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सांविधानिक विधि
सभी भारतीयों के लिये एकल अधिवास
« »30-Jan-2025
तरूण धमेजा बनाम सुनील धमेजा एवं अन्य “पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण असंवैधानिक है, यह अनुच्छेद 14 का अतिलंघन करता है।” न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, सुधांशु धुलिया एवं एस.वी.एन. भट्टी |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों??
हाल ही में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने माना है कि पीजी मेडिकल सीटों में अधिवास-आधारित आरक्षण असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का अतिलंघन करता है।
- उच्चतम न्यायालय ने तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल एवं अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
- पीठ ने पिछले निर्णयों की पुष्टि करते हुए कहा कि राज्य कोटे की सीटें केवल NEET की मेरिट के आधार पर भरी जानी चाहिये।
- इस निर्णय का प्रभाव अधिवास-आधारित आरक्षण के अंतर्गत पहले से ही प्रवेश प्राप्त छात्रों पर नहीं पड़ेगा।
तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ से आया, जिसमें इसका एकमात्र चिकित्सा संस्थान - गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, चंडीगढ़ शामिल था।
- मेडिकल कॉलेज में राज्य कोटे के अंतर्गत कुल 64 पीजी मेडिकल सीटें थीं।
- इन 64 सीटों को बराबर-बराबर बांटा गया - संस्थागत वरीयता के लिये 32 सीटें और UT चंडीगढ़ के अधिवासियों के लिये 32 सीटें।
- UT चंडीगढ़ पूल के लिये, उम्मीदवारों को तीन मानदंडों में से एक को पूरा करना होगा: चंडीगढ़ में 5 वर्ष का अध्ययन, माता-पिता का 5 वर्ष का अधिवास, या परिवार का 5 वर्ष का संपत्ति स्वामित्व।
- इन पीजी मेडिकल सीटों के लिये प्रवेश प्रक्रिया 28 मार्च, 2019 को प्रारंभ हुई।
- प्रॉस्पेक्टस में अधिवास/अधिवास मानदंड के आधार पर सीटें आरक्षित करने के लिये विशिष्ट प्रावधान थे।
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाओं ने इन अधिवास-आधारित आरक्षण प्रावधानों को चुनौती दी।
- उच्च न्यायालय ने अधिवास-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया।
- उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की गई।
- संवैधानिक वैधता के निर्धारण के लिये मामले को उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ को भेज दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि भारत केवल एक अधिवास को मान्यता देता है - भारत का अधिवास, तथा राज्यवार अधिवास की अवधारणा को खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने 'अधिवास' और 'निवास' के मध्य अंतर स्थापित किया, तथा यह देखा कि राज्य अक्सर इन शब्दों का दोषपूर्ण तरीके से परस्पर उपयोग करते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि यद्यपि अनुच्छेद 15 स्पष्ट रूप से अधिवास-आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित नहीं करता है, फिर भी ऐसे आरक्षणों को अनुच्छेद 14 के अंतर्गत उचित वर्गीकरण के मानक पर उत्तीर्ण होना चाहिये।
- न्यायालय ने माना कि राज्य के निवेश एवं स्थानीय आवश्यकताओं के कारण MBBS पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण कुछ सीमा तक स्वीकार्य हो सकता है।
- पीजी पाठ्यक्रमों के लिये, न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि चयन के लिये योग्यता प्राथमिक मानदंड होनी चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय हित चिकित्सा शिक्षा के उच्च स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा के चयन की मांग करता है।
- न्यायालय ने पुष्टि की कि संस्थागत वरीयता आरक्षण एक उचित सीमा तक संवैधानिक रूप से वैध है।
- न्यायालय ने घोषणा की कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14 का अतिलंघन करता है।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि इस तरह के आरक्षण राज्यों के बीच कृत्रिम अवरोध उत्पन्न करते हैं, जो राष्ट्रीय एकता के प्रतिकूल है।
- न्यायालय ने कहा कि राज्य कोटे की सीटें नीट परीक्षा में योग्यता के आधार पर ही भरी जानी चाहिये।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसके निर्णय का उन छात्रों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जिन्होंने पहले ही आवासीय श्रेणी के अंतर्गत प्रवेश ले लिया है या अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है।
संवैधानिक उपबंध क्या हैं?
