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सिविल कानून
न्यायालय अवमान अधिनियम के अंतर्गत अपील
« »06-Aug-2024
अजय कुमार भल्ला एवं अन्य बनाम प्रकाश कुमार दीक्षित "अवमानना कार्यवाही में पीड़ित व्यक्ति के पास उपाय नहीं होता। इस तरह के आदेश को अंतर-न्यायालय अपील में चुनौती दी जा सकती है या भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत अपील करने के लिये विशेष अनुमति मांगी जा सकती है।" भारत के मुख्य न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अजय कुमार भल्ला एवं अन्य बनाम प्रकाश कुमार दीक्षित के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि दण्ड आदेश न होने की स्थिति में भी खण्डपीठ के विरुद्ध अपील स्वीकार्य है।
अजय कुमार भल्ला एवं अन्य बनाम प्रकाश कुमार दीक्षित मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- प्रतिवादी केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल में ऑफिसर कमांडिंग के पद पर तैनात था, जब उसके विरुद्ध कथित कदाचार के कारण अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारंभ हुई।
- उसे ट्रायल कोर्ट ने सेवा से हटा दिया था, जिसके विरुद्ध उसने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की थी।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलट दिया तथा प्रतिवादी को अन्य लाभों के साथ सेवा में पुनः नियुक्त किया।
- उच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया, जिसके कारण प्रतिवादी ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अवमानना कार्यवाही दायर की।
- 8 मार्च, 2021 को प्रतिवादी को सेवा में पुनः नियुक्त किया गया तथा 17 अक्तूबर 2021 को उन्हें 22 मार्च, 2023 के आदेश से काल्पनिक आधार पर डिप्टी कमांडेंट के पद पर पदोन्नत किया गया।
- प्रतिवादी 31 मार्च, 2023 को सेवानिवृत्त हो गया।
- उच्च न्यायालय के एकल पीठ के न्यायाधीश ने प्रतिवादी को 2021 से उसकी सेवानिवृत्ति तिथि 31 मार्च, 2023 तक महानिरीक्षक के पद तक सभी पदोन्नतियाँ देने का आदेश दिया।
- न्यायाधीश ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित निर्देशों की जानबूझकर अवज्ञा की गई है।
- इस आदेश के विरुद्ध वादी ने लैटर्स पेटेंट अपील दायर की, जिसे खण्ड पीठ ने खारिज कर दिया।
- पीठ ने कहा कि अपील स्वीकार्य नहीं है क्योंकि वादी के विरुद्ध कोई दण्डात्मक आदेश नहीं दिया गया है।
- पीठ ने कहा कि अपील स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यह न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 (CC) की धारा 19 की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करती है।
- वादी ने खण्ड पीठ निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने CC अधिनियम की धारा 19 की परिधि का अवलोकन किया।
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि खंडपीठ के निष्कर्षों को निर्धारित करने की आवश्यकता है।
- उच्चतम न्यायालय ने मिदनापुर पीपुल्स को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड एवं अन्य बनाम चुन्नीलाल नंदा एवं अन्य (2006) के निर्णय पर विश्वास किया, जहाँ यह माना गया था कि धारा 19 के अधीन अपील केवल अवमान के लिये दण्ड देने वाले आदेश के विरुद्ध है।
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी महानिरीक्षक के पद पर पदोन्नति का अधिकारी था तथा मिदनापुर पीपुल्स मामले से निष्कर्ष निकालते हुए अपील के लिये उत्तरदायी था।
- यह अनुमान लगाया गया कि अवमानना कार्यवाही में पीड़ित व्यक्ति के पास उपाय उपलब्ध है।
- इस तरह के आदेश को अंतर-न्यायालय अपील में चुनौती दी जा सकती है या विधि द्वारा दी गई अनुमति के आधार पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत अपील करने के लिये विशेष अनुमति मांगी जा सकती है।
- उच्चतम न्यायालय ने खण्ड पीठ के आदेश को पलट दिया तथा कहा कि लैटर पेटेंट अपील पर विचारण किया जाए।
- उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि जब तक मामला दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष पुनः सूचीबद्ध नहीं हो जाता, तब तक अधिकारियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
न्यायालय अवमान अधिनियम 1971 क्या है?
