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वाणिज्यिक विधि
धारा 21 के अंतर्गत बिना नोटिस के ही मध्यस्थ अधिकरण द्वारा की जाने वाली कार्यवाही
« »21-Apr-2025
अदव्या प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स विशाल स्ट्रक्चरल्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य “धारा 21 के अंतर्गत नोटिस की गैर-तामील और अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत अपीलकर्त्ता के नोटिस में प्रतिवादी संख्या 2 एवं 3 के विरुद्ध उठाए गए विवादों की अनुपस्थिति स्वचालित रूप से मध्यस्थता कार्यवाही में पक्षकार के रूप में उनकी भागीदारी पर रोक नहीं लगाती है।” न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि कोई पक्षकार मध्यस्थता करार से बंधा हुआ है तो धारा 21 के अंतर्गत नोटिस न दिये जाने से मध्यस्थता अधिकारिता समाप्त नहीं होती है।
- उच्चतम न्यायालय ने अदव्या प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स विशाल स्ट्रक्चरल्स प्राइवेट लिमिटेड (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
अदव्या प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स विशाल स्ट्रक्चरल्स प्राइवेट लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता और प्रतिवादी संख्या 1 ने 01 जून 2012 को विशाल कैप्रिकॉर्न एनर्जी सर्विसेज LLP (प्रतिवादी संख्या 2) नामक एक सीमित देयता भागीदारी बनाने के लिये एक LLP करार किया।
- केवल अपीलकर्त्ता एवं प्रतिवादी संख्या 1 ही LLP करार पर हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
- LLP करार के खंड 8 में श्री किशोर कृष्णमूर्ति (प्रतिवादी संख्या 3) को LLP के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नामित किया गया है, जो व्यवसायिक प्रशासन और संविदा निष्पादन के लिये उत्तरदायी हैं।
- प्रतिवादी संख्या 3 प्रतिवादी संख्या 1 कंपनी का निदेशक भी है। LLP करार के खंड 40 में विवाद समाधान के लिये मध्यस्थता खंड शामिल है।
- LLP करार के खंड 40 में विवाद समाधान के लिये मध्यस्थता खंड शामिल है।
- ऑयल इंडिया लिमिटेड ने 31 दिसंबर 2012 को तेनुघाट, असम में एक परियोजना के लिये एक संघ (प्रतिवादी संख्या 1 सहित) को एक संविदा दिया।
- संघ ने 8 जनवरी 2013 को प्रतिवादी संख्या 1 को परियोजना का उप-संविदा दिया।
- अपीलकर्त्ता एवं प्रतिवादी संख्या 1 ने प्रतिवादी संख्या 2 (LLP) के माध्यम से परियोजना को निष्पादित करने के लिये 29 जनवरी 2013 को एक पूरक करार और MoU में भागीदार बने।
- अपीलकर्त्ता ने परियोजना के क्रियान्वयन के लिये 1.1 करोड़ रुपये का निवेश किया। 2018 में विवाद तब उत्पन्न हुआ जब अपीलकर्त्ता ने परियोजना से संबंधित LLP के खातों का ऑडिट करने की मांग की।
- अपीलकर्त्ता ने प्रतिवादी संख्या 1 को 2019 में 7.31 करोड़ रुपये के भुगतान के लिये डिमांड नोटिस जारी किया।
- 17 नवंबर 2020 को, अपीलकर्त्ता ने खंड 40 के अंतर्गत मध्यस्थता का आह्वान किया, लेकिन केवल प्रतिवादी संख्या 1 के विरुद्ध।
- अपीलकर्त्ता ने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 (ACA) की धारा 11 के अंतर्गत एक आवेदन दायर किया, जिसमें केवल प्रतिवादी संख्या 1 को पक्षकार के रूप में नामित किया गया।
- मध्यस्थता प्रारंभ होने के बाद, अपीलकर्त्ता ने अपने दावे के अभिकथन में प्रतिवादी संख्या 2 एवं 3 को पक्षकार बनाने का प्रयास किया।
