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आधार कार्ड

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 25-Oct-2024

सरोज एवं अन्य बनाम इफको-टोक्यो जनरल इंश्योरेंस कंपनी एवं अन्य

“उच्चतम न्यायालय: आधार कार्ड जन्मतिथि के प्रमाण के रूप में स्वीकार्य नहीं है।”

न्यायमूर्ति संजय करोल एवं उज्ज्वल भुइयाँ

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति मामले में पीड़ित की उम्र निर्धारित करने के लिये आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि का उपयोग करने के विरुद्ध निर्णय दिया है। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने अवधारित किया कि उम्र का सत्यापन स्कूल लीव सर्टिफिकेट से जन्म तिथि का उपयोग करके किया जाना चाहिये, जिसे किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत सांविधिक मान्यता प्राप्त है।

  • इस निर्णय ने उच्च न्यायालय के उस निर्णय के विपरीत निर्णय दिया, जिसमें आधार कार्ड में उल्लिखित सूचना के आधार पर क्षतिपूर्ति की राशि कम कर दी गई थी।

सरोज एवं अन्य बनाम इफको-टोक्यो जनरल इंश्योरेंस कंपनी एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला 4 अगस्त 2015 को हुई एक घातक मोटर दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें सिलक राम एक मोटरसाइकिल (पंजीकरण संख्या HR-12X-2820) पर रोहित नाम के व्यक्ति के साथ यात्रा कर रहा था। 
  • सिलक राम एवं रोहित दोनों सड़क के किनारे घायल अवस्था में पड़े मिले।
    • सिलक राम की मौत हो गई, जबकि रोहित को इलाज के लिये मेडिकल कॉलेज, रोहतक ले जाया गया।
  • कृष्ण नामक व्यक्ति ने घायल व्यक्तियों को खोज निकाला तथा मामले की सूचना पुलिस को दी। 
  • विवेचना के दौरान, घायल रोहित के अभिकथन से कारित अपराध में प्रयुक्त वाहनों के विषय में विस्तृत सूचना मिली। 
  • 4 अगस्त 2015 को पुलिस स्टेशन, सांपला में धारा 279/337, 304 A के अंतर्गत एक FIR (संख्या 481/2015) दर्ज की गई थी।
  • मृतक की पत्नी एवं बेटों (दावेदार-अपीलकर्त्ता) ने 16 दिसंबर 2015 को मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण  (MACT), रोहतक के समक्ष दावा याचिका (संख्या 25/2015) दायर की। 
  • मृतक की आयु को लेकर विवाद था:
    • उनके आधार कार्ड के अनुसार उनकी जन्मतिथि 1 जनवरी 1969 थी। 
    • उनके स्कूल लीव सर्टिफिकेट के अनुसार उनकी जन्मतिथि 7 अक्टूबर 1970 थी। 
    • साक्ष्यों से पता चला कि मृतक एक कृषक था, जिसके पास अपना ट्रैक्टर एवं एक JCB  मशीन थी।
  • यह मामला मुख्य रूप से मृतक के परिवार के लिये उचित क्षतिपूर्ति निर्धारित करने के आस पास  केंद्रित था, जिसमें आयु का निर्धारण एक महत्त्वपूर्ण कारक था, क्योंकि यह क्षतिपूर्ति की गणना में उपयोग किये जाने वाले गुणक को प्रभावित करता था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपील पर सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के स्थान पर अपना निर्णय नहीं देना चाहिये, जब तक कि निर्णय विकृत, अवैध या अन्य गंभीर दोषों से ग्रस्त न हो, जो उसे सुधारने से परे हों। 
  • न्यायालय ने कहा कि आधार कार्ड पहचान स्थापित कर सकता है, लेकिन यह जन्म तिथि के निर्णायक प्रमाण के रूप में कार्य नहीं कर सकता है, UIDAI के परिपत्र संख्या 08, 2023 का उल्लेख करते हुए, जिसमें स्पष्ट रूप से इस परिसीमा का उल्लेख किया गया है।
  • न्यायालय ने  किशोर न्याय (बालकों का देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015  की धारा 94(2) के अंतर्गत इसकी सांविधिक मान्यता का उदाहरण देते हुए आयु निर्धारण के लिये स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र को प्राथमिकता दी। 
  • न्यायालय ने काल्पनिक आय के संबंध में MACT के निर्धारण में उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं पाया, विशेषकर तब जब साक्ष्यों से यह स्थापित हो गया कि मृतक एक कृषक था और उसके पास ट्रैक्टर एवं JCB मशीन थी। 
  • ब्याज दरों के मामले में न्यायालय ने पाया कि चोट या मृत्यु से उत्पन्न MACT मामलों में क्षतिपूर्ति  न्यायसंगत एवं उचित होना चाहिये, जिसके कारण ब्याज दर 6% से बढ़ाकर 8% कर दी गई।
  • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा क्षतिपूर्ति में की गई कटौती न्यायोचित नहीं थी, क्योंकि इस बात के कोई साक्ष्य नहीं थे कि रोहतक के जिला आयुक्त द्वारा अधिसूचित दरें मृतक पर लागू नहीं होंगी। 
  • न्यायालय ने क्षतिपूर्ति की पुनर्गणना के लिये नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी में निर्धारित सिद्धांतों को लागू किया, जिसमें स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र के अनुसार मृतक की 45 वर्ष की आयु के आधार पर 14 का गुणक बनाए रखा गया।

