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सिविल कानून

तंग करने के लिये दायर आवेदन को अस्वीकृत किया जाएगा

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 15-Sep-2023

वसंत नेचर क्योर हॉस्पिटल और प्रतिभा मैटरनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट और अन्य बनाम उकाजी रामजी - चूँकि मृत्यु हो गई- कानूनी उत्तराधिकारियों के माध्यम से और अन्य

उच्चतम न्यायालय ने समीक्षा की मांग के लिये कई विविध सिविल आवेदन भरने की प्रथा को लेकर फटकार लगाई है।

उच्चतम न्यायालय

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय (SC) ने वसंत नेचर क्योर हॉस्पिटल तथा प्रतिभा मैटरनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट और अन्य बनाम उकाजी रामजी - चूँकि मृत्यु हो गई- कानूनी उत्तराधिकारियों के माध्यम से और अन्य के मामले में दूसरी अपील में दिये गये फैसले की समीक्षा की मांग के लिये कई विविध सिविल आवेदन भरने की प्रथा को लेकर फटकार लगाई है।

पृष्ठभूमि

  • अपीलकर्ता 'वसंत नेचर केयर हॉस्पिटल' और 'प्रतिभा मैटरनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट' के नाम से एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र चलाते हैं।
  • प्रतिवादी, उकाजी रामजी (मृत्यु होने के कारण से अपने कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से) को थेरेपी सेंटर द्वारा चौकीदार के रूप में नियुक्त किया गया था, उन्हें उक्त अस्पतालों की देखभाल करने का कार्य सौंपा गया था और उन्हें वहाँ एक कमरा आवंटित किया गया था।
  • अवैध गतिविधियों में लिप्त होने के कारण प्रतिवादी को उसकी ड्यूटी से मुक्त कर दिया गया था।
  • उकाजी ने अपीलकर्ता के खिलाफ एक नियमित सिविल मुकदमा दायर किया, जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई कि जिस परिसर को लेकर मुकदमा किया गया है वह उसके स्वामित्व का है और अपीलकर्ता को उस परिसर के कब्ज़े में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिये एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।
  • उक्त मुकदमे को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था, पुनः उस फैसले से व्यथित होकर, उकाजी ने अपर सहायक न्यायाधीश, अहमदाबाद (ग्रामीण) के समक्ष एक नियमित सिविल अपील दायर की।
  • अपील की अनुमति दी गई और वाद संपत्ति पर एक अपरिसंहरणीय लाइसेंस (Irrevocable Licence) उसे प्रदान किया गया जो एक महीने का नोटिस देने के बाद ही समाप्त हो सकता है।
  • अपीलकर्ताओं ने अब गुजरात उच्च न्यायालय (HC) के समक्ष दूसरी अपील की, जिसे अनुमति प्रदान कर दी गई।
  • दूसरी अपील लंबित रहने के दौरान उकाजी की मृत्यु हो गई और उनके कानूनी प्रतिनिधियों (वर्तमान प्रतिवादी) ने उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की।
  • विशेष अनुमति याचिका (SLP) को यह दर्ज़ करते हुए खारिज कर दिया गया था कि वर्तमान प्रतिवादी (दिवंगत उकाजी के कानूनी उत्तराधिकारी) का उच्च न्यायालय के समक्ष समीक्षा आवेदन दायर करने का मंशा थी।
  • इसके 3 वर्ष बाद विविध सिविल आवेदन (एमसीए) - 2016 का एमसीए नंबर 01 दूसरी अपील की समीक्षा के लिये उच्च न्यायालय में दायर किया गया था, जिसे गैर-अभियोजन पक्ष के कारण खारिज कर दिया गया था।
  • चार अन्य एमसीए नंबर 2016 के एमसीए नंबर 02, 2017 के एमसीए नंबर 01, 2018 के एमसीए नंबर 01, 2019 के एमसीए नंबर 01 को एक के बाद एक दायर किया गया था और सभी को अभियोजन की कमी के आधार पर खारिज कर दिया गया था।
  • 2019 के एमसीए नंबर 03 को 2019 के एमसीए नंबर 01 की बहाली के लिये उच्च न्यायालय में दायर किया गया था, जिसे अनुमति दी गई थी।
  • इसलिये, वर्तमान मामला उच्चतम न्यायालय में है।

न्यायालय की टिप्पणी

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की उच्चतम न्यायालय की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता और कानूनी पक्ष को चुनौती देने वाली अपील पर फैसला करते हुए, यह कहा गया कि उच्च न्यायालय ने ऐसे कष्टप्रद आवेदनों को अनुमति देने में घोर त्रुटि की है और वह भी बिना कोई कारण बताए।

कानूनी प्रावधान

निर्णय विधि

हाल ही में एस.सी रामिशेट्टी वेंकटन्ना बनाम नस्याम जमाल साहेब ने कहा कि यदि कोई वादपत्र कष्टकारी, भ्रामक कार्रवाई का कारण है तो उसे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VII नियम 11 (a) और (d) के तहत खारिज कर दिया जाना चाहिये।

  • आदेश VII नियम 11

वादपत्र की अस्वीकृति - वादपत्र का नामंजूर किया जाना वादपत्र निम्नलिखित दशाओं में नामंजूर कर दिया जायेगा-

(क) जहाँ वह वाद-हेतुक प्रकट नहीं करता है;

(ख) जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया है और वादी मूल्यांकन को ठीक करने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है,

(ग) जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन ठीक है किन्तु वादपत्र अपर्याप्त स्टाम्प-पत्र पर लिखा गया है और वादी अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के देने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर, जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है;

(घ) जहाँ वादपत्र में के कथन से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है:

(ड.) जहाँ यह दो प्रतियों में फाइल नहीं किया जाता है।

(च) जहाँ वादी नियम 9 के उपबंधों का अनुपालन करने में असफल रहता है:

परन्तु मूल्यांकन की शुद्धि के लिये या अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के देने के लिये न्यायालय द्वारा नियत समय तब तक नहीं बढ़ाया जायेगा जब तक कि न्यायालय का अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से यह समाधान नहीं हो जाता है कि वादी किसी असाधारण कारण से, न्यायालय द्वारा नियत समय के भीतर, यथास्थिति, मूल्यांकन की शद्धि करने या अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के देने से रोक दिया गया था और ऐसे समय के बढ़ाने से इंकार किये जाने से वादी के प्रति गंभीर अन्याय होगा ।

  • इसके अलावा, आदेश VI नियम 16 न्यायालयों को कष्टकारी दलीलों को खारिज करने की शक्ति प्रदान करता है :
    • आदेश VI नियम 16

अभिवचन का काट दिया जाना - न्यायालय कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम में आदेश दे सकेगा कि किसी भी अभिवचन में की कोई भी ऐसी बात काट दी जाए या संशोधित कर दी जाए.-

(क) जो अनावश्यक, कलंकात्मक, तुच्छ या तंग करने वाली है, अथवा

(ख) जो वाद के ऋजु विचारण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली या उसमें उलझन डालने वाली या विलंब करने वाली है, अथवा

(ग) जो अन्यथा न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।