- अनुच्छेद 14 - समता का अधिकार
- राज्य विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से मना नहीं करेगा।
- अधिवास-आधारित आरक्षण को खत्म करने का प्राथमिक आधार बनता है।
- अन्य सभी समता का उपबंध (अनुच्छेद 15-18) अनुच्छेद 14 का विस्तार हैं।
- अनुच्छेद 15 - भेदभाव का निषेध
- धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- अधिवास को निषिद्ध आधार के रूप में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं करता है।
- पिछड़े वर्गों और EWS के लिये आरक्षण के लिये सक्षम उपबंध (खण्ड 4,5,6) शामिल हैं।
- अनुच्छेद 15(3) महिलाओं एवं बालकों के लिये विशेष उपबंध की अनुमति देता है
- अनुच्छेद 16 - सार्वजनिक रोजगार में समानता
- सार्वजनिक रोजगार में अधिवास के आधार पर भेदभाव को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है।
- केवल संसद ही राज्य रोजगार के लिये अधिवास की आवश्यकता वाले विधान बना सकती है (अनुच्छेद 16(3))।
- अधिवास-आधारित भेदभाव के विरुद्ध संवैधानिक मंशा को दर्शाता है।
- अनुच्छेद 5 - नागरिकता का उपबंध
- केवल "भारत के क्षेत्र में अधिवास" को संदर्भित करता है।
- एकल भारतीय अधिवास की अवधारणा स्थापित करता है।
- राज्यवार अधिवास के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
- संवैधानिक संरचना
- भारत में एकल नागरिकता है।
- एकल एकीकृत विधिक प्रणाली।
- एकल न्यायिक पदानुक्रम के शीर्ष पर उच्चतम न्यायालय।
- राज्य का विधान एकीकृत भारतीय विधिक प्रणाली के अंतर्गत संचालित होते हैं।
- मौलिक अधिकार
- पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार।
- भारत के किसी भी भाग में अधिवास करने एवं बसने का अधिकार।
- भारत में कहीं भी व्यवसाय करने का अधिकार।
- भारत के पूरे क्षेत्र में समान सुरक्षा का अधिकार।
- शक्तियों का वितरण
- राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के विषयों पर राज्य विधि का निर्माण कर सकते हैं।
- लेकिन संविधियों को मौलिक अधिकारों की सीमा में ही कार्य करना चाहिये।
- अधिवास के आधार पर अवरोध उत्पन्न नहीं किये जा सकते।
संविधान में अधिवास के आधार पर आरक्षण पर रोक क्यों है?
- संवैधानिक एकता:
- भारत संविधान के अंतर्गत एकल नागरिकता की अवधारणा का पालन करता है।
- केवल एक अधिवास को मान्यता दी गई है - "भारत के क्षेत्र में अधिवास"।
- यह राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है तथा राज्य आधारित विभाजन को रोकता है।
- मौलिक अधिकार ढाँचा:
- नागरिकों को पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार है।
- उन्हें देश के किसी भी भाग में अधिवास करने एवं बसने का अधिकार है।
- भारत के किसी भी हिस्से में व्यवसाय करने के अधिकार की गारंटी है।
- इन अधिकारों को अधिवास या निवास के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
- योग्यता एवं राष्ट्रीय हित:
- प्रतिभा किसी विशेष राज्य के अधिवासियों का एकाधिकार नहीं है।
- राष्ट्रीय विकास के लिये सर्वोत्तम उपलब्ध प्रतिभाओं का चयन आवश्यक है।
- अधिवास-आधारित प्रतिबंध योग्यता के लिये कृत्रिम अवरोध उत्पन्न करते हैं।
- ऐसे प्रतिबंध राष्ट्रीय प्रगति को हानि पहुँचा सकते हैं, विशेषकर विशिष्ट क्षेत्रों में।
- समान संरक्षण:
- अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को विधियों के समान संरक्षण की गारंटी देता है।
- अधिवास के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव अनुचित वर्गीकरण बनाता है।
- इस तरह का भेदभाव भारत के एक राष्ट्र के रूप में संवैधानिक दृष्टिकोण को कमजोर करता है।
- यह विधि के समक्ष समता के सिद्धांत का अतिलंघन करता है।
संदर्भित ऐतिहासिक मामले कौन से हैं?
