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आपराधिक कानून

विसरा रिपोर्ट जहर का सबूत नहीं

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 18-Sep-2023

बुद्धदेब साहा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

किसी को केवल विसरा रिपोर्ट में जहर का पता न चलने पर इस बात के निर्णायक सबूत के तौर पर भरोसा नहीं करना चाहिये  कि पीड़ित की मौत जहर से नहीं हुई है।

उच्चतम न्यायालय

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय (SC) ने बुद्धदेब साहा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में, विसरा रिपोर्ट में नकारात्मक परिणाम के आलोक में भी, दहेज हत्या मामले में अपीलकर्ता की सज़ा  को बरकरार रखा है।

पृष्ठभूमि

  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) तुली शाह के संबंध में दर्ज किया गया था, जिसका विवाह अपीलकर्ता नंबर 1 (बुद्धदेब साहा) से हुआ था।
  • शादी के समय तुली शाह के पति के परिवार को नकदी और सोने के गहने दिये गए थे, लेकिन शादी के तुरंत बाद अधिक दहेज की चाहत में उसे प्रताड़ित किया जाने लगा।
  • 2011 में शादी के कुछ महीने बाद, मृतक (तुली शाह) ने अपनी ससुराल में अपने पति के लगातार उत्पीड़न से परेशान होने के कारण जहर खाकर आत्महत्या कर ली।
  • जाँच पूरी होने पर, एक आरोप पत्र दायर किया गया और ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 34 के साथ पठित धारा 304B, 498A के तहत दंडनीय अपराध के लिये आरोप तय किया।
  • ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर गौर करते हुए निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ उचित संदेह से परे अपना मामला सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया है और तदनुसार उन्हें दोषी ठहराया गया।
  • उपरोक्त सज़ा के खिलाफ उच्च न्यायालय (HC) में अपील की गई थी, हालांकि ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की गई थी।
  • इसलिये वर्तमान न्यायालय (SC) में इस आधार पर अपील की गई:
    • यह बिना सबूत का मामला है क्योंकि अभियोजन पक्ष मौत का सटीक कारण स्थापित करने में सक्षम नहीं है।
    • इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मौत के सटीक कारण के बारे में कुछ नहीं कहती है और ऊतक विकृति रिपोर्ट (Histopathology Report) रिपोर्ट भी विसरा में जहर के किसी भी निशान के बारे में चुप है।
      • हालांकि राज्य ने जवाब दिया कि, विधायिका ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 113b के तहत 'सकेगा (Shall)' शब्द का इस्तेमाल किया है, इस शब्द के मद्देनज़र, न्यायालय के पास यह धारणा बनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है कि यह दहेज हत्या का मामला है।
      • राज्य ने यह भी कहा कि, पोस्टमार्टम के दौरान एकत्र किये गए विसरा के नमूने को फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में भेजने में काफी देरी हुई और संभवतः इसी देरी के कारण, हिस्टोपैथोलॉजी रिपोर्ट विसरा में जहर की उपस्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं दे पाई है।

विसरा रिपोर्ट

  • यह एक मेडिकल जाँच रिपोर्ट होती है जिसमें आम तौर पर मृत व्यक्ति के शारीरिक तरल पदार्थ और ऊतकों का विश्लेषण करना शामिल होता है।
  • यह परीक्षण मृत्यु का कारण निर्धारित करने या मृत व्यक्ति के शरीर में किसी भी पदार्थ, जैसे ड्रग्स या जहर, की उपस्थिति का पता लगाने के लिये उपयोग किया जाता है।

ऊतक विकृति रिपोर्ट (Histopathology Report)

ऊतक विकृति रिपोर्ट में ऊतकों की एक विस्तृत जाँच की जाती है और विश्लेषण दिया जाता है, जो आमतौर पर बायोप्सी या सर्जिकल नमूने से प्राप्त की जाती है, इसका उपयोग मुख्य रूप से चिकित्सा स्थितियों का निदान करने, बीमारियों की सीमा का आकलन करने और उपचार निर्णयों का मार्गदर्शन करने के लिये किया जाता है।

