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आपराधिक कानून

आत्महत्या हेतु दुष्प्रेरण

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 22-Jan-2025

लक्ष्मी दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य

"भले ही अपीलकर्त्ता ने बाबू दास एवं मृतक के विवाह के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की हो, लेकिन यह आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप का आधार नहीं हो सकता है।"

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा की पीठ ने माना है कि एक "सटीक कृत्य" को सिद्ध करने की आवश्यकता है जो मृतक/पीड़िता को आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करने के आरोप में दोषसिद्धि दिला सके।

  • उच्चतम न्यायालय ने लक्ष्मी दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

लक्ष्मी दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला आत्महत्या के लिये कथित रूप से दुष्प्रेरण कारित करने से संबंधित है, जिसमें पीड़िता सौमा पाल थी, जो 3 जुलाई 2008 को गरिया रेलवे स्टेशन एवं नरेंद्रपुर रेलवे स्टेशन के बीच मृत पाई गई थी। 
  • आरोपी पक्षों में आरंभ में एक परिवार के चार सदस्य शामिल थे। 
  • मृतक महिला सौमा पाल एवं बाबू दास के बीच घटना से लगभग 3-4 वर्ष पहले से प्रेम संबंध थे।
  • मृतक का परिवार इस रिश्ते के विरुद्ध था तथा चाहता था कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। उन्होंने आरोपी परिवार से रिश्ता समाप्त करने में सहायता करने का निवेदन किया था, लेकिन आरोपी ने कथित तौर पर सहयोग करने से मना कर दिया। 
  • 6 जुलाई 2008 को, मृतक के चाचा (शिकायतकर्त्ता) ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 306 के साथ 34 के अधीन सभी चार आरोपी व्यक्तियों (अपीलकर्त्ताओं) के विरुद्ध आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करने का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज की थी।
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि मौत ट्रेन के सामने कूदने से लगी चोटों के कारण हुई थी। 
  • साक्षियों के अभिकथनों से पता चला कि:
    • घटना से कुछ दिन पहले मृतक एवं बाबू दास के बीच कहासुनी हुई थी। बाबू दास ने कथित तौर पर मृतक से विवाह करने से मना कर दिया था। 
    • लक्ष्मी दास (अपीलकर्त्ता) ने कथित तौर पर विवाह को अस्वीकार कर दिया था तथा मृतक का अपमान किया था।
    • लक्ष्मी दास (अपीलकर्त्ता) ने कथित तौर पर विवाह को अस्वीकार कर दिया था और मृतक का अपमान किया था
  • सभी आरोपियों के विरुद्ध IPC की धारा 306 एवं 109 के साथ धारा 34 के अधीन आरोप पत्र दाखिल किया गया था। 
  • आरोप पत्र दाखिल करने के बाद, आरोपियों ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 227 के अधीन आरोप मुक्त करने के लिये आवेदन किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। 
  • इसके बाद, लक्ष्मी दास, दिलीप दास एवं सुब्रत दास ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण एवं अपास्तीकरण हेतु आवेदन दाखिल किये। 
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • दिलीप दास एवं सुब्रत दास (पिता एवं भाई) के संबंध में: न्यायालय को रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य में उनके विरुद्ध कोई विशेष आरोप नहीं मिला तथा इसलिये उनके अपास्तीकरण के आवेदनों को अनुमति दे दी गई। 
    • लक्ष्मी दास (मां) के संबंध में: उच्च न्यायालय ने विशेष रूप से रेजिना खातून के अभिकथन के आधार पर उनके विरुद्ध प्रथम दृष्टया तथ्य पाया।
      • महत्त्वपूर्ण साक्ष्य यह था कि जब सौमा ने बाबू दास एवं उसकी मां से कहा कि वह बाबू दास के बिना जीवित नहीं रह सकती, तो उन्होंने कथित तौर पर उससे कहा कि "उसे जीवित रहने की आवश्यकता नहीं है तथा वह मर सकती है।" इस कथन के आधार पर, उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि लक्ष्मी दास के विरुद्ध IPC की धारा 306 के अधीन आरोप तय करने के लिये पर्याप्त आधार थे।
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर बाबू दास की मां ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील दायर की है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने दोनों अधीनस्थ न्यायालयों से स्पष्टतः भिन्न दृष्टिकोण अपनाया तथा कई महत्त्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:
    • विधिक रूपरेखा का विश्लेषण:
      • न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 एवं 107 की एक साथ जाँच की तथा पाया कि आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करने के लिये तीन आवश्यक तत्त्व होने चाहिये:
      • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दुष्प्रेरण।
      • आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण कारित करने के लिये निकटता।
      • आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण कारित करने की स्पष्ट मंशा।
    • साक्ष्य का मूल्यांकन:
      • उच्चतम न्यायालय को लक्ष्मी दास के विरुद्ध "एक कण भी साक्ष्य नहीं मिला", जबकि आरोपपत्र एवं साक्षियों के अभिकथनों सहित रिकॉर्ड पर उपलब्ध सभी साक्ष्यों पर विचार किया गया था।
    • कार्य की प्रकृति:
      • न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि लक्ष्मी दास के कृत्य "बहुत दूरगामी एवं अप्रत्यक्ष" थे, इसलिये उन्हें धारा 306 IPC के अधीन अपराध नहीं माना जा सकता। 
      • उन्होंने कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं था जिससे पता चले कि मृतक के पास आत्महत्या करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था।
    • परिवार की भूमिका का विश्लेषण:
      • न्यायालय ने पाया कि आरोपों के विपरीत, लक्ष्मी दास एवं उसके परिवार ने मृतक पर रिश्ता समाप्त करने के लिये दबाव बनाने का प्रयास नहीं किया। 
      • वास्तव में, मृतक का परिवार ही इस रिश्ते से नाखुश था।
    • कथित अभिकथनों का निर्वचन:
      • न्यायालय ने कहा कि भले ही लक्ष्मी दास ने विवाह के प्रति असहमति व्यक्त की हो, या "जीवित न होने" के विषय में टिप्पणी की हो, लेकिन ये आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप के स्तर तक नहीं पहुँचे। 
      • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि ऐसा "सटीक कृत्य" का साक्ष्य प्रस्तुत होना चाहिये जो मृतक को IPC की धारा 306 के अधीन आरोप सिद्ध करने में सहायता करे।
  • उच्चतम न्यायालय के विश्लेषण से पता चलता है कि आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करने की क्या-क्या शर्तें हैं, तथा इसमें अस्वीकृति या आकस्मिक टिप्पणियों एवं वास्तविक दुष्प्रेरण के बीच अंतर किया गया है, जो ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है कि आत्महत्या के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता।
    • यह निर्वचन अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा लागू किये गए निर्वचन की तुलना में IPC की धारा 306 का अधिक सूक्ष्म विश्लेषण का प्रतिनिधित्व करती है।

