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सिविल कानून

लिखित कथन

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 06-Mar-2024

थंगम एवं अन्य बनाम नवमणि अम्मल

"प्रतिवादी की ओर से लिखित कथन में एक विशिष्ट क्रमवार उत्तर देने में विफलता से वादपत्र में लगाए गए आरोप प्रतिवादी के विरुद्ध स्वीकार किये जाएँगे।"

न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और राजेश बिंदल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने थंगम एवं अन्य बनाम नवमणि अम्माल के मामले में, माना है कि प्रतिवादी की ओर से लिखित कथन में एक विशिष्ट क्रमवार उत्तर देने में विफलता से वादपत्र में लगाए गए आरोप प्रतिवादी के विरुद्ध स्वीकार किये जाएँगे।

थंगम एवं अन्य बनाम नवमणि अम्मल मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, वसीयत के वसीयतकर्त्ता, पलानियांडी उदयर, अपीलकर्त्ता नंबर 1 के पति और अपीलकर्त्ता नंबर 2 के पिता थे।
  • वसीयत नवमणि अम्मा (वादी) के पक्ष में निष्पादित की गई थी, जो वसीयत में दिये गए वर्णन के अनुसार, वसीयतकर्त्ता के भाई की बेटी बताई गई थी।
  • वादी/प्रत्यर्थी ने अपीलकर्त्ता/प्रतिवादी के विरुद्ध ट्रायल कोर्ट के समक्ष घोषणा और व्यादेश की मांग करते हुए एक मुकदमा दायर किया।
  • अपीलकर्त्ताओं/प्रतिवादी द्वारा दायर एक लिखित कथन में प्रत्यर्थी/वादी द्वारा किये गए दावे का कोई विनिर्दिष्ट खंडन नहीं किया गया और न ही अपीलकर्त्ताओं/प्रतिवादी द्वारा वाद में लगाए गए आरोपों का क्रमवार उत्तर दिया गया।
  • ट्रायल कोर्ट ने प्रत्यर्थी/वादी के पक्ष में मुकदमे का निर्णय सुनाया।
  • अपीलकर्त्ताओं की अपील में, ट्रायल कोर्ट के निर्णय और डिक्री को प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा उलट दिया गया था।
  • प्रत्यर्थी द्वारा दायर दूसरी अपील में प्रथम अपीलीय न्यायालय के निर्णय और डिक्री को रद्द कर दिया गया तथा ट्रायल कोर्ट के निर्णय को उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया था।
  • इसके बाद, अपीलकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • पीठ में शामिल न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और राजेश बिंदल ने देखा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VIII नियम 3 व 5, स्पष्ट रूप से वादपत्र में दलीलों की विनिर्दिष्ट स्वीकृति और खंडन का प्रावधान करते हैं। एक सामान्य या वाग्छलपूर्ण प्रत्याख्यान को पर्याप्त नहीं माना जाता है।
    • CPC के आदेश VIII नियम 5 के प्रावधान में यह उल्लेख है कि भले ही स्वीकृत तथ्यों को स्वीकार नहीं किया गया हो, फिर भी न्यायालय अपने विवेकाधिकार से उन तथ्यों को साबित करने की मांग कर सकता है।
    • यह सामान्य नियम का अपवाद है। सामान्य नियम यह है कि स्वीकार किये गए तथ्यों को साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • आगे यह माना गया कि लिखित कथन को वादपत्र में तथ्य के प्रत्येक आरोप से विशेष रूप से निपटना चाहिये और जब कोई प्रतिवादी ऐसे किसी भी तथ्य से इनकार करता है, तो उसे ऐसा वाग्छलपूर्णता नहीं करना चाहिये, बल्कि उत्तर देना चाहिये।
    • यदि किसी तथ्य का उसका प्रत्याख्यान विनिर्दिष्ट नहीं, वाग्छलपूर्ण है, तो उक्त तथ्य को स्वीकार कर लिया जाएगा। ऐसी स्थिति में, स्वीकारोक्ति ही प्रमाण है, किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है।
  • यह भी माना गया कि आदेश VIII के नियम 5 में यह प्रावधान है कि वादपत्र में तथ्य के प्रत्येक आरोप को, यदि लिखित कथन में अस्वीकार नहीं किया गया है, प्रतिवादी द्वारा स्वीकार किया गया माना जाएगा।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

लिखित कथन:

  • एक लिखित कथन का अर्थ आमतौर पर वादी द्वारा दायर वादपत्र का उत्तर होता है। यह प्रतिवादी की दलील होती है।
  • CPC के आदेश VIII में लिखित कथन के संबंध में प्रावधान हैं।

CPC के आदेश VIII का नियम 3:

यह नियम विनिर्दिष्ट होने के प्रत्याख्यान से संबंधित है।

इसमें कहा गया है कि प्रतिवादी के लिये यह पर्याप्त नहीं होगा कि वह अपने लिखित कथन में उन आधारों का साधारणतः प्रत्याख्यान कर दे जो वादी द्वारा अभिकथित हैं, किंतु प्रतिवादी के लिये यह आवश्यक है कि वह नुकसानी के सिवाय ऐसे तथ्य संबंधी हर एक अभिकथन का विनिर्दिष्टत: विवेचन करे जिसकी सत्यता वह स्वीकार नहीं करता है।

CPC के आदेश VIII का नियम 5:

यह नियम विनिर्दिष्टत: प्रत्याख्यान से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -

(1) यदि वादपत्र में के तथ्य संबंधी हर अभिकथन का विनिर्दिष्टत: यह आवश्यक विवक्षा से प्रत्याख्यान नहीं किया जाता है या प्रतिवादी के अभिवचन में यह कथन कि वह स्वीकार नहीं किया जाता, तो जहाँ तक निर्योग्यताधीन व्यक्ति को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति का संबंध है वह स्वीकार कर लिया गया, माना जाएगा:

परंतु ऐसे स्वीकार किये गए किसी भी तथ्य के ऐसी स्वीकृति के अलावा अन्य प्रकार से साबित किये जाने की अपेक्षा न्यायालय स्वविवेकानुसार कर सकेगा।

परंतु यह और कि वादपत्र में तथ्य के प्रत्येक अभिकथन को, यदि इस आदेश के नियम 3A के अधीन उपबंधित रीति से उसका प्रत्याख्यान नहीं किया जाता है, तो निर्योग्यता के अधीन के किसी व्यक्ति के विरुद्ध अभिकथन होने के सिवाय, स्वीकार किया जाने वाला माना जाएगा।

(2) जहाँ प्रतिवादी ने अभिवचन फाइल नहीं किया है वहाँ न्यायालय के लिये वादपत्र में अंतर्विष्ट तथ्यों के आधार पर निर्णय सुनाना, जहाँ तक निर्योग्यताधीन व्यक्ति को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति का संबंध है, विधिपूर्ण होगा, किंतु न्यायालय किसी ऐसे तथ्य को साबित किये जाने की अपेक्षा स्वविवेकानुसार कर सकेगा।

(3) न्यायालय उपनियम (1) के परंतुक के अधीन या उपनियम (2) के अधीन अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने में इस तथ्य पर सम्यक् ध्यान देगा कि क्या वादी किसी प्लीडर को नियुक्त कर सकता था या उसने किसी प्लीडर को नियुक्त किया है।

(4)  इस नियम के अधीन जब कभी निर्णय सुनाया जाता है तब ऐसे निर्णय के अनुसार डिक्री तैयार की जाएगी और ऐसी डिक्री पर वही तारीख दी जाएगी जिस तारीख को निर्णय सुनाया गया था।