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पारिवारिक कानून

वित्तीय सहायता के लिये पत्नी का अनुरोध

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 12-Mar-2024

X बनाम Y

"एक पत्नी द्वारा अपने पति से वित्तीय सहायता के अनुरोध को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है।"

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक्स बनाम वाई के मामले में माना है कि एक पत्नी द्वारा अपने पति से वित्तीय सहायता के अनुरोध को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है।

एक्स बनाम वाई मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, अपीलकर्त्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) का 11 फरवरी, 2010 को विवाह हुआ था।
  • मतभेद उभरने लगे, क्योंकि प्रतिवादी के अनुसार अपीलकर्त्ता के परिवार से दहेज़ की उम्मीदें और परिणामी मांगें सामने आने लगीं।
  • पति ने आरोप लगाया कि पत्नी उसे शारीरिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित करती थी तथा उसके अड़ियल आचरण के कारण, विवाह को सफल बनाने के उसके सभी प्रयास व्यर्थ हो गए।
  • पति ने कुटुंब न्यायालय के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13 (1) (i-a) के प्रावधानों के तहत विवाह-विच्छेद की याचिका दायर की, जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज कर दिया।
  • इसके बाद, वर्तमान अपील कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 के तहत दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई है।
  • उच्च न्यायालय द्वारा अपील स्वीकार की गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि प्रतिशोध, झुंझलाहट तथा असहिष्णुता सुसंगत समझ के दुश्मन होते हैं। यद्यपि पीड़ित व्यक्ति कानूनों के तहत उपचार का लाभ उठाने का हकदार है और अपने अधिकारों के भीतर है, लेकिन, जब पति-पत्नी आपराधिक मुकदमों के इस जाल में फँस जाते हैं तो "कोई वापसी नहीं" की बात को पार करना अपरिहार्य हो जाता है। अनुचित आरोपों और शिकायतों की गोलियाँ ऐसे घातक घावों का कारण बनती हैं, जिससे असहनीय मानसिक तथा शारीरिक कटुता उत्पन्न होती है, जिससे पति-पत्नी के लिये एक साथ रहना असंभव हो जाता है।
  • आगे यह माना गया कि एक पत्नी द्वारा अपने पति से वित्तीय सहायता के अनुरोध को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है, लेकिन अपीलकर्त्ता के प्रति प्रतिवादी द्वारा क्रूरता को साबित करने के लिये अभिलेख पर अन्य भारी साक्ष्य थे।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

HMA की धारा 13(1)(i-a)

परिचय:

  • यह धारा विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में क्रूरता से संबंधित है।
  • HMA में वर्ष 1976 के संशोधन से पूर्व, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता विवाह-विच्छेद का दावा करने का आधार नहीं थी।
  • यह अधिनियम की धारा 10 के तहत न्यायिक अलगाव का दावा करने का केवल एक आधार था।
  • वर्ष 1976 के संशोधन द्वारा क्रूरता को विवाह-विच्छेद का आधार बना दिया गया।
  • इस अधिनियम में क्रूरता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • आमतौर पर, क्रूरता कोई भी ऐसा व्यवहार है जो शारीरिक या मानसिक, जानबूझकर या अनजाने में किया जाता है।

क्रूरता के प्रकार:

  • उच्चतम न्यायालय द्वारा कई निर्णयों में दिये गए कानून के अनुसार क्रूरता दो प्रकार की होती है:
    • शारीरिक क्रूरता - जीवनसाथी को पीड़ा पहुँचाने वाला हिंसक आचरण।
    • मानसिक क्रूरता - जीवनसाथी को किसी प्रकार का मानसिक तनाव होता है या उसे लगातार मानसिक पीड़ा से गुज़रना पड़ता है।

निर्णयज विधि:

  • शोभा रानी बनाम मधुकर रेड्डी (1988) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्रूरता शब्द की कोई निश्चित परिभाषा नहीं हो सकती।
  • मायादेवी बनाम जगदीश प्रसाद (2007) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी में से किसी एक द्वारा किसी भी प्रकार की मानसिक क्रूरता का सामना करने पर, न केवल महिला, बल्कि पुरुष भी क्रूरता के आधार पर विवाह-विच्छेद के लिये आवेदन कर सकते हैं।

कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984

  • यह अधिनियम सुलह को बढ़ावा देने और विवाह तथा पारिवारिक मामलों से संबंधित विवादों के शीघ्र निपटान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कुटुंब न्यायालयों की स्थापना के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
  • इस अधिनियम की धारा 19 अपील से संबंधित है।