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आपराधिक कानून

कर्मचारी को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण

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 11-Oct-2024

निपुण अनेजा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

"न्यायालय ने उन परिस्थितियों पर ध्यान दिया जिनके अंतर्गत आधिकारिक सीनियरों को किसी कर्मचारी को आत्महत्या के दुष्प्रेरण के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, तथा उनके रिश्ते की प्रकृति पर ध्यान केंद्रित किया गया।"

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में उन शर्तों को स्पष्ट किया है जिनके अंतर्गत किसी जूनियर अधिकारी को आत्महत्या के दुष्प्रेरण के लिये आधिकारिक सीनियरों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। न्यायालय ने संबंधों की दो श्रेणियों के मध्य विभाजित किया: भावनात्मक संबंध (जैसे, पारिवारिक या रोमांटिक) और आधिकारिक क्षमताएँ।

  • न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने निपुण अनेजा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
  • इसमें इस बात पर बल दिया गया कि भावनात्मक संबंधों में टकराव से मनोवैज्ञानिक संकट उत्पन्न हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप आत्महत्या भी हो सकती है, तथा इस प्रकार कुछ परिस्थितियों में उत्तरदायित्व का आधार भी स्थापित हो सकता है।

निपुण अनेजा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • राजीव जैन हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड के कर्मचारी थे, जिन्होंने 23 वर्ष तक कंपनी के साथ कार्य किया था।
  • 3 नवंबर 2006 को, राजीव जैन ने लखनऊ में अपने होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली।
  • अगले दिन, उनके भाई रजनीश जैन ने आत्महत्या के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराई।
  • FIR के अनुसार, कंपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) की योजना बना रही थी, जिसे कथित तौर पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति योजना (CRS) के रूप में लागू किया किया जा रहा था।
  • FIR में निपुण अनेजा, जेड.आई. अल्वी एवं मनीष शर्मा सहित कई कंपनी अधिकारियों का नाम था, जिन पर कर्मचारियों पर VRS स्वीकार करने के लिये दबाव डालने तथा उन्हें परेशान करने का आरोप था।
  • अपनी मौत के दिन राजीव जैन लखनऊ के होटल दीप पैलेस में अन्य कर्मचारियों एवं कंपनी अधिकारियों के साथ एक बैठक में शामिल हुए थे।
  • इस बैठक के दौरान, राजीव जैन एवं अन्य कर्मचारी जिन्होंने VRS नहीं लिया था, उन्हें कथित तौर पर मर्चेंडाइजिंग में कार्य करने के लिये पत्र दिये गए थे, जिसे सेल्समैन के रूप में उनकी वर्तमान भूमिकाओं से कमतर माना जाता था।
  • मृतक के दो सहयोगियों सुधीर कुमार ओझा एवं जयंत कुमार घटक ने पुलिस के साथ बैठक की, घटनाओं एवं कथित उत्पीड़न का वर्णन करते हुए बयान दिये।
  • इन बयानों एवं अन्य साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने आरोपी अधिकारियों के विरुद्ध आत्महत्या के दुष्प्रेरण के आरोप में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 306 के अंतर्गत आरोप पत्र दायर किया।
  • आरोपी अधिकारियों ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिये एक याचिका दायर की, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने खारिज कर दिया।
  • इस अस्वीकृति के बाद, आरोपी अधिकारियों ने उनके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द न करने के उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने अवधारित किया कि IPC की धारा 306 (आत्महत्या का दुष्प्रेरण) के लिये आत्महत्या के दुष्प्रेरण के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों का साक्ष्य होना चाहिये।
  • न्यायालय ने दुष्प्रेरण के मामलों में संबंधों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया:
    • जहाँ मृतक के अभियुक्त के साथ भावनात्मक या शारीरिक संबंध थे
    • जहाँ मृतक के अभियुक्त के साथ आधिकारिक संबंध थे
  • न्यायालय ने कहा कि आधिकारिक संबंधों में अपेक्षाएँ एवं दायित्व विधियों, नियमों, नीतियों एवं विनियमों द्वारा निर्धारित किये जाते हैं, जबकि भावनात्मक संबंधों में व्यक्तिगत अपेक्षाएँ अधिक होती हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में परीक्षण यह पता लगाने के लिये होना चाहिये कि क्या प्रथम दृष्टया साक्ष्य है कि अभियुक्त ने अपने कृत्य के परिणामों, अर्थात आत्महत्या के आशय से दुष्प्रेरण कारित किया था।
  • न्यायालय ने कई कारकों पर ध्यान दिया जिनकी दुष्प्रेरण के मामलों में जाँच की जानी चाहिये :
    • क्या अभियुक्तों ने असहनीय उत्पीड़न की स्थिति उत्पन्न की
    • क्या उन्होंने भावनात्मक दुर्बलता का अनुचित लाभ उठाया
    • क्या उन्होंने गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी
    • क्या उन्होंने प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाने वाले मिथ्या आरोप लगाए
  • न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण दोषपूर्ण था क्योंकि वह इन कारकों की उचित जाँच करने में विफल रहा।
  • न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करने के विशिष्ट आशय के बिना, आधिकारिक क्षमता में केवल उत्पीड़न या अपमान करना, दुष्प्रेरण की श्रेणी में नहीं आता।
  • न्यायालय ने कहा कि जहाँ न्यायालय अक्सर आशय का पता लगाने के लिये पूरी सुनवाई का प्रतीक्षा करती हैं, वहीं आत्महत्या के दुष्प्रेरण के मामलों में आरोपों की प्रकृति अक्सर प्रारंभ से ही तथ्यों को स्पष्ट कर देती है।
  • न्यायालय ने पाया कि आत्महत्या के दुष्प्रेरण को नियंत्रित करने वाले विधि के सिद्धांतों को सही ढंग से लागू करने में न्यायालयों की अक्षमता के कारण अक्सर अनावश्यक अभियोजन होता है।
  • न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्त्ताओं पर अभियोजन का वाद चलाना विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, क्योंकि उनके विरुद्ध कोई भी मामला दर्ज नहीं किया गया।
  • न्यायालय ने सामान्य कार्यस्थल पर होने वाले संघर्षों तथा उन कार्यवाहियों के मध्य अंतर स्थापित किया जिन्हें दुष्प्रेरण माना जा सकता है, इस बात पर बल देते हुए कि आधिकारिक संबंधों के मानक सामान्य तौर पर व्यक्तिगत संबंधों से अलग होते हैं।

BNS , 2023 की धारा 108 क्या है?

परिचय:

  • BNS की धारा 108 में आत्महत्या के दुष्प्रेरण  की सजा का प्रावधान है, जो दस वर्ष तक की कैद और जुर्माने सहित हो सकती है।
  • पहले यह IPC की धारा 306 के अंतर्गत दी जाती थी।

आवश्यक सामग्री:

  • धारा 108 BNS के अंतर्गत अपराध के आवश्यक तत्व हैं:
    • आत्महत्या का तथ्य
    • आरोपी द्वारा दुष्प्रेरण
  • इस धारा के अंतर्गत दुष्प्रेरण स्थापित करने के लिये अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करना होगा:
    • मृतक ने आत्महत्या की है।
    • आरोपी ने आत्महत्या के दुष्प्रेरण कारित किया था।

दोषसिद्धि हेतु आवश्यक तत्त्व:

  • धारा 108 के अंतर्गत दोषसिद्धि के लिये निम्नलिखित साक्ष्य होने चाहिये:
    • आत्महत्या के दुष्प्रेरण का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कार्य।
    • मृतक को आत्महत्या करने के दुष्प्रेरण या सहायता करने का अभियुक्त का आशय।
  • मात्र उत्पीड़न या अपमानजनक व्यवहार को दुष्प्रेरण नहीं माना जाएगा, जब तक कि:
    • ऐसे साक्ष्य हैं जो सिद्ध करते हैं कि आरोपी का आशय आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करना था।
    • यह कृत्य आत्महत्या के समय के करीब ही हुआ था।
  • अभियोजन पक्ष को अपराध कारित करने के लिये अभियुक्त की ओर से स्पष्ट दुराशय (दोषी मन) सिद्ध करना चाहिये।
  • अभियुक्त का कार्य होना चाहिये:
    • एक सक्रिय या प्रत्यक्ष कार्य जिसके कारण मृतक आत्महत्या करने को विवश हुआ।
    • मृतक को ऐसी स्थिति में धकेलने का आशय जहाँ उसे आत्महत्या के अतिरिक्त कोई विकल्प न दिखे।
  • इस धारा के अंतर्गत निम्नलिखित का प्रमाण आवश्यक है:
    • अभियुक्त का कृत्य
    • ये कृत्य एवं पीड़िता की आत्महत्या के मध्य स्पष्ट संबंध है।
  • न्यायालय को निम्नलिखित पर विचार करना होगा:
    • अभियुक्त की मनःस्थिति।
    • उनके कृत्यों की प्रकृति।
    • आत्महत्या से उनके कार्यों की निकटता।
  • बिना इसके कि कोई सजा कायम रह सके:
    • अभियुक्त की ओर से आत्महत्या के दुष्प्रेरण या सहायता करने के लिये किया गया सकारात्मक कार्य।
    • आत्महत्या के लिये प्रेरित करने वाले जानबूझकर किये गए आचरण का साक्ष्य।
  • अपराध के सभी तत्त्वों को उचित संदेह से परे स्थापित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर है।

दुष्प्रेरण क्या है?

  • धारा 45 BNS के अंतर्गत दुष्प्रेरण को तीन तरीकों से परिभाषित किया गया है:
    • किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण ।
    • किसी व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करने के षड़यंत्र में सम्मिलित होना।
    • जानबूझकर आत्महत्या करने में सहायता करना।