आधार कार्ड क्या है?

  • आधार कार्ड भारत में लागू एक विशिष्ट पहचान प्रणाली है, जिसका उद्देश्य प्रत्येक निवासी को उसके बायोमेट्रिक एवं जनसांख्यिकीय डेटा से जुड़ी एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करना है। 
  • आधार परियोजना की शुरुआत 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा की गई थी, जिसका लक्ष्य भारत के निवासियों के लिये एक सार्वभौमिक पहचान डेटाबेस बनाना था।
  • आधार के पीछे मुख्य उद्देश्य कल्याणकारी सेवाओं एवं सब्सिडी की डिलीवरी को सुव्यवस्थित करना, धोखाधड़ी को कम करना तथा सरकारी कार्यक्रमों में पारदर्शिता बढ़ाना था। 
  • आधार संख्या एक 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या है जो किसी व्यक्ति के बायोमेट्रिक डेटा से जुड़ी होती है, जिसमें फिंगरप्रिंट एवं आईरिस स्कैन के साथ-साथ नाम, पता और जन्म तिथि जैसी जनसांख्यिकीय सूचना शामिल होती है।

इसमें क्या विधिक प्रावधान शामिल हैं?

  • आधार अधिनियम, 2016: आधार परियोजना को विधिक आधार प्रदान करने के लिये आधार अधिनियम बनाया गया था। यह नामांकन, बायोमेट्रिक डेटा के संग्रह एवं भंडारण तथा डेटा के संबंध में व्यक्तियों के अधिकारों की प्रक्रियाओं को रेखांकित करता है। अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि आधार संख्या का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है, जिसमें सब्सिडी, लाभ एवं सेवाओं का वितरण शामिल है।
    • आधार परियोजना को विधिक समर्थन प्रदान करता है।
    • UIDAI को एक सांविधिक प्राधिकरण के रूप में स्थापित करता है।
    • आधार संख्या जारी करने के लिये आवश्यक रूपरेखा को परिभाषित करता है।
    • डेटा सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करता है।
  • उच्चतम न्यायालय का निर्णय (2018): एक ऐतिहासिक निर्णय में, भारत के   उच्चतम न्यायालय ने आधार अधिनियम की सांविधानिक वैधता को यथावत रखा, लेकिन इसके उपयोग पर कुछ प्रतिबंध लगाए। न्यायालय ने व्यक्तिगत गोपनीयता एवं डेटा सुरक्षा के महत्त्व पर बल देते हुए निर्णय दिया कि स्कूल में प्रवेश, बैंक खाते एवं मोबाइल कनेक्शन जैसी सेवाओं के लिये आधार को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता।
    • उच्चतम न्यायालय ने सितंबर 2018 में आधार की सांविधानिक वैधता को यथावत रखा।
    • आधार अधिनियम की धारा 57 (निजी क्षेत्र का उपयोग) को रद्द कर दिया।
    • आधार को केवल निम्नलिखित के लिये अनिवार्य घोषित किया:
      • आयकर रिटर्न दाखिल करना
      • पैन कार्ड लिंकेज
      • सरकारी सब्सिडी एवं लाभ

आधार कार्ड के संबंध में अधिकार और उत्तरदायित्व क्या हैं?