आत्महत्या का दुष्प्रेरण क्या है?

  • IPC की धारा 107 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 45 में दुष्प्रेरण को साशय किया गया ऐसा कृत्य माना गया है जिसमें आत्महत्या हेतु दुष्प्रेरण के लिये विशिष्ट कृत्य प्रावधानित हैं।
  • तीन आवश्यक तत्त्व दुष्प्रेरण को स्थापित करते हैं:
    • किसी व्यक्ति को कार्य करने के लिये प्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रेरण
    • कार्य को पूरा करने के लिये दूसरों के साथ षड्यंत्र में शामिल होना।
    • कार्यवाही या अवैध चूक के माध्यम से साशय सहायता करना।
  • अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करने का उत्तरदायित्व है कि आरोपी ने मृतक को आत्महत्या करने के लिये सीधे तौर पर दुष्प्रेरित किया या उसकी सहायता की।
  • IPC की धारा 306 (BNS की धारा 108) के अधीन विधिक परिणामों में 10 वर्ष तक का कारावास एवं अर्थदण्ड शामिल हैं।
  • NCRB के सांख्यिकीय साक्ष्यों से पता चलता है कि 2022 में आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करने के मामलों में सजा की दर 17.5% है, जो कि बहुत कम है।
  • साक्ष्य का भार के लिये अभियुक्त के कृत्यों एवं पीड़िता के निर्णय के बीच स्पष्ट कारण-कार्य संबंध स्थापित करना आवश्यक है। 
  • कार्यस्थल से संबंधित मामलों में, न्यायालय रिश्तों की पेशेवर प्रकृति के कारण उच्च साक्ष्य मानक को अनिवार्य करते हैं। 
  • आत्महत्या कारित करने के विशिष्ट आशय के बिना केवल उत्पीड़न या पेशेवर दबाव को दुष्प्रेरण नहीं माना जाता है।
  • न्यायालयों को परिस्थितिजन्य संबंधों के बजाय "प्रत्यक्ष एवं भयावह प्रोत्साहन" के ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है। 
  • विधि सामान्य कदाचार एवं किसी को आत्महत्या कारित करने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से की गई विशिष्ट कृत्यों के बीच अंतर स्थापित करता है। 
  • विवेचना में आत्महत्या में आरोपी की प्रत्यक्ष भूमिका को दर्शाने वाली घटनाओं की एक स्पष्ट श्रृंखला सिद्ध होनी चाहिये।