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पारिवारिक कानून

पत्नी की नि र्बाध संपत्ति

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 26-Apr-2024

माया गोपीनाथन बनाम अनूप एस.बी.

“स्त्रीधन महिला की "निर्बाध/संपूर्ण संपत्ति" है। हालाँकि पति का उस पर कोई नियंत्रण नहीं है, वह संकट के समय में इसका उपयोग कर सकता है”।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने माया गोपीनाथन बनाम अनूप एस.बी. मामले में दोहराया कि स्त्रीधन किसी महिला की निर्बाध/संपूर्ण संपत्ति है और हालाँकि पति का उस पर कोई नियंत्रण नहीं है, वह संकट के समय में इसका उपयोग कर सकता है।

माया गोपीनाथन बनाम अनूप एस.बी. की मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • उक्त मामले में अपीलार्थी और प्रथम प्रतिवादी का विवाह 4 मई 2003 को हिंदू संस्कार और रीति-रिवाज़ों के अनुसार अनुष्ठापित हुआ था।
  • अपीलार्थी के अनुसार, विवाह के समय उसके परिवार ने उसे 89 सॉवरेन सोना उपहार में दिया था।
  • इसके अतिरिक्त, विवाह के पश्चात, अपीलार्थी के पिता ने पहले प्रतिवादी को 2,00,000/- रुपए भी दिये।
  • अपीलार्थी के अनुसार, पहले प्रतिवादी ने उसके सभी गहनों को अपने कब्ज़े में ले लिया, जिसे बाद में दूसरे प्रतिवादी को सुरक्षित रखने के लिये सौंप दिया गया।
  • अपीलार्थी के अनुसार उसके सभी गहनों का प्रतिवादियों ने अपनी पूर्व की वित्तीय देनदारियों का निपटान करने के लिये गबन कर लिया।
  • वर्ष 2009 में अपीलार्थी ने गहनों के मूल्य और पूर्व में प्रदत्त 2,00,000/- रुपए की वसूली के लिये फैमिली कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की।
  • अपीलार्थी ने विवाह-विच्छेद के लिये भी याचिका दायर की।
  • फैमिली कोर्ट ने अपीलार्थी के पक्ष में निर्णय करते हुए कहा कि उत्तरदाताओं ने वास्तव में अपीलार्थी के सोने के आभूषणों का दुरुपयोग किया और उत्तरदाताओं को उक्त दुरुपयोग से हुए नुकसान की भरपाई करने का आदेश दिया।
  • फैमिली कोर्ट के आदेश से व्यथित होकर, उत्तरदाताओं ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
  • उच्च न्यायालय ने प्रतिवादियों की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और फैमिली कोर्ट द्वारा अपीलार्थी को दिये गए अनुतोष को रद्द कर दिया।
  • इसके पश्चात् उच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील स्वीकार कर ली गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा कि स्त्रीधन महिला की निर्बाध संपत्ति है और हालाँकि पति का उस पर कोई नियंत्रण नहीं है किंतु वह संकट के समय इसका उपयोग कर सकता है। फिर भी उसका अपनी पत्नी को वही या उसका मूल्य लौटाने का "नैतिक दायित्व" है।
  • न्यायालय ने रश्मी कुमार बनाम महेश कुमार भादा (1997) मामले में किये गए निर्णय का हवाला दिया।
    • इस मामले में न्यायालय ने कहा कि स्त्रीधन पत्नी और पति की संयुक्त संपत्ति नहीं बनती है। उत्तरार्द्ध का "संपत्ति पर कोई शीर्षक या स्वतंत्र प्रभुत्व नहीं है।"

स्त्रीधन की संकल्पना क्या है?

परिचय:

  • स्त्रीधन शब्द की उत्पत्ति 'स्त्री'- एक महिला और 'धन'- शाब्दिक अर्थ संपत्ति, से हुई है।
  • किसी महिला को उसके जीवनकाल में प्राप्त वस्तुओं को स्त्रीधन कहा जाता है।
  • इसमें विवाह से पूर्व, विवाह के समय, प्रसव के दौरान और विधुर अवस्था में महिलाओं को प्राप्त सभी स्थावर, जंगम संपत्ति उपहार इत्यादि शामिल हैं।
  • स्त्रीधन दहेज़ से इस मायने में भिन्न है कि यह एक महिला को उसकी शादी से पूर्व अथवा पश्चात् में स्वेच्छया से दिया जाने वाला उपहार है और इसमें जबरन जैसा कोई तत्त्व शामिल नहीं है।
  • स्त्रीधन पर महिलाओं का संपूर्ण अधिकार होता है।

स्त्रीधन में शामिल घटक:

  • स्त्रीधन में निम्नलिखित घटक शामिल हैं:
    • विवाह अग्नि एक समक्ष दिये गए उपहार।
    • वधू की बारात में दिये गए उपहार।
    • प्रेम स्वरूप दिये गए उपहार, अर्थात् वधू के ससुर, सास और अन्य वृद्ध जनों द्वारा दिये गए उपहार।
    • वधू के पिता द्वारा दिये गए उपहार।
    • वधू की माता द्वारा दिये गए उपहार।
    • वधू के भाई द्वारा दिये गए उपहार।

स्त्रीधन से संबंधित कानून:

  • एक महिला का अपने स्त्रीधन पर अधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के साथ हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 27 के तहत संरक्षित है, जिनके अनुसार “किसी नारी का स्त्रीधन उसके पति अथवा उसके ससुराल के नातेदारों की हिरासत में हो सकता है, वे उस संपत्ति के न्यासी माने जाएंगे किंतु वे संबद्ध नारी द्वारा स्त्रीधन की मांग किये जाने पर उसे लौटाने हेतु आबद्ध होंगे।
  • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 उन मामलों में महिलाओं को उनके स्त्रीधन का अधिकार प्रदान करती है जहाँ वे घरेलू हिंसा की शिकार हैं। स्त्रीधन की वसूली के लिये इस कानून के उपबंधों को सरलता से\ कार्यान्वित किया जा सकता है। मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को पीड़ित व्यक्ति को उसका स्त्रीधन अथवा कोई अन्य संपत्ति अथवा मूल्यवान सुरक्षा, जिसकी वह हकदार है, पुनः लौटाने का निर्देश दे सकता है।