  • व्यक्तिगत अधिकार:
    • स्वैच्छिक नामांकन
    • सूचना अपडेट करने का अधिकार
    • शिकायत दर्ज करने का अधिकार
    • प्रमाणीकरण इतिहास तक जनमानस 
    • पहुँच
  • UIDAI का उत्तरदायित्व:
    • सूचना सुरक्षा सुनिश्चित करना 
    • प्रमाणीकरण रिकॉर्ड बनाए रखना 
    • शिकायतों का जवाब देना 
    • नियमित सुरक्षा ऑडिट करना 

क्या दण्ड का प्रावधान है?

  • आपराधिक दण्ड:
    • केंद्रीय पहचान डेटा रिपॉजिटरी तक अनाधिकृत पहुँच
    • डेटा से छेड़छाड़
    • आधार का उपयोग करके पहचान की चोरी
    • सिविल दण्ड:
    • विनियमों का गैर-अनुपालन
    • अनाधिकृत डेटा का साझाकरण
    • प्रमाणीकरण विफलताओं की रिपोर्टिंग

कार्यान्वयन हेतु आवश्यक रूपरेखा क्या है?

  • UIDAI का संघटन:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं IT मंत्रालय के अंतर्गत सांविधिक प्राधिकरण
    • नई दिल्ली में मुख्यालय
    • संपूर्ण भारत में क्षेत्रीय कार्यालय
    • अधिकृत एजेंसियों के माध्यम से नामांकन
  • सेवा का परिदान:
    • प्रमाणीकरण सेवाएँ
      • हाँ/नहीं का प्रमाणीकरण
      • e-KYC सेवाएँ
      • ऑफ़लाइन सत्यापन
    • सेवाओं का अपडेशन 
      • जनसांख्यिकीय का ऑनलाइन अपडेट
      • बायोमेट्रिक अपडेट सुविधाएँ
      • मोबाइल नंबर अपडेट

 किशोर न्याय (बालकों का देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015  की धारा 94

    • प्रथम दृष्टया आयु का आकलन:
      • समिति/बोर्ड को शारीरिक बनावट के आधार पर प्रारंभिक आयु निर्धारण करने का अधिकार है। 
      • ऐसे निर्धारण बिना किसी अतिरिक्त पुष्टि के किये जा सकते हैं, जब व्यक्ति स्पष्ट रूप से बालक हो। 
      • समिति को अपने अवलोकन एवं अनुमानित आयु के आकलन को रिकॉर्ड करना चाहिये। 
      • इस आकलन के आधार पर धारा 14 या 36 के अंतर्गत कार्यवाही त्वरित प्रारंभ हो सकती है।
  • आयु सत्यापन के लिये श्रेणीवार साक्ष्य प्रणाली:
    जब संदेह हो तो साक्ष्य निम्नलिखित अनिवार्य क्रम में मांगा जाना चाहिये:
    • प्राथमिक दस्तावेज़ीकरण
      • स्कूल जन्मतिथि प्रमाण पत्र
      • परीक्षा बोर्ड से मैट्रिकुलेशन/समकक्ष प्रमाण पत्र
    • द्वितीयक दस्तावेज़ीकरण
      • निगम से जारी जन्म प्रमाण पत्र
      • नगरपालिका प्राधिकरण से जारी जन्म प्रमाण पत्र
      • पंचायत से जारी जन्म प्रमाण पत्र
    • चिकित्सा सत्यापन (केवल यदि उपरोक्त दस्तावेज उपलब्ध न हों)
      • ऑसिफिकेशन टेस्ट
      • नवीनतम चिकित्सा आयु निर्धारण परीक्षण
      • ऑर्डर करने के 15 दिनों के अंदर पूरा किया जाना चाहिये
  • विधिक अनुमान:
    • समिति/बोर्ड द्वारा दर्ज की गई आयु को वास्तविक आयु माना जाता है। 
    • यह अधिनियम के प्रयोजनों के लिये निर्णायक अनुमान बनाता है। 
    • एक बार दर्ज की गई आयु निर्धारण को चुनौती देने का कोई प्रावधान नहीं है।