- मुद्दा यह है कि क्या वर्तमान मामले के तथ्यों में उपरोक्त के अनुसार पक्षकार बनाया जा सकता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- धारा 21- धारा 11 आवेदन में नोटिस एवं संयोजन अनिवार्य नहीं:
- धारा 21 के नोटिस की तामील और धारा 11 के आवेदन में पक्षकार होना, किसी व्यक्ति/संस्था को मध्यस्थता कार्यवाही में पक्षकार बनाने के लिये पूर्वापेक्षाएँ नहीं हैं।
- धारा 21 नोटिस का उद्देश्य:
- मध्यस्थता की आरंभ तिथि तय करना (धारा 43 के अंतर्गत सीमा के लिये प्रासंगिक)।
- प्रतिवादी को दावों की सूचना देना, उन्हें स्वीकार करने/विवाद करने की अनुमति देना।
- मध्यस्थों की नियुक्ति में सहायता करना या आपत्तियाँ उठाना।
- नियुक्ति प्रक्रिया विफल होने पर धारा 11 के अंतर्गत न्यायालय हस्तक्षेप आरंभ करना।
- धारा 21 के अंतर्गत नोटिस का प्राथमिक कार्य प्रक्रियात्मक है - समय-संबंधित तंत्र को सक्रिय करना, न कि अधिकारिता का निर्धारण करना।
- न्यायालय ने आगे कहा कि किसी पक्ष को धारा 21 का नोटिस न दिये जाने से मध्यस्थता अधिकारिता समाप्त नहीं होती है, यदि पक्ष मध्यस्थता करार से अन्यथा बंधा हुआ है।
- ACA की धारा 16 के अंतर्गत जाँच के संबंध में:
- धारा 16 के अंतर्गत, मध्यस्थ अधिकरण को यह तय करने का अधिकार है कि क्या उसके पास अधिकारिता है, जिसमें शामिल होने और पक्षकार की स्थिति के मुद्दे भी शामिल हैं।
- अधिकरण को यह जाँच करनी चाहिये कि जिस व्यक्ति/इकाई को शामिल किया जाना है, वह मध्यस्थता करार का पक्ष है या आचरण से उससे बंधा हुआ है।
- यदि कोई व्यक्ति मध्यस्थता करार का पक्षकार पाया जाता है, चाहे वह स्पष्ट रूप से हो या उसके आचरण से, तो अधिकरण के पास उस पर अधिकारिता है।
- अंत में न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- धारा 21 नोटिस अनिवार्य है लेकिन अधिकारिता नहीं:
- जबकि धारा 21 का नोटिस मध्यस्थता प्रारंभ करने और परिसीमा उद्देश्यों के लिये आवश्यक है, कुछ पक्षों को जारी न किये जाने से उन्हें अभियोजित करने के लिये मध्यस्थ अधिकरण की अधिकारिता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- धारा 11 का दायरा सीमित है:
- धारा 11 के अंतर्गत न्यायालय की भूमिका केवल मध्यस्थों की नियुक्ति करना और प्रथम दृष्टया जाँच करना है। इसका निर्णय मध्यस्थ अधिकरण को इस तथ्य पर बाध्य नहीं करता कि किसे पक्षकार बनाया जा सकता है।
- अधिकरण की अधिकारिता मध्यस्थता करार पर निर्भर करता है:
- धारा 16 के अंतर्गत मुख्य जाँच यह है कि क्या वह व्यक्ति ACA की धारा 7 के अनुसार, स्पष्ट रूप से या आचरण से, मध्यस्थता करार का पक्षकार है।
- प्रतिवादी 2 एवं 3 मध्यस्थता करार से बंधे हैं:
- गैर-हस्ताक्षरकर्त्ता होने के बावजूद, LLP करार के अंतर्गत उनका आचरण दर्शाता है कि वे इसके पक्षकार हैं तथा उन्हें मध्यस्थता कार्यवाही में वैध रूप से शामिल किया जा सकता है।
- धारा 21 नोटिस अनिवार्य है लेकिन अधिकारिता नहीं:
ACA की धारा 21 के अंतर्गत नोटिस क्या है?
- ACA की धारा 21 में मध्यस्थता कार्यवाही प्रारंभ करने का प्रावधान है।
- धारा 21 में प्रावधान है:
- मध्यस्थता कार्यवाही उस दिन से प्रारंभ होती है जिस दिन प्रतिवादी को मध्यस्थता के लिये अनुरोध प्राप्त होता है।
- आरंभ अनुरोध में उल्लिखित विशिष्ट विवाद से संबंधित होता है।
- यह नियम तब तक लागू होता है जब तक कि पक्ष अपने मध्यस्थता करार में अन्यथा सहमत न हों।