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आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 35 के अधीन गिरफ्तारी
« »31-Jul-2024
तवारागी राजशेखर शिव प्रसाद बनाम कर्नाटक राज्य “BNSS की धारा 35 के अधीन जारी किये जाने वाले नोटिस में अपराध संख्या, अपराध में आरोपित अपराध का उल्लेख करना एवं उसके साथ FIR की एक प्रति संलग्न करना अनिवार्य है।” न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की पीठ ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 35 के अधीन नोटिस में अपराध संख्या एवं कथित अपराध का विवरण होना चाहिये तथा इसके साथ FIR की प्रति संलग्न की जानी चाहिये।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने तवारागी राजशेखर शिव प्रसाद बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में यह व्यवस्था दी।
तवारागी राजशेखर शिव प्रसाद बनाम कर्नाटक राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- इस मामले में याचिकाकर्त्ता स्वयं को एक प्रतिष्ठित पत्रकार के रूप में प्रदर्शित करता है।
- उसे 6 जून 2024 को व्हाट्सएप पर एक नोटिस मिला। यह नोटिस दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 41 (1) (a) के अधीन जारी किया गया था, जिसमें किसी भी अपराध के पंजीकरण का उल्लेख नहीं है जिसके अधीन नोटिस जारी किया गया था।
- याचिकाकर्त्ता का दावा है कि उसने नोटिस के विषय में पूछताछ की तथा नोटिस जारी करने के कारणों की मांग की, हालाँकि उसे अपराध के विवरण के विषय में नहीं बताया गया।
- इसलिये याचिकाकर्त्ता न्यायालय में अपील की।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- इस मामले में उच्च न्यायालय ने पाया कि इस तरह जारी किया गया नोटिस हालाँकि CrPC की धारा 41 (1) (a) का हवाला देता है, लेकिन वास्तव में यह CrPC की धारा 41-A के अधीन जारी किया गया है क्योंकि याचिकाकर्त्ता को पुलिस के समक्ष प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया है।
- धारा 41-A के अधीन जारी किये गए किसी भी नोटिस का अगर पालन नहीं किया जाता है तो नोटिस प्राप्त करने वाले को गिरफ्तार किया जा सकता है। इसलिये, नोटिस प्राप्त करने वाले को पता होना चाहिये कि उसे पुलिस स्टेशन क्यों बुलाया जा रहा है।
- नागरिक को यह पता होना चाहिये कि उसे क्यों बुलाया जा रहा है और नागरिक को दी गई सूचना अधूरी नहीं होनी चाहिये। नोटिस में अपराध संख्या एवं जिस उद्देश्य के लिये उसे बुलाया जा रहा है, उसका उल्लेख होना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि नोटिस इलेक्ट्रॉनिक रूप से जारी किया जा सकता है, लेकिन पुलिस अधिकारी को अपराध संख्या का उल्लेख करना चाहिये तथा साथ ही संचार के साथ FIR की एक प्रति भी संलग्न करनी चाहिये।
- इसके बाद न्यायालय ने BNSS की धारा 35 की तुलना CrPC की धारा 41 से की।
- न्यायालय ने अंततः किसी भी व्यक्ति को समन भेजने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये। निम्नलिखित प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिये:
- BNSS की धारा 35 के अधीन नोटिस में अपराध संख्या एवं अपराध संख्या में आरोपित अपराध का उल्लेख किया जाएगा। इसे नोटिस प्राप्तकर्त्ता को पारंपरिक तरीके से या इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से सूचित किया जा सकता है।
- संचार में दर्ज की गई FIR की एक प्रति संलग्न की जाएगी, क्योंकि FIR में शिकायत का सार होगा।
- यदि नोटिस में अपराध संख्या, आरोपित अपराध या FIR संलग्न करने की सूचना नहीं है, तो अपवादों के अधीन, नोटिस प्राप्तकर्त्ता को उस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा जिसने उसे उपस्थित होने का निर्देश दिया है तथा उपस्थित न होने पर कोई दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
- पुलिस विभाग के लिये यह भी आवश्यक है कि वह FIR को तुरंत उनके पंजीकरण पर अपलोड करने के लिये एक सशक्त प्रणाली लाए एवं इसे अंवेषण के अनुकूल बनाए।
गिरफ्तारी एवं गिरफ्तारी के लिये नोटिस का प्रावधान क्या है?