- C C अधिनियम वर्ष 1971 में संसद द्वारा पारित किया गया था तथा 24 दिसंबर, 1974 को लागू हुआ।
- C C अधिनियम का मुख्य उद्देश्य न्यायालयों की अखंडता की रक्षा करना है।
- यह C C अधिनियम न्यायालय को अपनी अवमानना के विरुद्ध दण्ड देने की अंतर्निहित शक्तियाँ प्रदान करता है।
- न्यायालय अवमान न्यायिक संस्थाओं को उत्प्रेरित हमलों एवं अनुचित आलोचना से बचाने का प्रयास करती है तथा इसके अधिकार को कम करने वालों को दण्डित करने के लिये एक विधिक तंत्र के रूप में कार्य करती है।
- जब संविधान को अपनाया गया था, तो न्यायालय अवमान को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अंतर्गत भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों में से एक बनाया गया था।
- इसके अतिरिक्त, संविधान के अनुच्छेद 129 ने उच्चतम न्यायालय को स्वयं की अवमानना के लिये दण्डित करने की शक्ति प्रदान की।
- अनुच्छेद 215 ने उच्च न्यायालयों को इसी प्रकार की शक्ति प्रदान की।
न्यायालय अवमान के प्रकार
- सिविल अवमानना: यह न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट या अन्य प्रक्रिया की जानबूझकर अवज्ञा या न्यायालय को दिये गए वचन का जानबूझकर उल्लंघन है।
- आपराधिक अवमानना: यह किसी भी मामले का प्रकाशन या किसी अन्य कार्य को करना है जो किसी भी न्यायालय के अधिकार को बदनाम या कम करता है या किसी भी न्यायिक कार्यवाही के नियत क्रम में हस्तक्षेप करता है या किसी अन्य तरीके से न्याय प्रशासन को बाधित करता है।
न्यायालय अवमान अधिनियम के अंतर्गत सज़ा
- C C अधिनियम की धारा 12 में कहा गया है कि दोषी को छह महीने तक का कारावास या 2,000 रुपए का अर्थदण्ड या दोनों हो सकते हैं।
- वर्ष 2006 में इसमें बचाव के तौर पर “सत्य एवं सद्भावना” को शामिल करने के लिये संशोधन किया गया था।
- इसमें यह भी जोड़ा गया कि न्यायालय केवल तभी दण्ड लगा सकती है जब दूसरे व्यक्ति का कार्य न्याय के उचित तरीके में काफी हद तक हस्तक्षेप करता हो या हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति रखता हो।
न्यायालय अवमान अधिनियम के अधीन बचाव
- सिविल अवमानना
- CC अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत निम्नलिखित बचाव शामिल किये जा सकते हैं।
- आदेश का कोई ज्ञान नहीं।
- अवज्ञा या उल्लंघन जानबूझकर नहीं किया गया था।
- जिस आदेश की अवहेलना की गई है वह अस्पष्ट या संदिग्ध है।
- आदेश में उचित व्याख्या से अधिक शामिल है।
- आदेश का अनुपालन असंभव है।
- आदेश अधिकार क्षेत्र के बिना पारित किया गया है।
- CC अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत निम्नलिखित बचाव शामिल किये जा सकते हैं।
- आपराधिक अवमानना
- सामग्री का निर्दोष प्रकाशन एवं वितरण (C C अधिनियम की धारा 3)
- न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष एवं सटीक रिपोर्ट (C C अधिनियम की धारा 4)
- न्यायिक कार्य की निष्पक्ष आलोचना (C C अधिनियम की धारा 5)
- अधीनस्थ न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के विरुद्ध सद्भावनापूर्ण शिकायत (C C अधिनियम की धारा 6)
- न्याय के उचित क्रम में कोई महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप नहीं ( C C अधिनियम की धारा 13)
- सत्य द्वारा औचित्य ( C C अधिनियम की धारा 13)।
- जिस कथन की शिकायत की गई है, उसकी अलग-अलग व्याख्याएँ की जा सकती हैं।
न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 के अधीन अपील
- अपील से संबंधित प्रावधान C C अधिनियम की धारा 19 के अधीन दिये गए हैं
- खंड (1) में कहा गया है कि अवमानना के लिये दण्डित करने के अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए उच्च न्यायालय के किसी आदेश या निर्णय के विरुद्ध अपीलीय अधिकार के रूप में होगी-
- जहाँ आदेश या निर्णय एकल न्यायाधीश का है, वहाँ न्यायालय के कम-से-कम दो न्यायाधीशों की पीठ को।
- जहाँ आदेश या निर्णय पीठ का है, वहाँ उच्चतम न्यायालय को परंतु जहाँ आदेश या निर्णय किसी संघ राज्यक्षेत्र में न्यायिक आयुक्त के न्यायालय का है, वहाँ ऐसी अपील उच्चतम न्यायालय में होगी।
- खंड (2) में कहा गया है कि किसी अपील के लंबित रहने तक अपीलीय न्यायालय आदेश दे सकता है कि-
- जिस सज़ा या आदेश के विरुद्ध अपील की गई है, उसका निष्पादन निलंबित किया जाए।
- यदि अपीलकर्त्ता कारावास में है, तो उसे ज़मानत पर रिहा किया जाए।
- अपील पर विचारण की जाए, भले ही अपीलकर्त्ता ने अपनी अवमानना का परित्याग नहीं किया हो।
- खंड (3) में कहा गया है कि जहाँ कोई व्यक्ति किसी आदेश से व्यथित है, जिसके विरुद्ध अपील दायर की जा सकती है, वह उच्च न्यायालय को यह संतुष्टि देता है कि वह अपील करने का आशय रखता है, तो उच्च न्यायालय उप-धारा (2) द्वारा प्रदत्त सभी या किसी भी शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
- खंड (4) में कहा गया है कि उपधारा (1) के अंतर्गत अपील दायर की जाएगी-
- उच्च न्यायालय की पीठ में अपील के मामले में तीस दिन के अंदर।
- उच्चतम न्यायालय में अपील के मामले में उस आदेश की तिथि से साठ दिन के अंदर जिसके विरुद्ध अपील की गई है।
- खंड (1) में कहा गया है कि अवमानना के लिये दण्डित करने के अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए उच्च न्यायालय के किसी आदेश या निर्णय के विरुद्ध अपीलीय अधिकार के रूप में होगी-