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सिविल कानून

संभाव्यता की प्रधानता का अनुप्रयोग

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 18-Oct-2024

सजीना इकबाल एवं अन्य बनाम मिनी बाबू जॉर्ज एवं अन्य

"इस तथ्य की ओर संकेत करने वाले पर्याप्त साक्ष्य हैं कि दुर्घटना में कार शामिल थी तथा अधीनस्थ न्यायालयों ने साक्ष्यों पर सही परिप्रेक्ष्य में विचार नहीं किया है।"

न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार एवं न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सजीना इकबाल एवं अन्य बनाम मिनी बाबू जॉर्ज एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि आकस्मिक दावों का निर्धारण करते समय संभाव्यता की प्रधानता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिये, न कि उचित संदेह से परे साक्ष्य के परीक्षण को।

सजीना इकबाल एवं अन्य बनाम मिनी बाबू जॉर्ज एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला 10 जून 2023 को हुई एक घातक मोटर वाहन दुर्घटना से संबद्ध है।
  • मृतक इकबाल थोडुपुझा से मुत्तोम की ओर मोटरसाइकिल चला रहा था, तभी यह दुर्घटना हुई।
  • अपीलकर्त्ताओं (इकबाल की विधवा, अप्राप्तवय बच्चे एवं माता-पिता) का दावा है कि प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा चलाई जा रही एक कार विपरीत दिशा से आई तथा इकबाल की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी।
  • टक्कर के परिणामस्वरूप इकबाल गिर गया तथा उसे घातक चोटें आईं। उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी चोटों के कारण उसकी मौत हो गई।
  • अपनी मृत्यु के समय, इकबाल पंजीयन विभाग में अपर डिविजन क्लर्क के पद पर कार्यरत थे, जिनकी मासिक आय 21,456 रुपये थी।
  • अपीलकर्त्ताओं ने दुर्घटना में कथित रूप से शामिल कार के मालिक (प्रतिवादी संख्या 1), चालक (प्रतिवादी संख्या 2) एवं बीमाकर्त्ता (प्रतिवादी संख्या 3) के विरुद्ध दावा याचिका दायर की।
  • प्रतिवादी संख्या 2 एवं 3 ने दुर्घटना में अपनी कार की संलिप्तता से अस्वीकार किया तथा दावा किया कि इकबाल की मोटरसाइकिल ने ओवरटेक करने के प्रयास में खड़ी बस को टक्कर मार दी।
  • प्रतिवादियों का तर्क है कि प्रतिवादी संख्या 2 दुर्घटना के बाद घटनास्थल पर पहुँचे तथा इकबाल को अस्पताल पहुँचाने में सहायता की।
  • यह मामला मुख्य रूप से यह निर्धारित करने के इर्द-गिर्द घूमता है कि क्या कार वास्तव में दुर्घटना में शामिल थी तथा क्या चालक की उपेक्षा का परिणाम थी।
  • दोनों पक्षों ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष अपने-अपने दावों का समर्थन करने के लिये साक्षी एवं दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किये।
  • यह तर्क दिया गया है कि MACT और उच्च न्यायालय ने भी अनुमानों और तर्कों के आधार पर तथा साक्ष्यों को पूरी तरह से दोषपूर्ण तरीके से पढ़कर अपीलकर्त्ताओं के प्रतिकूल निष्कर्ष दर्ज किये हैं।
  • असंतुष्ट होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष भारत के संविधान (COI) के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत वर्तमान अपील दायर की।

मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण:

  • यह मोटर दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप होने वाली जान/संपत्ति की हानि एवं चोट के मामलों से संबंधित सभी दावों से निपटता है।
  • दावे सीधे अधिकरण के समक्ष दायर किये जाने हैं।
  • MACT के अंतर्गत न्यायालयों की अध्यक्षता जिला न्यायिक सेवा के न्यायिक अधिकारियों द्वारा की जाती है।
  • दावे निर्धारित प्रारूप में दायर किये जाने हैं।
  • MACT के समक्ष दाखिल करते समय दाखिल करने के लिये आवश्यक सामग्री एवं दस्तावेजों का भी अनुपालन किया जाना चाहिये।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • अधीनस्थ न्यायालयों के निष्कर्षों के विपरीत, दुर्घटना में कार की संलिप्तता को प्रदर्शित करने वाले पर्याप्त साक्ष्य मौजूद थे।
    • अधीनस्थ न्यायालयों के निष्कर्ष अनुमानों एवं साक्ष्यों की दोषपूर्ण निर्वचन पर आधारित थे।
    • महाजर (निरीक्षण रिपोर्ट) में दर्ज कार को हुए क्षति से स्पष्ट रूप से दुर्घटना में उसकी संलिप्तता का संकेत मिलता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालयों की इस तथ्य के लिये आलोचना की कि उन्होंने प्रत्यक्षदर्शी पर केवल इसलिये विश्वास नहीं किया क्योंकि पुलिस ने विवेचना के दौरान उसका अभिकथन दर्ज नहीं किया था।
    • इसने इस बात पर बल दिया कि मोटर दुर्घटना के मामलों में संभाव्यता की प्रबलता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिये, न कि उचित संदेह से परे साक्ष्य के परीक्षण को।
  • इस बात पर बल दिया गया कि मोटर दुर्घटना के मामलों में संभाव्यता की प्रबलता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिये, न कि संदेह से पूर्व साक्ष्य के परीक्षण को।
    • न्यायालय ने बस चालक एवं चाय की दुकान के मालिक की गवाही सहित सभी साक्ष्यों पर विचार करने के महत्त्व पर ध्यान दिया।
    • न्यायालय ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि निरीक्षण रिपोर्ट ने कार के अगले भाग में हुई क्षति को स्पष्ट रूप से दर्ज किया है, जिससे यह निष्कर्ष निकालना असंभव है कि कार दुर्घटना में शामिल नहीं थी।
  • उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि निचली न्यायालय साक्ष्यों पर उसके सही परिप्रेक्ष्य में विचार करने में विफल रहीं, जिसके परिणामस्वरूप कार की गैर-संलिप्तता के विषय में एक विकृत निष्कर्ष निकला।
  • उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि साक्ष्यों का उचित मूल्यांकन करने पर केवल यही निष्कर्ष निकल सकता है कि कार उस दुर्घटना में शामिल थी जिसके कारण इकबाल की मृत्यु हुई।