- CrPC की धारा 41 और धारा 41 A में क्रमशः गिरफ्तारी एवं पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने की सूचना का प्रावधान है। यह BNSS की धारा 35 में निहित है।
- CrPC और BNSS के मध्य तुलना:
CrPC की धारा 41 एवं 41A |
BNSS की धारा 35 |
धारा 41: (1) कोई भी पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के बिना किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है- (क) जो किसी पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में कोई संज्ञेय अपराध कारित करता है; (ख) जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है, या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है, या उचित संदेह विद्यमान है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, जिसके लिये कारावास की अवधि सात वर्ष से कम या सात वर्ष तक की हो सकेगी, चाहे ज़ुर्माने सहित या रहित, दण्डनीय है, यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं, अर्थात्— (i) पुलिस अधिकारी के पास ऐसी शिकायत, सूचना या संदेह के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है; (ii) पुलिस अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी गिरफ्तारी आवश्यक है- (a) ऐसे व्यक्ति को आगे कोई अपराध करने से रोकने के लिये; या (b) अपराध की उचित जाँच के लिये; या (c) ऐसे व्यक्ति को अपराध के साक्ष्य को गायब करने या किसी भी तरीके से ऐसे साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ करने से रोकने के लिये; या (d) ऐसे व्यक्ति को मामले के तथ्यों से परिचित किसी व्यक्ति को कोई प्रलोभन, धमकी या वचन देने से रोकना जिससे कि वह ऐसे तथ्यों को न्यायालय या पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रकट करने से विरत हो जाए; या (e) जब तक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाता है, तब तक जब भी आवश्यक हो, न्यायालय में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जा सकती है, और पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करते समय उसके कारणों को लिखित रूप में दर्ज करेगा: बशर्ते कि पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में जहां इस उपधारा के प्रावधानों के तहत किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है, गिरफ्तारी न करने के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करेगा। (ba) जिसके विरुद्ध विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, जो सात वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से, ज़ुर्माने सहित या रहित, या मृत्युदण्ड से दण्डनीय है और पुलिस अधिकारी के पास उस सूचना के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है; (c) जिसे इस संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा अपराधी घोषित किया गया हो; या (d) जिसके कब्ज़े में कोई ऐसी वस्तु पाई जाती है जिसके विषय में उचित रूप से संदेह हो कि वह चोरी की संपत्ति है और जिसके विषय में उचित रूप से संदेह हो कि उसने ऐसी वस्तु के संदर्भ में कोई अपराध किया है; या (e) जो किसी पुलिस अधिकारी को उसके कर्त्तव्य के निष्पादन में बाधा डालता है, या जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से भाग निकला है, या भागने का प्रयास करता है; या (f) जिसके विषय में उचित संदेह है कि वह संघ के किसी सशस्त्र बल का भगोड़ा है; या (g) जो भारत से बाहर किसी स्थान पर किये गए किसी ऐसे कार्य में संलिप्त रहा है, या जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है, या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है, या उचित संदेह विद्यमान है, जो यदि भारत में किया जाता तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता, और जिसके लिये वह प्रत्यर्पण से संबंधित किसी कानून के अधीन, या अन्यथा, भारत में पकड़ा जा सकता है या अभिरक्षा में रखा जा सकता है; या (h) जो रिहा किया गया सिद्धदोष होते हुए धारा 356 की उपधारा (5) के अधीन बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन करता है; या (i) जिसकी गिरफ्तारी के लिये किसी अन्य पुलिस अधिकारी से लिखित या मौखिक कोई अध्यपेक्षा प्राप्त हुई है, बशर्ते कि अध्यपेक्षा में गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति और उस अपराध या अन्य कारण का उल्लेख हो जिसके लिये गिरफ्तारी की जानी है और उससे यह प्रतीत होता है कि अध्यपेक्षा जारी करने वाले अधिकारी द्वारा उस व्यक्ति को बिना वारंट के विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जा सकता है। |
