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सिविल कानून

अस्थायी निषेधाज्ञा

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 21-Sep-2023

रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट प्रा. लिमिटेड बनाम अशोक कुमार/जॉन डो एवं अन्य

"कुछ वेबसाइटों के मालिकों/नियंत्रकों को निर्देशित किया जाता है कि वे किसी भी कंटेंट/सामग्री के अनधिकृत उपयोग से बचें, जिस पर वादी का कॉपीराइट है।"

न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायाधीश सी. हरि शंकर की पीठ ने कुछ वेबसाइटों के मालिकों/नियंत्रकों को किसी भी ऐसे कंटेंट की अनधिकृत प्रतिलिपि, प्रसारण और संप्रेषण से दूर रहने का निर्देश दिया, जिस पर वादी का कॉपीराइट है।

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाम अशोक कुमार/जॉन डो एवं अन्य मामले में यह टिप्पणी दी

पृष्ठभूमि

  • अप्रैल, 2023 में न्यायालय ने प्रतिवादियों और उनकी ओर से कार्य करने वाले अन्य सभी लोगों को सिनेमैटोग्राफिक फिल्म जवान से संबंधित अन्य मालिकाना जानकारी सहित फिल्म के ऑडियो/वीडियो क्लिप, गाने, रिकॉर्डिंग की नकल करने, उसकी रिकॉर्डिंग करने, पुनरुत्पादन करने, रिकॉर्डिंग की अनुमति देने, संचारित करने, संचार करने या वितरण करने, नकल करने, प्रदर्शन या रिलीज के लिये उपलब्ध कराने या किसी भी तरीके से प्रदर्शित करने से रोक दिया।
  • हालाँकि, इस मामले में एक आवेदन पर सुनवाई हुई क्योंकि वादी ने दावा किया कि श्री रोहित शर्मा उपरोक्त गतिविधियों में लिप्त हैं।
  • वादी ने मेटा प्लेटफ़ॉर्म को मामले में एक पक्षकार बनाने की मांग की, जो व्हाट्सएप को नियंत्रित करता है।
  • वादी ने न्यायालय से उन विभिन्न चैट समूहों को बंद करने का अनुरोध किया, जिन पर श्री रोहित शर्मा द्वारा वादी की कॉपीराइट सामग्री को अवैध रूप से प्रसारित किया जा रहा है।
  • वादी ने यह आवेदन सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत प्रस्तुत किया। श्री रोहित शर्मा और मेटा प्लेटफॉर्म्स को अप्रैल, 2023 के अंतरिम आदेश के विस्तार की मांग की गई।

भारत के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी

  • दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ ने प्रतिवादियों को एक हलफनामे पर आईपी एड्रेस, उपयोगकर्त्ता का नाम, पंजीकृत ईमेल आईडी, फोन नंबर और दोषी खातों के अन्य प्रासंगिक विवरण सहित मूल ग्राहक जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया।
  • न्यायालय ने यह टिप्पणी सीपीसी के आदेश XXXIX नियम 3 के तहत एक पक्षीय अस्थायी निषेधाज्ञा के रूप में दी

अस्थायी निषेधाज्ञा

  • उद्देश्य:
    • अस्थायी निषेधाज्ञा का प्राथमिक उद्देश्य मुकदमेबाजी के दौरान अपूरणीय क्षति या अन्याय को रोकना है।
    • यह पक्षों के अधिकारों को संरक्षित करने और न्याय सुनिश्चित करने के बीच एक संतुलन के रूप में कार्य करता है।
  • प्रयोज्यता:
    • जब कोई वादी सिविल मुकदमा दायर करता है और मानता है कि प्रतिवादी के कार्यों से तत्काल और अपूरणीय क्षति हो सकती है, तो वह मौज़ूदा स्थिति को बनाए रखने के लिये अस्थायी निषेधाज्ञा की मांग कर सकता है जब तक कि न्यायालय मुख्य विवाद में कोई फैसला नहीं कर देता।
    • वे अंतर्वादी निषेधाज्ञा (interlocutory orders) होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे मुख्य मुकदमे के लंबित रहने के दौरान जारी किये जाते हैं और मामला बढ़ने पर संशोधन या प्रतिग्रहण के अधीन होते हैं।
    • अस्थायी निषेधाज्ञा की अवधारणा मुख्य रूप से सीपीसी के नियम 1 और 2 के अंतर्गत आती है।
  • न्यायालय द्वारा नोटिस:
    • आम तौर पर, अस्थायी निषेधाज्ञा देने से पहले, न्यायालय को विपरीत पक्ष को नोटिस जारी करना चाहिये और उन्हें सुनने का अवसर प्रदान करना चाहिये।
      • हालाँकि, अत्यावश्यकता के मामलों में, आदेश XXXIX नियम 3 सीपीसी के तहत अस्थायी रूप से एकपक्षीय निषेधाज्ञा दी जा सकती है।
  • समय सीमा:
    • अस्थायी निषेधाज्ञा अनिश्चितकालीन नहीं होती है।
    • ये आमतौर पर एक निश्चित अवधि के लिये दी जाती हैं, और न्यायालय आवश्यकतानुसार उन्हें बढ़ा या संशोधित कर सकता है।
  • उल्लंघन:
    • सीपीसी के नियम 2A के तहत - दिये गए किसी भी निषेधाज्ञा की अवज्ञा के मामले में न्यायालय ऐसी अवज्ञा या उल्लंघन के दोषी व्यक्ति की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दे सकता है और ऐसे व्यक्ति को एक अवधि के लिये सिविल जेल में हिरासत में रखने का भी आदेश दे सकता है। उक्त अवधि तीन माह से अधिक नहीं हो सकती, जब तक कि इस बीच न्यायालय उसकी रिहाई का निर्देश न दे।

अस्थायी निषेधाज्ञा का लाभ उठाने के लिये आवश्यक बातें

  • वादी को अपने पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करना होगा।
  • वादी को यह प्रदर्शित करना होगा कि यदि निषेधाज्ञा नहीं दी गई तो उन्हें अपूरणीय चोट या क्षति होगी।
  • न्यायालय दोनों पक्षों पर विचार करेगा-
    • इसका अर्थ यह विचार करना है कि क्या निषेधाज्ञा देना अधिक उचित और सुविधाजनक है या इसे अस्वीकार करना है।
    • न्यायालय यह निर्धारण करते समय दोनों पक्षों के हितों और सार्वजनिक हित को ध्यान में रखता है।
  • वादी को यह प्रदर्शित करना होगा कि उसके पास कोई अन्य पर्याप्त उपाय उपलब्ध नहीं है। यदि मौद्रिक क्षति वादी को पर्याप्त रूप से क्षतिपूर्ति कर सकती है, तो न्यायालय निषेधाज्ञा देने के लिये कम इच्छुक हो सकता है।