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सांविधानिक विधि

उच्चतम न्यायालय में उपस्थिति

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 20-Mar-2025

उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

"किसी पक्ष के लिये उपस्थित होने और न्यायालय में प्रैक्टिस करने का अधिवक्ता का अधिकार, सुनवाई के समय न्यायालय में उपस्थित रहने, तथा पूरी लगन, निष्ठा, ईमानदारी एवं अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ कार्यवाही में भाग लेने और उसका संचालन करने के कर्त्तव्य के साथ संबंधित है।"

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी एवं सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने कहा है कि न्यायालय में उपस्थित होने का अधिवक्ता का अधिकार, सुनवाई के समय न्यायालय में उपस्थित रहने के कर्त्तव्य से संबंधित है।

  • उच्चतम न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया है।

उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला आपराधिक अपील में दायर विविध आवेदनों से संबंधित है।
  • विविध आवेदन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) एवं उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा संयुक्त रूप से दायर किये गए थे।
  • इन आवेदनों में निपटान किये गए आपराधिक मामले में हस्तक्षेप की मांग की गई थी तथा 20 सितंबर 2024 के एक निर्णय के निर्देशों के स्पष्टीकरण/संशोधन का अनुरोध किया गया था।
  • आवेदकों की प्राथमिक चिंताएँ न्यायालयी कार्यवाही में अधिवक्ताओं की उपस्थिति की रिकॉर्डिंग से संबंधित थीं।
  • SCBA एवं SCAORA ने चिंता व्यक्त की कि मूल निर्णय में दिये गए निर्देश उनके सदस्यों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे, जिनमें शामिल हैं:
    • बार एसोसिएशन में मतदान का अधिकार।
    • उच्चतम न्यायालय परिसर में चैंबर आवंटन के लिये पात्रता।
    • वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में पदनाम के लिये विचार।
  • संघों ने तर्क दिया कि उपस्थिति की रिकॉर्डिंग से निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है:
    • सीनियर एडवोकेट के रूप में पदनाम के लिये मानदण्ड, जिसके लिये रिपोर्ट किये गए/अप्रकाशित निर्णय प्रस्तुत करना आवश्यक है, जहाँ अधिवक्ता बहस करने या सहायक अधिवक्ता के रूप में उपस्थित हुए हों।
    • उच्चतम न्यायालय परिसर में चैंबर आवंटन के लिये पात्रता।
    • SCBA में मतदान की पात्रता, जिसके लिये न्यूनतम संख्या में उपस्थिति की आवश्यकता होती है।
  • एसोसिएशनों ने तर्क दिया कि उच्चतम न्यायालय में एक स्थापित प्रथा है कि किसी मामले में उपस्थित सभी अधिवक्ताों की उपस्थिति को चिह्नित किया जाता है, जिन्होंने उसके निर्णय में योगदान दिया हो। 
  • यह मामला विभिन्न प्रावधानों की निर्वचन एवं अनुप्रयोग से संबंधित है, जिनमें शामिल हैं:
    • अधिवक्ता अधिनियम, 1961
    • बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियम
    • उच्चतम न्यायालय नियम, 2013 (2019 में संशोधित)
    • उपस्थिति पर्चियों के संबंध में उच्चतम न्यायालय नियमों की चौथी अनुसूची में फॉर्म संख्या 30
  • यह मामला मूलतः इस प्रश्न को संबोधित करता है कि क्या अधिवक्ताओं को किसी पक्ष के लिये उपस्थित होने या विधिवत् अधिकृत न होने पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का अप्रतिबन्धित अधिकार है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की कि:
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वे "सुधारात्मक उपायों के एक भाग के रूप में उक्त निर्देश देने के लिये विवश हैं" क्योंकि न्यायालय ने पाया कि "यह न केवल विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि प्रथम दृष्टया न्यायालय के साथ धोखाधड़ी भी है, जो मामले में शामिल पक्ष-वादी और उनके अधिवक्ताओं के कहने पर किया गया है।" 
    • न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय में एक "बहुत ही अजीब प्रथा" का पालन किया जा रहा है, जिसमें एक पक्ष के लिये अनेक अधिवक्ताओं की उपस्थिति को चिह्नित किया जाता है, बिना यह सत्यापित किये कि वे सभी उस पक्ष के लिये उपस्थित होने के लिये अधिकृत हैं या नहीं।
    • न्यायालय ने कहा कि लगभग सभी मामलों में, "कार्यवाही के रिकॉर्ड में अधिवक्ताओं की कई उपस्थितियां दर्शाई जाएंगी, जो कई पृष्ठों तक चलती हैं, बिना किसी सत्यापन के कि क्या ऐसे अधिवक्ता वास्तव में न्यायालय में उपस्थित थे या वास्तव में मामले में किसी विशेष पक्ष के लिये उपस्थित होने के लिये अधिकृत थे।" 
    • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि किसी पक्ष के लिये उपस्थित होने का अधिवक्ता का अधिकार "सुनवाई के समय न्यायालय में उपस्थित रहने और कार्यवाही में भाग लेने और उसे पूरी लगन, ईमानदारी, निष्ठा एवं अपनी पूरी क्षमता से संचालित करने के कर्त्तव्य के साथ संबंधित है।"
    • न्यायालय ने कहा कि "कई मामलों में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड मामले की कार्यवाही में आगे कोई भागीदारी किये बिना केवल अपना नाम दे देता है।" इसने कहा कि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड "वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ शायद ही कभी उपस्थित पाए जाते हैं।" 
    • न्यायालय ने कहा कि "किसी भी प्रथा को सांविधिक नियमों को रद्द करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है," विशेषकर जब नियम संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत उच्चतम न्यायालय द्वारा तैयार किये जाते हैं। 
    • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि "संबंधित पक्ष द्वारा उचित प्राधिकरण के बिना, AOR या बहस करने वाले अधिवक्ता के साथ न्यायालय में आकस्मिक, औपचारिक या अप्रभावी उपस्थिति, अधिवक्ता को न्यायालय मास्टर से कार्यवाही के रिकॉर्ड में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिये आग्रह करने का अधिकार नहीं दे सकती है।"
    • न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि उनके निर्देशों का अधिवक्ताओं के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, यह कहते हुए कि "किसी भी न्यायालय परिसर में चैंबर आवंटित करने का अधिवक्ता का कोई मौलिक अधिकार या सांविधिक अधिकार नहीं है" तथा "मतदान करने या चुनाव लड़ने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही सामान्य विधिक अधिकार है, बल्कि यह पूरी तरह से एक सांविधिक अधिकार है।" 
    • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि उच्चतम न्यायालय नियम, 2013 (जैसा कि 2019 में संशोधित किया गया है) में "सांविधिक बल" है और इसका "न्यायालय के सभी अधिकारियों और उच्चतम न्यायालय में कार्य करने वाले अधिवक्ताओं द्वारा पालन एवं अनुपालन किया जाना चाहिये।"