धारा 35: (1) कोई भी पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के बिना किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है- (क) जो किसी पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में कोई संज्ञेय अपराध कारित करता है; या (ख) जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है, या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है, या उचित संदेह विद्यमान है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, जिसके लिये कारावास की अवधि सात वर्ष से कम या सात वर्ष तक की हो सकेगी, चाहे ज़ुर्माने सहित या रहित, दण्डनीय है, यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं, अर्थात्— (i) पुलिस अधिकारी के पास ऐसी शिकायत, सूचना या संदेह के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है; (ii) पुलिस अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी गिरफ्तारी आवश्यक है- (a) ऐसे व्यक्ति को आगे कोई अपराध करने से रोकने के लिये; या (b) अपराध की उचित जाँच के लिये; या (c) ऐसे व्यक्ति को अपराध के साक्ष्य को गायब करने या किसी भी तरीके से ऐसे साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ करने से रोकने के लिये; या (d) ऐसे व्यक्ति को मामले के तथ्यों से परिचित किसी व्यक्ति को कोई प्रलोभन, धमकी या वचन देने से रोकना जिससे कि वह ऐसे तथ्यों को न्यायालय या पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रकट करने से विरत हो जाए; या (e) जब तक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक जब भी आवश्यक हो, न्यायालय में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जा सकती, और पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करते समय उसके कारणों को लिखित रूप में दर्ज करेगा: बशर्ते कि पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में, जहां इस उपधारा के प्रावधानों के तहत किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है, गिरफ्तारी न करने के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करेगा; या (ग) जिसके विरुद्ध विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, जो सात वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से, जुर्माने सहित या रहित, या मृत्युदण्ड से दण्डनीय है और पुलिस अधिकारी के पास उस सूचना के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है; या (d) जिसे इस संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा अपराधी घोषित किया गया हो; या (e) जिसके कब्ज़े में कोई ऐसी वस्तु पाई गई हो जिसके बारे में उचित रूप से संदेह हो कि वह चोरी की संपत्ति है और जिसके बारे में उचित रूप से संदेह हो कि उसने ऐसी वस्तु के संदर्भ में कोई अपराध किया है; या (f) जो किसी पुलिस अधिकारी को उसके कर्त्तव्य के निष्पादन में बाधा डालता है, या जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से भाग निकला है, या भागने का प्रयास करता है; या (g) जिसके बारे में उचित रूप से संदेह है कि वह संघ के किसी सशस्त्र बल का भगोड़ा है; या (h) जो भारत से बाहर किसी स्थान पर किये गए किसी ऐसे कार्य में संलिप्त रहा है, या जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है, या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है, या उचित संदेह विद्यमान है, जो यदि भारत में किया जाता तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता और जिसके लिये वह प्रत्यर्पण से संबंधित किसी कानून के अंतर्गत, या अन्यथा, भारत में पकड़ा जा सकता है या अभिरक्षा में रखा जा सकता है; या (i) जो रिहा किया गया सिद्धदोष होते हुए धारा 394 की उपधारा (5) के अधीन बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन करता है; या (j) जिसकी गिरफ्तारी के लिये किसी अन्य पुलिस अधिकारी से लिखित या मौखिक अध्यपेक्षा प्राप्त हुई है, परंतु अध्यपेक्षा में गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति और उस अपराध या अन्य कारण का उल्लेख हो जिसके लिये गिरफ्तारी की जानी है और उससे यह प्रतीत होता है कि अध्यपेक्षा जारी करने वाले अधिकारी द्वारा उस व्यक्ति को बिना वारंट के विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जा सकता है। |