  • इसका उपयोग मृत व्यक्तियों के ऊतकों की जाँच करने के लिये भी किया जा सकता है ताकि मृत्यु का कारण निर्धारित किया जा सके या जहर या आघात जैसे किसी भी अपकृत्य के किसी भी लक्षण का पता लगाया जा सके।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • उच्चतम न्यायालय ने आईपी इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजिकल साइंसेज में प्रकाशित "Negative viscera report and its medico-legal aspects" शीर्षक से प्रकाशित एक शोध पत्र पर विचार किया, जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि विसरा रिपोर्ट निम्नलिखित तीन प्रमुख कारणों से नकारात्मक आ सकती है-
    • विसरा जाँच करने प्रक्रिया कैसे संचालित की जाती है।
    • नमूना कैसे एकत्रित किया जाता है।
    • प्रयोगशाला नमूनों की जाँच कैसे करती है।
  • इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय ने महाबीर मंडल बनाम बिहार राज्य, (1972) मामले का भी संज्ञान लिया, जिसमें यह माना गया कि अकेले विसरा रिपोर्ट में जहर का पता न चलने को इस तथ्य का निर्णायक सबूत नहीं माना जाना चाहिये कि पीड़ित जहर से नहीं मरा है।
  • वर्तमान मामले में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा है कि हमें केवल विसरा रिपोर्ट में जहर का पता न चलने पर इस बात के निर्णायक सबूत के रूप में भरोसा नहीं करना चाहिये कि पीड़ित की मौत जहर से नहीं हुई है।

कानूनी प्रावधान

दहेज हत्या

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 2 द्वारा ‘दहेज’ शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया गया है :

धारा 2,“दहेज” की परिभाषा-इस अधिनियम में दहेज से तात्पर्य है -

(क) विवाह के एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को, या

(ख) विवाह के किसी भी पक्ष के माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी भी पक्ष या किसी अन्य व्यक्ति को विवाह करने के सम्बन्ध में विवाह के समय या उससे पूर्व या पश्चात किसी समय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में दी जाने वाली या दी जाने के लिये प्रतिज्ञा की गयी किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति से है किन्तु इसमें उन व्यक्तियों की दशा में मैहर नहीं होगा, जिन पर मुस्लिम स्वीय विधि (शरियत) लागू होती है।

  • स्पष्टीकरण II - अभिव्यक्ति "मूल्यवान प्रतिभूति" का वही अर्थ है जो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 30 में है।
  • दहेज हत्या को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304b द्वारा इस प्रकार परिभाषित किया गया है:

धारा 304B - दहेज हत्या

(।) जहां किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति ने या उसके पति के किसी नातेदार ने, दहेज की किसी मांग के लिये, या उसके संबंध में, उसके साथ क्रूरता की थी या उसे तंग किया था वहां ऐसी मृत्यु को “दहेज मृत्यु” कहा जाएगा और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जाएगा।

स्पष्टीकरण--इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये “दहेज” का वही अर्थ है जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1964 (964 का 28) की धारा 2 में है।

(2) जो कोई दहेज हत्या कारित करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113-b - दहेज हत्या के बारे में उपधारणा- जब प्रश्न यह है कि व्यक्ति ने किसी स्त्री की दहेज हत्या की है और यह दर्शित किया जाता है कि मृत्यु के कुछ पूर्व ऐसे व्यक्ति ने दहेज की किसी मांग के लिये या उसके संबंध में उस स्त्री के साथ क्रूरता की थी या उसको तंग किया था तो न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज हत्या कारित की थी।

स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिये “दहेज मृत्यु” का वही अर्थ है, जो भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 304ख में हैं।

निर्णयज विधि

सतबीर सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2021) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने दहेज हत्या के मामले में व्याख्या इस प्रकार की:

  • दुल्हन को जलाने और दहेज की मांग की सामाजिक बुराई को रोकने के विधायी इरादे को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304b की व्याख्या की जानी चाहिये ।
  • अभियोजन पक्ष को पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304b के तहत अपराध स्थापित करने के लिये आवश्यक सामग्रियों के अस्तित्व को स्थापित करना होगा। एक बार जब ये सामग्रियां संतुष्ट हो जाती हैं या जुटा ली जाती हैं, तो धारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) की 113B के तहत प्रदान की गई कार्य-कारण की खंडन योग्य धारणा आरोपी के खिलाफ काम करती है।
  • वाक्यांश " soon before" भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304b में प्रदर्शित होता है, इसका अर्थ 'तुरंत पहले' नहीं लगाया जा सकता। अभियोजन पक्ष को दहेज हत्या और पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा दहेज की मांग के लिये क्रूरता या उत्पीड़न के बीच "निकटतम और जीवंत संबंध" स्थापित करना चाहिये ।