सीनियर एडवोकेट्स एवं एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) के बीच क्या अंतर हैं?

मापदण्ड 

सीनियर एडवोकेट 

एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR)

पद 

योग्यता, प्रतिष्ठा एवं विधिक अनुभव के आधार पर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा नामित।

उच्चतम न्यायालय द्वारा एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के रूप में नामित।

अर्हता 

न्यूनतम आयु 45 वर्ष, विधिक अनुभव 10 वर्ष। अनुभव में विधिक व्यवसाय, जिला न्यायाधीश या न्यायिक अधिकरण की सदस्यता शामिल हो सकती है।

अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) उत्तीर्ण करना तथा अधिवक्ता के रूप में नामांकित होना आवश्यक है।

पद के लिये मापदण्ड 

योग्यता, बार में प्रतिष्ठा, विशेष ज्ञान, और विधि में अनुभव।

AOR के रूप में नामित होने के लिये एक विशेष परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है।

भूमिका और कार्य

जटिल विधिक मामलों को संभाल सकते हैं और विशेष मान्यता प्राप्त न्यायालयों में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय में मामले दायर करने और उनमें उपस्थित होने के लिये अधिकृत, विशेष रूप से उन मामलों के लिये जिनमें औपचारिक दस्तावेजीकरण की आवश्यकता होती है।

प्राथमिक अभ्यास

पदनाम के बाद उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों सहित किसी भी न्यायालय में प्रैक्टिस कर सकते हैं।

केवल उच्चतम न्यायालय में ही उपस्थित हो सकते हैं, विशेष रूप से दस्तावेज दाखिल करने और प्रक्रियात्मक मामलों में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करने के लिये।

आवेदन प्रक्रिया

अंक-आधारित मूल्यांकन प्रणाली के साथ पारदर्शी चयन प्रक्रिया के अधीन।

AOR के लिये आवेदन विशिष्ट नियमों के तहत उच्चतम न्यायालय के माध्यम से किया जाता है।

प्रतिबंध 

भारतीय बार काउंसिल द्वारा अभिनिर्धारित प्रैक्टिस पर कुछ प्रतिबंधों के अधीन।

ऐसा कोई विशिष्ट प्रतिबंध नहीं है।

उम्र एवं अनुभव 

इसके लिये न्यूनतम 45 वर्ष की आयु तथा 10 वर्ष का विधिक अनुभव आवश्यक है, हालाँकि भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा इसमें छूट दी जा सकती है।

किसी विशिष्ट आयु या अनुभव के वर्षों की आवश्यकता नहीं है, लेकिन AIBE उत्तीर्ण होना आवश्यक है तथा अधिवक्ता के रूप में नामांकित होना आवश्यक है।