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सांविधानिक विधि
रिट क्षेत्राधिकार और डिक्री का निष्पादन
« »16-Feb-2024
टेरेसा मैरी जॉर्ज बनाम केरल राज्य “भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार को किसी डिक्री के निष्पादन के लिये लागू नहीं किया जा सकता है।” जस्टिस विजू अब्राहम |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, टेरेसा मैरी जॉर्ज बनाम केरल राज्य के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार को डिक्री के निष्पादन हेतु लागू नहीं किया जा सकता है।
टेरेसा मैरी जॉर्ज बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में याचिकाकर्ता के मृतक पति को अपनी माँ द्वारा की गई वसीयत के आधार पर 3.24 एकड़ ज़मीन प्राप्त हुई।
- याचिकाकर्ता और उसके बच्चों ने वसीयत के तहत संपत्ति के निर्धारण हेतु डिक्री प्राप्त करने के क्रम में न्यायालय में एक वाद दायर किया था।
- मुकदमा लंबित रहने तक, इसके सीमांकन के साथ सर्वेक्षण योजना की तैयारी की गई।
- इस दौरान संबंधित पक्षों ने समझौता कर लिया और वाद का फैसला सुनाया गया।
- इसके बाद, याचिकाकर्ता ने समझौते में सहमति के अनुसार सर्वेक्षण हेतु उत्तरदाताओं से संपर्क किया।
- प्रतिवादी ने इस पर असहमति व्यक्त की और याचिकाकर्ता ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति विजू अब्राहम ने कहा कि जब याचिकाकर्ता के पास सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XXI के तहत सिविल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री को निष्पादित करने के लिये सक्षम सिविल न्यायालय से संपर्क करने हेतु एक प्रभावी वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है, तो याचिकाकर्ता सिविल न्यायालय द्वारा पारित डिक्री को निष्पादित करने के लिये COI के अनुच्छेद 226 के तहत संबंधित न्यायालय में वाद नहीं कर सकता है।
- न्यायालय ने कॉरपोरेशन ऑफ कोच्चि बनाम थॉमस जॉन किथू और अन्य के मामले (2020) में दिये गए फैसले को आधार बनाया।
- इस मामले में केरल उच्च न्यायालय ने माना है कि डिक्री के निष्पादन के लिये प्रक्रिया उपलब्ध होने पर COI के अनुच्छेद 226 के तहत राहत प्रदान नहीं की जा सकती है।
इसमें कौन से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?
COI का अनुच्छेद 226 क्या है?
परिचय:
- अनुच्छेद 226 संविधान के भाग V के तहत निहित है जो उच्च न्यायालय को रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
- COI के अनुच्छेद 226(1) में कहा गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय के पास मौलिक अधिकारों और अन्य उद्देश्यों को लागू करने के लिये किसी भी व्यक्ति या किसी सरकार को बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा एवं उत्प्रेषण रिट सहित आदेश या रिट जारी करने की शक्ति होगी।
- अनुच्छेद 226(2) में कहा गया है कि उच्च न्यायालय के पास किसी भी व्यक्ति, सरकार या प्राधिकरण को रिट या आदेश जारी करने की शक्ति होती है-
- यह इसके क्षेत्राधिकार में स्थित है, या
- अपने स्थानीय क्षेत्राधिकार के बाहर यदि कार्रवाई के कारण की परिस्थितियाँ पूर्णतः या आंशिक रूप से उसके क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर उत्पन्न होती हैं।
- अनुच्छेद 226(3) में कहा गया है कि जब उच्च न्यायालय द्वारा किसी पक्ष के विरुद्ध व्यादेश, स्थगन या अन्य माध्यम से कोई अंतरिम आदेश पारित किया जाता है तो वह पक्ष ऐसे आदेश को रद्द कराने के लिये न्यायालय में आवेदन कर सकता है और ऐसे आवेदन का निपटारा न्यायालय द्वारा दो सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिये।
- अनुच्छेद 226(4) कहता है कि इस अनुच्छेद द्वारा उच्च न्यायालय को दी गई शक्ति से अनुच्छेद 32 के खंड (2) द्वारा उच्चतम न्यायालय को दिये गए अधिकार कम नहीं होने चाहिये।
- यह अनुच्छेद सरकार सहित किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।
- यह महज़ एक संविधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं है और इसे आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 226 मौलिक अधिकारों और वैवेकिक प्रकृति के मामले में अनिवार्य होता है जब इसे "किसी अन्य उद्देश्य" के लिये जारी किया जाता है।
- यह न केवल मौलिक अधिकारों, बल्कि अन्य कानूनी अधिकारों को भी लागू करता है।
- अनुच्छेद 226 के तहत उपलब्ध रिट:
- बंदी प्रत्यक्षीकरण
- परमादेश
- उत्प्रेषण
- प्रतिषेध
- अधिकार पृच्छा
निर्णयज विधि:
- बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ (1984) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 226 का दायरा अनुच्छेद 32 की तुलना में अत्यंत व्यापक है क्योंकि अनुच्छेद 226 को कानूनी अधिकारों की सुरक्षा के लिये भी जारी किया जा सकता है।
- कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (2018) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 226 के तहत रिट सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक ज़िम्मेदारियों को लागू करने के लिये भी जारी की जा सकती है।
CPC का आदेश XXI:
- CPC का आदेश 21 डिक्री के निष्पादन से संबंधित है और डिक्री के तहत भुगतान का आदेश देता है।
- इस आदेश में 106 नियम शामिल हैं।
- इसमें डिक्री के निष्पादन हेतु प्रक्रिया प्रदान की गई है, जैसे संपत्ति की कुर्की, संपत्ति की बिक्री, देनदार की गिरफ्तारी, रिसीवर की नियुक्ति आदि।