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सिविल कानून

रेस जूडीकेटा का उपयोजन

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 28-Nov-2024

X बनाम Y

 "रेस जूडीकेटा और आदेश 2 नियम 2 के सिद्धांत दोनों ही कानून के नियम पर आधारित हैं कि किसी व्यक्ति को एक ही कारण से दो बार परेशान नहीं किया जाएगा।"

न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि चूँकि दोनों याचिकाओं में वाद हेतुक भिन्न है, इसलिये उन्हें रेस जूडीकेटा द्वारा वर्जित नहीं किया जा सकता।     

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने X बनाम Y मामले में यह निर्णय दिया।

X बनाम Y मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) विवाहित थे।
  • अपीलकर्त्ता ने मुख्य रूप से अभित्यजन के आधार पर विवाह-विच्छेद के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13 के तहत वैवाहिक मामला दायर किया।
  • उपरोक्त मामला पति द्वारा पत्नी के विरुद्ध दायर किया गया पहला विवाह-विच्छेद का मामला था।
  • हालाँकि इसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि अपीलकर्त्ता द्वारा प्रतिवादी की ओर से अभित्यजन साबित नहीं किया गया।
  • दूसरा मामला पति द्वारा पत्नी के विरुद्ध वर्ष 2021 में दर्ज कराया गया जिसमें:
    • पति ने पहले मामले जैसे ही आरोप लगाए।
    • इसके अतिरिक्त, क्रूरता के नए दावे भी किये गए, जिसमें पति ने आरोप लगाया कि:
      • पत्नी, उसके जीजा और एक अन्य संबंधी ने कथित तौर पर पति की माँ और बहन पर हमला किया।
      • पत्नी ने घर का सामान तोड़ दिया।
      • गाँव वालों को बुलाया गया और कथित हमलावर भाग गए।
      • इसके बाद पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई।
  • पत्नी ने आरोपों पर निम्नलिखित प्रतिक्रिया दी:
    • उसने क्रूरता के आरोपों से इनकार किया।
    • उसने पुष्टि की कि वह वैवाहिक घर में दो कमरों के आवास में रहती है (पिछले घरेलू हिंसा मामले के आदेश के अनुसार)।
    • उसने तर्क दिया कि चूँकि पहला विवाह-विच्छेद का मामला खारिज कर दिया गया था, इसलिये दूसरा मामला भी खारिज कर दिया जाना चाहिये
  • कुटुंब न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत विवाह-विच्छेद के लिये अपीलकर्त्ता द्वारा दायर वैवाहिक मामले को रेस जूडीकेटा द्वारा वर्जित होने के आधार पर खारिज कर दिया।
  • वर्तमान अपील कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 (1) सहपठित हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 28 के अंतर्गत प्रधान न्यायाधीश, कुटुंब न्यायालय अंबेडकर नगर द्वारा पारित निर्णय के विरुद्ध दायर की गई है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने माना कि हालाँकि दूसरी विवाह-विच्छेद की याचिका में कुछ पैराग्राफ पहली याचिका के समान थे, तथापि दूसरी याचिका में अतिरिक्त आधार प्रस्तुत किये गए थे जो पहली याचिका में मौजूद नहीं थे।
  • न्यायालय ने कहा कि दूसरी याचिका में नए तत्त्व इस प्रकार हैं:
    • दूसरी याचिका में मुकदमेबाज़ी की लागत और पत्नी को दिये गए व्यय पर प्रकाश डाला गया।
    • इसमें वर्ष 2020 की एक विशेष घटना का उल्लेख किया गया जिसमें पति के परिवार के सदस्यों पर शारीरिक और मानसिक हमला किया गया था।
  • न्यायालय ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 11 का संदर्भ दिया, जो यह निर्धारित करने पर केन्द्रित थी कि क्या दूसरे मुकदमे में वाद हेतुक पहले से भिन्न था।
  • न्यायालय ने कहा कि रेस जूडीकेटा के प्रतिबंध को लागू करने के लिये, न्यायालय को यह आकलन करने की आवश्यकता है कि क्या वाद हेतुक बदल गया है।
  • यह देखा गया कि नए आधारों और घटनाओं को जोड़ने से वाद हेतुक का संभावित भिन्न कारण सुझाया गया।
  • तदनुसार, न्यायालय ने वर्तमान अपील स्वीकार कर ली तथा विवादित डिक्री को रद्द कर दिया।

रेस जूडीकेटा क्या है?