- जगदीश सरन बनाम भारत संघ (1980):
- न्यायालय ने माना कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में संस्थागत-आधारित आरक्षण संवैधानिक रूप से वैध है तथा उचित सीमा तक स्वीकार्य है क्योंकि यह उद्देश्य के साथ संबंध रखते हुए एक उचित वर्गीकरण बनाता है।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि शिक्षा के उच्च स्तर (पीएचडी, एमडी) पर, जहाँ प्रतिभा के अंतरराष्ट्रीय मापदंड लागू होते हैं, एक महान वैज्ञानिक या प्रौद्योगिकीविद् को खोना राष्ट्रीय क्षति है।
- न्यायालय ने कहा कि परिष्कृत कौशल एवं रणनीतिक रोजगार के उच्च स्तरों पर योग्यता प्राथमिक मानदंड होनी चाहिये, क्योंकि मानकों में ढील देने से राष्ट्रीय जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि शिक्षा के निचले स्तरों पर आरक्षण स्वीकार्य हो सकता है, लेकिन पीजी पाठ्यक्रमों जैसी उच्च विशेषज्ञताओं में, क्षमता के आधार पर सर्वोत्तम कौशल एवं प्रतिभा का चयन किया जाना चाहिये।
- प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984):
- न्यायालय ने पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण को सीधे संबोधित किया तथा इसे अस्वीकार्य तथा अनुच्छेद 14 का अतिलंघन करने वाला घोषित किया।
- न्यायालय ने स्थापित किया कि भारत केवल एक अधिवास को मान्यता देता है - "भारत के क्षेत्र में अधिवास" - तथा राज्यवार अधिवास की अवधारणा को खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने माना कि प्रतिभा किसी विशेष राज्य के अधिवासियों का एकाधिकार नहीं है तथा समान अवसर को इस तथ्य पर निर्भर नहीं बनाया जा सकता कि कोई नागरिक कहाँ रहता है।
- न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थानों, विशेषकर मेडिकल कॉलेजों में अधिवास संबंधी आवश्यकताओं के उपयोग के विरुद्ध चेतावनी दी, क्योंकि इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा हो सकता है।
- न्यायालय ने यूजी एवं पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों के बीच अंतर किया, MBBS पाठ्यक्रमों में कुछ अधिवास-आधारित आरक्षण की अनुमति दी, जबकि पीजी पाठ्यक्रमों में इस पर रोक लगाई।
- सौरभ चौधरी बनाम भारत संघ (2003):
- संविधान पीठ ने प्रदीप जैन मामले में निर्धारित सिद्धांतों की पुष्टि की तथा कहा कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिवास-आधारित आरक्षण संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है।
- न्यायालय ने संस्थागत वरीयता को उचित सीमा तक यथावत बनाए रखा, जबकि यह भी कहा कि अधिवास उच्च चिकित्सा शिक्षा में आरक्षण का आधार नहीं हो सकता।
- न्यायालय ने राष्ट्रीय विकास के लिये विशेष चिकित्सा शिक्षा में योग्यता-आधारित चयन के महत्त्व पर बल दिया।
- न्यायालय ने मगन मेहरोत्रा मामले में दिये गए तर्क का अनुसरण किया, जिसमें प्रदीप जैन के तर्क को आधार बनाया गया था, तथा स्थापित किया कि संस्थागत वरीयता के अतिरिक्त, संविधान में अधिवास-आधारित आरक्षण सहित किसी अन्य वरीयता की परिकल्पना नहीं की गई है।