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 क्या है?

परिचय:

  • मोटर वाहन अधिनियम, 1939 के स्थान पर यह अधिनियम 1 जुलाई 1989 को लागू हुआ।
  • यह अधिनियम ड्राइवरों/कंडक्टरों के लाइसेंस, मोटर वाहनों के पंजीकरण, परमिट के माध्यम से मोटर वाहनों के नियंत्रण, राज्य परिवहन उपक्रमों से संबंधित विशेष प्रावधानों, यातायात विनियमन, बीमा, देयता, अपराध एवं दण्ड आदि के संबंध में विधायी प्रावधानों को विस्तार से प्रदान करता है।

उद्देश्य:

  • सड़क सुरक्षा।
  • कुशल परिवहन।
  • सड़क उपयोगकर्त्ताओं के अधिकारों का संरक्षण।
  • यह अधिनियम यातायात विनियमन, वाहन मानकों, लाइसेंसिंग एवं उल्लंघन के लिये दण्ड के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है।

संभाव्यता की प्रधानता क्या है?

परिचय:

  • यह मूल रूप से यह निर्धारित करता है कि कौन सा तथ्य या साक्ष्य होने की अधिक संभावना है।
  • इस अवधारणा में सभी संदेहों को समाप्त करना शामिल नहीं है, बल्कि यह प्रस्तुत किये गए दो तथ्यों का वजन करता है, जिसके आधार पर अधिक संभावना है।
  • यह उचित संदेह से परे सिद्ध करने के सिद्धांत के विपरीत है।
  • सिविल मामलों में साक्ष्य का भार उठाने वाले पक्ष को यह दिखाना होता है कि उनकी कहानी का पक्ष दूसरे पक्ष की तुलना में अधिक प्रशंसनीय है।

संभाव्यता की प्रधानता के प्रमुख तत्त्व:

  • एक पक्ष का यह तथ्य सिद्ध होना चाहिये कि दूसरे पक्ष की तुलना में ऐसा होने की संभावना अधिक है।
  • अधिक विश्वसनीयता या वजन वाले साक्ष्य को मामले को समाप्त करने के लिये न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • इस तरह के सिद्धांत संविदाओं, अपकृत्यों से संबंधित विवादों में लागू हो सकते हैं, जहाँ साक्ष्य का भार दावेदार पर होता है।
  • न्यायालय द्वारा मामले की गंभीरता एवं प्रस्तुत साक्ष्य के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिये। साक्ष्य का मानक मुद्दे की गंभीरता के साथ बदलता रहता है।

संभाव्यता की प्रधानता के सिद्धांत एवं उचित संदेह से परे सिद्ध करने के बीच अंतर:

संभाव्यता की प्रधानता

उचित संदेह से परे

इसका उपयोग सिविल मामलों में किया जाता है

इसका प्रयोग आपराधिक मामलों में किया जाता है

इसके लिये  यह सिद्ध करना आवश्यक है कि किसी तथ्य के सत्य होने की संभावना अधिक है

इसके लिये यह प्रमाणित करना आवश्यक है कि साक्ष्य के लिये कोई अन्य उचित स्पष्टीकरण नहीं है। प्रमाण का एक बहुत उच्च मानक

साक्ष्य से यह पता चलना चाहिये कि दावे के सत्य होने की संभावना 50% से अधिक है

साक्ष्य इतने सशक्त होने चाहिये कि प्रतिवादी के अपराध के विषय में कोई तार्किक संदेह न रहे

इसे "न्याय के तराजू का एक पक्ष के पक्ष में थोड़ा सा झुकना" के रूप में समझा जा सकता है।

इसे "किसी चीज़ के विषय में लगभग निश्चित होना" के रूप में समझा जा सकता है