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पारिवारिक कानून

पत्नी का बिना कारण अलग रहने की जिद करना क्रूरता है

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 24-Aug-2023

सुनील जुनेजा बनाम सोनिया

"बिना कारण पत्नी का पति के परिवार से अलग रहने की जिद करना क्रूरता है"।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा

स्रोत- दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

सुनील जुनेजा बनाम सोनिया के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि बिना किसी उचित कारण के पति के परिवार के सदस्यों से अलग रहने को लेकर पत्नी की जिद करना क्रूरता की श्रेणी में आता है।

पृष्ठभूमि

  • दोनों पक्षों ने वर्ष 2000 में हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार शादी की।
  • उक्त विवाह से दो बच्चे पैदा हुए।
  • पत्नी ने 2003 में अपने पति का घर छोड़ दिया और बाद में वापस आ गई लेकिन जुलाई 2007 में फिर से वापस चली गई।
  • पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955 (HMA) की धारा 13(1) (i-b) के तहत फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक के लिये याचिका दायर की गई थी, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया था।
  • पति द्वारा फैमिली कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई।
  • उच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955 (HMA) की धारा 13(1) (ia) और (ib) के तहत क्रूरता और परित्याग के आधार पर एक दंपत्ति की शादी को खत्म कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि बिना किसी उचित कारण के पति के परिवार के अन्य सदस्यों से अलग रहने के लिये पत्नी की जिद करना क्रूरता की श्रेणी में आता है।
  • पीठ ने आगे कहा कि घर का कटु माहौल दोनों पक्षों के लिये सौहार्दपूर्ण वैवाहिक संबंध बनाने के लिये अनुकूल माहौल नहीं हो सकता। समय के साथ तालमेल की कमी और पत्नी के भ्रामक आचरण के कारण घर में इस तरह का माहौल मानसिक क्रूरता का कारण बनता है।

कानूनी प्रावधान

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955 (HMA) के तहत तलाक

  • इस अधिनियम की धारा 13 तलाक के प्रावधानों से संबंधित है।
  • धारा 13(1) के अनुसार, कोई भी विवाह, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले या बाद में हुआ हो, निम्नलिखित आधारों पर पति या पत्नी द्वारा याचिका प्रस्तुत करने पर तलाक की डिक्री द्वारा भंग किया जा सकता है:
    • व्यभिचार
    • क्रूरता
    • परित्याग
    • परिवर्तन
    • मानसिक विकार
    • गुप्त रोग
    • विषैला एवं असाध्य कुष्ठ रोग
    • संसार का त्याग
    • मृत्यु का अनुमान

तलाक के लिये आधार के रूप में क्रूरता [हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1) (i-a)]

  • हिंदू विवाह अधिनियम में 1976 के संशोधन से पहले, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता तलाक का दावा करने का आधार नहीं थी।
  • यह अधिनियम की धारा 10 के तहत न्यायिक अलगाव का दावा करने का केवल एक आधार था।
  • 1976 के संशोधन द्वारा क्रूरता को तलाक का आधार बना दिया गया।
  • हिंदू विवाह अधिनियम में क्रूरता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • आम तौर पर, क्रूरता कोई भी ऐसा व्यवहार है जो शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुंचाता है। क्रूरता दो प्रकार की होती है.
    • शारीरिक क्रूरता: हिंसक आचरण जिससे जीवनसाथी को कष्ट हो।
    • मानसिक क्रूरता: किसी भी प्रकार का मानसिक तनाव या मानसिक पीड़ा पहुँचाना।
  • शोभा रानी बनाम मधुकर रेड्डी (1988) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्रूरता की कोई निश्चित परिभाषा नहीं हो सकती।
  • मायादेवी बनाम जगदीश प्रसाद (2007) में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी में से किसी एक द्वारा झेली गई किसी भी प्रकार की मानसिक क्रूरता के कारण न केवल महिला, बल्कि पुरुष भी क्रूरता के आधार पर तलाक के लिये आवेदन कर सकते हैं।

तलाक के लिये आधार के रूप में परित्याग [हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) (i-b)]

  • 1976 के संशोधन द्वारा, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (i-b) के तहत परित्याग को तलाक के आधार के रूप में शामिल किया गया था।
  • 1976 से पहले, परित्याग केवल न्यायिक पृथक्करण का आधार था लेकिन अब यह तलाक और न्यायिक पृथक्करण दोनों का आधार है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) (i-b) परित्याग को तलाक के आधार के रूप में पेश करती है और कहती है कि पति या पत्नी द्वारा प्रस्तुत याचिका पर विवाह, तलाक की डिक्री द्वारा इस आधार पर भंग किया जा सकता है कि दूसरे पक्ष ने याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले कम से कम दो साल की लगातार अवधि के लिये याचिकाकर्ता को त्याग दिया।
  • परित्याग शब्द का अर्थ विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता का बिना किसी उचित कारण के और ऐसे पक्ष की सहमति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध परित्याग करना है और इसमें विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता की जानबूझकर उपेक्षा करना और इसकी व्याकरणिक विविधताओं और सजातीय अभिव्यक्तियों (grammatical variations and cognate expressions meaning) का तदनुसार अर्थ लगाया जायेगा।
  • परित्याग को तलाक के आधार के रूप में स्थापित करने के लिये, निम्नलिखित आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिये:
    • परित्याग स्वैच्छिक होना चाहिये।
    • परित्याग उचित कारण के बिना होना चाहिये।
    • यह निरंतर और अनुचित होना चाहिये।
    • परित्याग जानबूझकर और सोच-समझकर किया जाना चाहिये।
  • परित्याग को दो तरीकों से समाप्त किया जा सकता है - आपसी सहमति से या सह-आवास की बहाली से।