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आपराधिक कानून

1 जुलाई से पूर्व किये गए अपराध पर IPC की प्रयोज्यता

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 27-Aug-2024

दीपू एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

“न्यायालय ने निर्णय दिया कि 1 जुलाई, 2024 से पहले किये गए अपराधों के लिये या उससे पहले दर्ज की गई FIR, IPC के अधीन आएंगी, लेकिन विवेचना भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के अनुसार होगी।”

न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला एवं न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

भारत में हाल ही में लागू किये गए नये आपराधिक संविधियों, जो पूर्ववर्ती औपनिवेशिक संविधियों का स्थान लेंगे, के कारण उनकी प्रयोज्यता के विषय में विधिक भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। इस विषय में प्रश्न उठे हैं कि क्या ये नए विधान 1 जुलाई, 2024 की प्रभावी तिथि से पहले किये गए अपराधों पर लागू होते हैं तथा वे चल रही कार्यवाही को कैसे प्रभावित करते हैं। भारतीय न्याय संहिता, 2023 एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 इस तिथि से नए अपराधों को नियंत्रित करेंगे, जबकि पहले के मामले पुराने IPC तथा CrPC के अधीन बने रहेंगे।

  • न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने दीपू एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में निर्णय दिया।

दीपू एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला दीपू एवं 4 अन्य लोगों द्वारा दायर एक रिट याचिका से जुड़ा है, जिसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की मांग की गई है।
  •  संबंधित FIR 3 जुलाई, 2024 को केस क्राइम नंबर 0271/2024 के रूप में दर्ज की गई थी।
  •  FIR भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(n), 354, 147, 452, 504, 506 एवं पाॅक्सो अधिनियम की धारा 4 के अधीन दर्ज की गई थी।
  •  मामला हमीरपुर ज़िले के मौदहा पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था।
  •  कथित घटनाएँ 2 अप्रैल, 2024 एवं 28 जून, 2024 के बीच हुईं।
  •  भारतीय न्याय संहिता (BNS) एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 1 जुलाई, 2024 को क्रमशः भारतीय दण्ड संहिता, 1860 और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की जगह लागू हुईं।
  •  नई संविधियाँ लागू होने के बाद दर्ज किये जाने के बावजूद, IPC के प्रावधानों के अधीन FIR दर्ज की गई।
  •  इस विसंगति के कारण ऐसे मामलों में लागू किये जाने वाले उचित विधिक प्रावधानों के विषय में प्रश्न किये गए, जहाँ अपराध, नई संविधियाँ लागू होने से पहले हुआ था, लेकिन FIR उसके बाद दर्ज की गई।
  •  यह मामला नए आपराधिक संविधियों के लागू होने तथा चल रही तथा नई जाँचों पर उनके प्रभाव के विषय में महत्त्वपूर्ण विधिक प्रश्न करता है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि यदि 1 जुलाई, 2024 को या उसके बाद उस तिथि से पहले किये गए अपराध के लिये FIR दर्ज की जाती है, तो इसे IPC के प्रावधानों के अधीन दर्ज किया जाना चाहिये, लेकिन जाँच BNSS के अनुसार आगे बढ़ेगी।
  • 1 जुलाई, 2024 को लंबित जाँच के लिये, न्यायालय ने कहा कि पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिये जाने तक ये CrPC के अनुसार जारी रहनी चाहिये।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 1 जुलाई, 2024 को या उसके बाद लंबित जाँच का संज्ञान BNSS के अनुसार लिया जाना चाहिये।
  • जाँच, परीक्षण या अपील सहित सभी बाद की कार्यवाही BNSS के अधीन प्रक्रिया के अनुसार प्रावधानित की जानी है।
  • न्यायालय ने BNSS की धारा 531 (2) (a) की व्याख्या केवल लंबित जाँच, परीक्षण, अपील, आवेदन एवं पूछताछ को बचाने के रूप में की।
  • 1 जुलाई, 2024 के बाद शुरू होने वाले किसी भी परीक्षण, अपील, संशोधन या आवेदन को BNSS प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ाया जाना है।
  • 1 जुलाई, 2024 को लंबित लेकिन उसके बाद समाप्त होने वाले मुकदमों के लिये, निर्णय के विरुद्ध कोई भी अपील या संशोधन BNSS के अनुसार होगा।
  • न्यायालय ने कहा कि यदि 1 जुलाई, 2024 को लंबित अपील में कोई आवेदन दायर किया जाता है, तो CrPC की प्रावधानित प्रक्रिया लागू होगी।
  • 1 जुलाई, 2024 को या उसके बाद उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई आपराधिक कार्यवाही या आरोप-पत्र, जहाँ जाँच CrPC के तहत की गई थी, उन्हें BNSS की धारा 528 के अधीन दायर किया जाना चाहिये, न कि धारा 482 CrPC के अधीन।
  • न्यायालय ने FIR पंजीकरण एवं जाँच की प्रक्रिया के संबंध में पुलिस तकनीकी सेवा मुख्यालय, यूपी द्वारा जारी परिपत्र की सत्यता की पुष्टि की।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि IPC और CrPC के निरस्त होने के बावजूद, IPC के अधीन दायित्व एवं दण्ड के प्रावधान बने रहेंगे, लेकिन प्रक्रियात्मक पहलुओं को BNSS द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।