(2) धारा 42 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी असंज्ञेय अपराध से संबंधित व्यक्ति या जिसके विरुद्ध कोई शिकायत की गई है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है या उसके इस प्रकार संबंधित होने का उचित संदेह है, को मजिस्ट्रेट के वारंट या आदेश के सिवाय गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, अन्यथा नहीं। |
(2) धारा 39 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी असंज्ञेय अपराध से संबद्ध किसी व्यक्ति को या जिसके विरुद्ध कोई शिकायत की गई है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है या उसके ऐसे संबद्ध होने का उचित संदेह है, मजिस्ट्रेट के वारंट या आदेश के अधीन ही गिरफ्तार किया जाएगा, अन्यथा नहीं। |
धारा 41 A: (1) पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में, जहाँ धारा 41 की उपधारा (1) के प्रावधानों के अधीन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी अपेक्षित नहीं है, नोटिस जारी करेगा जिसमें उस व्यक्ति को निर्देश दिया जाएगा जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है या उचित संदेह है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, कि वह उसके समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर उपस्थित हो, जैसा कि नोटिस में निर्दिष्ट किया जा सकता है। |
(3) पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में, जहाँ उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी अपेक्षित नहीं है, नोटिस जारी करके उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है या उचित संदेह है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, अपने समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर, जैसा नोटिस में विनिर्दिष्ट किया जाए, उपस्थित होने का निर्देश देगा। |
(2) जहाँ ऐसा नोटिस किसी व्यक्ति को जारी किया जाता है, वहाँ उस व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह नोटिस की शर्तों का पालन करे। |
(4) जहाँ ऐसा नोटिस किसी व्यक्ति को जारी किया जाता है, वहाँ उस व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह नोटिस की शर्तों का पालन करे। |
(3) जहाँ ऐसा व्यक्ति नोटिस का अनुपालन करता है और अनुपालन करना जारी रखता है, वहाँ उसे नोटिस में निर्दिष्ट अपराध के संबंध में तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा जब तक कि, अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, पुलिस अधिकारी की यह राय न हो कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिये। |
(5) जहाँ ऐसा व्यक्ति नोटिस का अनुपालन करता है और अनुपालन करना जारी रखता है, वहाँ उसे नोटिस में निर्दिष्ट अपराध के संबंध में तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा जब तक कि, अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, पुलिस अधिकारी की यह राय न हो कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिये। |
(4) जहाँ ऐसा व्यक्ति किसी भी समय नोटिस की शर्तों का पालन करने में असफल रहता है या अपनी पहचान बताने के लिये अनिच्छुक है, वहाँ पुलिस अधिकारी, सक्षम न्यायालय द्वारा इस संबंध में पारित आदेशों के अधीन रहते हुए, नोटिस में उल्लिखित अपराध के लिये उसे गिरफ्तार कर सकेगा। |
(6) जहाँ ऐसा व्यक्ति किसी भी समय नोटिस की शर्तों का पालन करने में असफल रहता है या अपनी पहचान बताने के लिये अनिच्छुक है, वहाँ पुलिस अधिकारी, सक्षम न्यायालय द्वारा इस संबंध में पारित आदेशों के अधीन रहते हुए, नोटिस में उल्लिखित अपराध के लिये उसे गिरफ्तार कर सकेगा। |
(7) किसी ऐसे अपराध के मामले में, जो तीन वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय है और ऐसा व्यक्ति अशक्त है या साठ वर्ष से अधिक आयु का है, पुलिस उपाधीक्षक से निम्न पद के अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। |
- यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि CrPC के अधीन पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने का नोटिस धारा 41 A में निहित है तथा गिरफ्तारी के आधार धारा 41 में उल्लिखित हैं। हालाँकि BNSS के अधीन इन दोनों प्रावधानों को BNSS की धारा 35 के अधीन समाहित कर दिया गया है।
- धारा 35 (7) के रूप में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है।
- BNSS की धारा 35 (7) में प्रावधान है कि पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे के अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं की जाएगी:
- इस अपराध के लिये तीन वर्ष से कम की सज़ा का प्रावधान है; तथा
- ऐसा व्यक्ति अशक्त हो या उसकी आयु साठ वर्ष से अधिक हो।