  • रेस का अर्थ है “विषय वस्तु” और जूडीकेटा का अर्थ है “न्यायनिर्णीत” या निर्णयित और साथ में इसका अर्थ है “न्यायनिर्णीत मामला”
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 11 में रेस जूडीकेटा के सिद्धांत या निर्णय की निर्णायकता के नियम को शामिल किया गया है।
  • इसमें यह प्रावधान किया गया है कि एक बार जब कोई मामला सक्षम न्यायालय द्वारा अंतिम रूप से तय कर दिया जाता है, तो किसी भी पक्ष को आगामी मुकदमे में उस मामले को पुनः खोलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  • यह कार्यवाहियों की बहुलता को रोकने तथा पक्षकारों को एक ही कारण से दो बार परेशान होने से बचाने का काम करता है।
  • रेस जूडीकेटा के सिद्धांत का उद्देश्य तीन न्यायिक सिद्धांतों द्वारा पता लगाया जा सकता है:
    • निमो डेबेट बिस वेक्सारी प्रो ऊना एट ईएडेम कॉसा (Nemo debet bis vexari pro una et eadem causa): इसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही कारण से दो बार परेशान नहीं किया जाना चाहिये।
    • इंटरेस्ट रिपब्लिका यूट सिट फिनिस लिटियम (Interest reipublicae ut sit finis litium): इस कहावत का अर्थ है कि यह राज्य के हित में है कि मुकदमेबाज़ी का अंत होना चाहिये।
    • रेस जूडीकेटा प्रो वेरिटेट ओसीसीपिटुर (Res judicata pro veritate occipitur): एक न्यायिक निर्णय को सही के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये।
  • आवश्यक तत्त्व:
    • विवाद्यक मामला समान होना चाहिये: रेस जूडीकेटा के सिद्धांत को लागू करने के लिये, बाद के वाद का मामला पूर्व वाद से प्रत्यक्षतः और मूलतः समान होना चाहिये।
    • समान पक्षकार: पूर्ववर्ती वाद समान पक्षकारों के बीच, या उन पक्षकारों के बीच होना चाहिये जिनके अंतर्गत वे या उनमें से कोई दावा करता है।
    • समान शीर्षक: पक्षकारों को पूर्व और बाद के दोनों वादों में समान शीर्षक के तहत मुकदमा लड़ना होगा।
    • सक्षम क्षेत्राधिकार: जिस न्यायालय ने पूर्ववर्ती वाद का निर्णय किया था, उसके पास आगामी वाद या उस वाद की सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार होना चाहिये जिसमें मुद्दा उठाया गया हो।
    • सुनवाई हुई और अंतिम रूप से निर्णय हुआ: विवादित मामले की सुनवाई पूर्व न्यायालय द्वारा की गई होगी और अंतिम रूप से निर्णय हुआ होगा।

विवाह-विच्छेद के मामलों में रेस जूडीकेटा का उपयोजन कैसे निर्धारित किया जाता है?

  • वैवाहिक स्थिति में पूर्व और बाद की कार्यवाहियों में अनुतोषों में अंतर, रेस जूडीकेटा के सिद्धांत की प्रासंगिकता को आकर्षित करने के लिये अप्रासंगिक है।
  • रेस जूडीकेटा के उपयोजन के लिये दोनों मामलों में वाद हेतुक भिन्न होना चाहिये।
  • एक पति ने पहले दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये वाद दायर किया था, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि पत्नी को घर से निकाल दिया गया था तथा उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया था।
    • इसके बाद पति ने अन्य बातों के साथ-साथ अभित्यजन के आधार पर विवाह-विच्छेद के लिये वाद दायर किया।
    • यह माना गया कि अभित्यजन का मुद्दा रेस जूडीकेटा द्वारा वर्जित था।

इस मुद्दे पर निर्णयज विधि क्या मामले हैं?

  • बलवीर सिंह बनाम हरजीत कौर (2017)
    • यह निर्णय उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया।
    • अपीलकर्त्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-A के तहत विवाह-विच्छेद की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।
    • उच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य मुद्दा यह था कि क्या यह याचिका सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 11 (जो रेस जूडीकेटा से संबंधित है, जिसका अर्थ है कि पहले से तय मामले पर फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता) द्वारा निषिद्ध है।
    • यह प्रश्न इसलिये उठा क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 (दांपत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन से संबंधित) के तहत एक पूर्व मामला पहले ही सुलझा लिया गया था।
    • न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 13A के तहत कार्यवाही को अधिनियम की धारा 9 के तहत पूर्व कार्यवाही के आधार पर रेस जूडीकेटा द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा।