार की मांग करते हुए केंद्र सरकार को अभ्यावेदन दिया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
  • इस अस्वीकृति से व्यथित होकर, अपीलकर्त्ताओं ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के समक्ष आवेदन दायर कर छठे वेतन आयोग के लाभ में विस्तार की मांग की।
  • CAT ने उनके आवेदनों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे सरकारी सेवा में कार्यरत नहीं थे तथा उनकी सेवाएँ वैधानिक प्रकृति की नहीं थीं।
  • अपीलकर्त्ताओं ने CAT के निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने CAT के आदेश की पुष्टि की।
  • उच्च न्यायालय द्वारा मामला खारिज किये जाने के बाद अपीलकर्त्ताओं ने भारत के उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।
  • उच्चतम न्यायालय के समक्ष मुख्य मुद्दा यह था कि क्या अपीलकर्त्ता, अंशदायी निधियों के एकत्रीकरण द्वारा प्रबंधित योजना के अस्थायी कर्मचारी के रूप में वर्गीकृत होने के बावजूद, 6वें केंद्रीय वेतन आयोग के अनुसार पेंशन लाभों के लिये  पात्रता का दावा कर सकते हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत इस मुद्दे की जाँच की तथा इस बात पर विचार किया कि क्या अपीलकर्त्ताओं द्वारा प्रबंधित विशेष सुरक्षा जमा (SSD) निधि को राज्य का साधन माना जा सकता है।
  • न्यायालय ने कहा कि नियमित वेतनमान पर अपीलकर्त्ताओं की नियुक्ति स्थायी सरकारी कर्मचारियों के समान औपचारिक कर्मचारी-नियोक्ता संबंध को दर्शाती है।
  • न्यायालय ने अपीलकर्त्ताओं की रोज़गार शर्तों पर सरकारी नियंत्रण की उपस्थिति पर ध्यान दिया, जो अन्य सरकारी कर्मचारियों के समान वेतन वृद्धि और पदोन्नति से स्पष्ट है।
  • न्यायालय ने माना कि अवकाश, सुनिश्चित कॅरियर प्रगति (ACP) और अन्य लाभों का प्रावधान अपीलकर्त्ताओं की रोज़गार स्थितियों तथा नियमित सरकारी कर्मचारियों के बीच समानता को पुष्ट करता है।
  • न्यायालय ने कहा कि कर्मचारियों को 'अस्थायी' या 'स्थायी' के रूप में वर्गीकृत करना मात्र नामावली नहीं है, बल्कि सेवा लाभ और सुरक्षा के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण विधिक निहितार्थ रखता है।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्त्ताओं को पेंशन लाभ से वंचित करना विधिक की दृष्टि से तर्कसंगत या न्यायोचित नहीं है तथा इसे स्वेच्छाचारी तथा भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना।

राजकरण सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य में कौन-से मामले संदर्भित किये  गए थे?

  • अजय हसिया बनाम खालिद मुजीब सेहरावर्दी (1981)
    • न्यायालय ने यह निर्धारित करने के लिये निर्धारित परीक्षणों को लागू किया कि क्या संबंधित इकाई को अनुच्छेद 12 के अंतर्गत सरकार का साधन या एजेंसी माना जा सकता है।
    • वर्तमान मामले में इन सिद्धांतों को लागू करने पर, न्यायालय को ऐसे ठोस साक्ष्य मिले जिनसे यह सिद्ध होता है कि अपीलकर्त्ता नियमित सरकारी कर्मचारियों के गुणधर्मों को पूरा करते हैं।
  • विनोद कुमार एवं अन्य बनाम भारत संघ (2024)
    • न्यायालय ने कहा कि रोज़गार का सार केवल नियुक्ति की प्रारंभिक शर्तों से निर्धारित नहीं किया जा सकता, जब रोज़गार का वास्तविक क्रम समय के साथ काफी विकसित हो चुका हो।

भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्य क्या है?

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12 राज्य को परिभाषित करता है।
  • इसमें प्रावधान है कि राज्य में भारत की सरकार और संसद के साथ-साथ भारत के प्रत्येक राज्य की सरकार तथा विधानमंडल भी शामिल होंगे।
  • इस शब्द में भारतीय क्षेत्र के अंतर्गत या भारत सरकार के नियंत्रण में सभी स्थानीय प्राधिकरण और अन्य प्राधिकरण भी शामिल हैं।
  • न्यायालयों द्वारा "राज्य" की व्यापक व्याख्या की गई है, जिसमें न केवल पारंपरिक सरकारी निकाय शामिल हैं, बल्कि सरकार की एजेंसियाँ ​​और साधन भी शामिल हैं जो सार्वजनिक कार्य करते हैं या व्यापक सरकारी नियंत्रण के अधीन हैं।
  • रति लाल बनाम बॉम्बे राज्य (1952) में यह निर्धारित किया गया था कि न्यायपालिका को अनुच्छेद 12 के अंतर्गत "राज्य" नहीं माना जाता है।
    • हालाँकि ए.आर. अंतुले बनाम आर.एस. नायक (1988) और एन.एस. मिराजकर बनाम महाराष्ट्र राज्य (1966) में यह उल्लेख किया गया था कि न्यायपालिका को तब "राज्य" माना जाता है जब वह अपने नियम बनाने के अधिकार का प्रयोग करती है, परंतु अपने न्यायिक कार्यों का निष्पादन करते समय उसे "राज्य" नहीं माना जाता है।

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) क्या है?

  • परिचय:
    • CAT एक विशेष न्यायिक निकाय है जिसकी स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323-A और प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत लोक सेवकों की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित विवादों का निपटारा करने के लिये  की गई है।
    • इसका क्षेत्राधिकार केंद्र सरकार के कर्मचारियों तथा केंद्र सरकार के नियंत्रणाधीन अन्य प्राधिकरणों के सेवा मामलों पर है।
    • अधिकरण में एक अध्यक्ष (उच्च न्यायालय का वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश) और प्रशासनिक तथा न्यायिक सदस्य होते हैं, जिन्हें संबंधित क्षेत्रों में उनकी विशेषज्ञता के आधार पर चुना जाता है।
    • CAT पूरे भारत में 17 नियमित पीठों और 21 सर्किट पीठों के माध्यम से कार्य करता है, जिसका उद्देश्य पीड़ित लोक सेवकों को शीघ्र और लागत प्रभावी न्याय प्रदान करना है।
    • सिविल प्रक्रिया संहिता से बाध्य न होते हुए भी, CAT अपनी कार्यवाही में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है तथा उच्च न्यायालय के समकक्ष अवमानना ​​शक्तियाँ रखता है।
    • अधिकरण की स्वतंत्रता की रक्षा इसके अध्यक्ष और सदस्यों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समतुल्य सेवा शर्तें प्रदान करके की जाती है।
    • CAT के आदेशों के विरुद्ध अपील संविधान के अनुच्छेद 226/227 के अंतर्गत रिट याचिका के माध्यम से संबंधित उच्च न्यायालय में की जा सकती है।

विधिक प्रावधान:

  • प्रशासनिक न्यायाधिकरणों की स्थापना (धारा 4)
    • अधिनियम में निम्नलिखित प्रशासनिक न्यायाधिकरणों की स्थापना का प्रावधान है:
      • केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT)
      • राज्य सरकारों द्वारा राज्य प्रशासनिक अधिकरण
      • दो या अधिक राज्यों के लिये संयुक्त प्रशासनिक अधिकरण
    • केंद्र सरकार स्थानीय या अन्य प्राधिकरणों और सरकार के स्वामित्व/नियंत्रण वाले निगमों पर प्रावधान लागू कर सकती है।
  • गठन एवं नियुक्ति (धारा 5-6)
    • प्रत्येक अधिकरण में एक अध्यक्ष तथा अन्य न्यायिक एवं प्रशासनिक सदस्य होंगे, जिन्हें समुचित सरकार उपयुक्त समझे। 
    • अध्यक्ष को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिये अथवा रह चुका होना चाहिये।
    • प्रशासनिक सदस्य कम-से-कम 2 वर्षों तक भारत सरकार के सचिव या समकक्ष पद पर कार्य कर चुका हो।
    • न्यायिक सदस्यों को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिये या इसके योग्य होना चाहिये या कम-से-कम 2 वर्षों तक विधिक मामलों के विभाग में सचिव रह चुका होना चाहिये। 
    • अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद की जाती है।
  • अधिकार क्षेत्र और शक्तियाँ (अध्याय III)
    • CAT का क्षेत्राधिकार निम्नलिखित पर है: (धारा 14)
      • संघ के अधीन सिविल सेवाओं/पदों से संबंधित भर्ती और सेवा मामले
      • अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के सेवा मामले
      • नागरिक रक्षा कर्मचारियों के सेवा मामले
    • राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरणों का क्षेत्राधिकार निम्नलिखित पर है: (धारा 15)
      • राज्य के अंतर्गत सिविल सेवाओं/पदों से संबंधित भर्ती और सेवा मामले
      • राज्य-नियंत्रित स्थानीय प्राधिकरणों और निगमों के कर्मचारियों के सेवा मामले
    • अधिकरणों को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त हैं: (धारा 22)
      • व्यक्तियों को बुलाना और उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करना
      • दस्तावेज़ों की खोज और प्रस्तुति की मांग करना
      • शपथपत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना
      • साक्षियों या दस्तावेज़ों की जाँच के लिये आदेश जारी करना
      • निर्णयों की समीक्षा करना
      • कोई अन्य निर्धारित मामला
  • प्रक्रिया एवं अपील (अध्याय IV, धारा 19- धारा 27)
    • शिकायत के कारण का आदेश के एक वर्ष के भीतर आवेदन किया जाना चाहिये। 
    • न्यायाधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रक्रिया से बंधे नहीं हैं, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित हैं।
    • अधिकरण मामलों का शीघ्रता से निर्णय करते हैं, आमतौर पर दस्तावेज़ों और लिखित अभ्यावेदनों के आधार पर।
    • न्यायाधिकरणों के आदेश सिविल न्यायालय के आदेश के रूप में निष्पादन योग्य माने जाते हैं।
    • न्यायाधिकरणों के आदेशों के विरुद्ध अपील संविधान के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है।
  • विविध प्रावधान (अध्याय V, धारा 28- 37)
    • अधिकरणों के समक्ष कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी।
    • न्यायाधिकरणों के सदस्य और कर्मचारी लोक सेवक माने जाएंगे।
    • अन्य विधियों पर अधिनियम का प्रभाव अधिक होगा।
    • केंद्र सरकार को अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये नियम बनाने का अधिकार दिया गया है।
    • उपयुक्त सरकार को न्यायाधिकरणों के प्रशासनिक मामलों पर नियम बनाने का अधिकार दिया गया है।