नये आपराधिक संविधियों की प्रयोज्यता पर ऐतिहासिक मामले क्या हैं?

  • कृष्णा जोशी बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (2024)
    • राजस्थान उच्च न्यायालय: न्यायालय ने माना कि FIR पंजीकरण की तिथि पर लागू संविधि मुकदमे को नियंत्रित करेगी, भले ही यह 1 जुलाई, 2024 के बाद शुरू हो।
  • XXX बनाम केंद्रशासित राज्य, चंडीगढ़ (2024)
    • पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय: न्यायालय ने निर्णय दिया कि IPC के अधीन दर्ज FIR के लिये, लेकिन जहाँ आवेदन या याचिकाएँ 1 जुलाई, 2024 के बाद दायर की जाती हैं, वहाँ BNSS के प्रावधान लागू होंगे।
  • अब्दुल खादर बनाम केरल राज्य (2024)
    • केरल उच्च न्यायालय: न्यायालय ने माना कि 1 जुलाई, 2024 को या उसके बाद दायर की गई अपीलें BNSS द्वारा शासित होंगी, भले ही वाद CrPC के अधीन संस्थित हुआ हो या नहीं।
  • श्री एस. रब्बन आलम बनाम CBI (निदेशक के माध्यम से) (2024)
    • दिल्ली उच्च न्यायालय: न्यायालय ने सुझाव दिया कि BNSS की धारा 531 (2) A) की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि BNSS के लागू होने से पहले लंबित अपीलें ही CrPC के तहत जारी रहेंगी।
  • प्रिंस बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य (2024)
    • दिल्ली उच्च न्यायालय: न्यायालय ने कहा कि 1 जुलाई, 2024 से पहले दर्ज अपराधों के लिये अग्रिम जमानत आवेदन BNSS के अधीन दायर किये जाने चाहिये।
  • हीरालाल नानसा भावसार एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य (1974)
    • गुजरात उच्च न्यायालय: न्यायालय ने माना कि निरसन प्रावधान के अंतर्गत केवल "लंबित कार्यवाही" ही संरक्षित की जाती है तथा नए संविधि के लागू होने के बाद प्रारंभ की गई नई कार्यवाही नए संविधि द्वारा शासित होगी।
  • रमेश चंद्र एवं अन्य बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (1976)
    • पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय: न्यायालय ने पुष्टि की कि यदि नई संहिता के लागू होने के बाद इससे पहले किये गए किसी कार्य के लिये कार्यवाही शुरू की जाती है, तो वह नई संहिता द्वारा शासित होगी।