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सांविधानिक विधि
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (1) और गिरफ्तारी के बारे में सूचित किये जाने का अधिकार
«10-Feb-2025
विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य “जब किसी व्यक्ति को बिना वारण्ट के गिरफ्तार किया जाता है, और गिरफ्तारी के पश्चात् यथाशीघ्र उसे गिरफ्तारी के आधारों की सूचना नहीं दी जाती है, तो यह अनुच्छेद 21 के अधीन प्रतिभूत उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा”। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह |
स्रोत:उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अभिनिर्धारित किया कि मजिस्ट्रेट को यह पता लगाना चाहिये कि भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 22 (1) का अनुपालन किया गया है या नहीं? इसका कारण यह है कि अनुपालन न होने के कारण गिरफ्तारी अवैध हो जाती है और इसलिये गिरफ्तारी अवैध होने के पश्चात् गिरफ्तार व्यक्ति को रिमाण्ड पर नहीं लिया जा सकता ।
- उच्चतम न्यायालय ने विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया ।
विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपील में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के विद्वान एकल न्यायाधीश द्वारा पारित 30 अगस्त 2024 के निर्णय और आदेश को चुनौती दी गई है ।
- अपीलकर्त्ता को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 120-ख सपठित धारा 409, 420, 467, 468 और 471 के अधीन अपराधों के लिये 25 मार्च 2023 को पंजीकृत प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 121/2023 के संबंध में गिरफ्तार किया गया था ।
- अपीलकर्त्ता के अनुसार, उसे 10 जून 2024 को सुबह 10:30 बजे हुडा सिटी सेंटर, गुरुग्राम, हरियाणा स्थित उसके कार्यालय से गिरफ्तार किया गया और डीएलएफ पुलिस थाना, सेक्शन 29, गुरुग्राम ले जाया गया ।
- अपीलकर्त्ता को कथित तौर पर 11 जून 2024 को अपराह्न 3:30 बजे गुड़गाँव में विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रभारी) के समक्ष पेश किया गया, जिससे संविधान के अनुच्छेद 22(2) और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 57 के उल्लंघन का दावा किया गया ।
- अपीलकर्त्ता का दावा है कि न तो रिमाण्ड रिपोर्ट और न ही 11 जून 2024 के आदेश में गिरफ्तारी के समय का उल्लेख किया गया है ।
- यद्यपि, प्रथम प्रतिवादी का दावा है कि अनुच्छेद 22(2) के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए अपीलकर्त्ता को 10 जून 2024 को शाम 6:00 बजे गिरफ्तार किया गया था ।
- 4 अक्टूबर 2024 को दिये गए आदेश में अभिलिखित है कि अपीलकर्त्ता को गिरफ्तारी के पश्चात् पीजीआईएमएस, रोहतक में भर्ती कराया गया था ।
- अपीलकर्त्ता के अधिवक्ता ने तस्वीरें प्रस्तुत कीं, जिनमें दर्शित किया गया कि अस्पताल में भर्ती होने के दौरान उसे हथकड़ी और जंजीरों से बाँधकर बिस्तर पर रखा गया था ।
- परिणामस्वरूप, 4 अक्टूबर 2024 को पीजीआईएमएस के चिकित्सा अधीक्षक को एक नोटिस जारी किया गया, जिसमें एक शपथ-पत्र मांगा गया कि क्या अपीलकर्त्ता को हथकड़ी और जंजीर लगाई गई थी?
- 21 अक्टूबर 2024 के आदेश में चिकित्सा अधीक्षक की यह स्वीकारोक्ति अभिलिखित है कि अपीलकर्त्ता को वास्तव में हथकड़ी और जंजीर लगाई गई थी ।
- 24 अक्टूबर 2024 को, श्री अभिमन्यु, एचपीएस, सहायक पुलिस आयुक्त, ईओडब्ल्यू I और II, गुरुग्राम, हरियाणा ने एक शपथ-पत्र दायर कर पुष्टि की, कि अपीलकर्त्ता को पीजीआईएमएस ले जाने वाले अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था ।
- निलंबित अधिकारियों के विरुद्ध 23 अक्टूबर 2024 को पुलिस उपायुक्त द्वारा विभागीय जांच शुरू की गई ।
- अतः एक रिट याचिका दायर की गई जिसमें यह दावा किया गया कि अपीलकर्त्ता को गिरफ्तारी के आधार या गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित नहीं किया गया था ।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने प्रेक्षित किया कि भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 22 (1) के अनुसार गिरफ्तारी के आधार को गिरफ्तार व्यक्ति को प्रभावी ढंग से और संपूर्ण रूप में बताया जाना चाहिये ।
- इसके अतिरिक्त, गिरफ्तारी के आधार को उस भाषा में बताया जाना चाहिये जिसे गिरफ्तार व्यक्ति समझ सके ।
- आगे न्यायालय ने प्रेक्षित किया कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों को सूचित करना औपचारिकता नहीं, अपितु एक अनिवार्य सांविधानिक आवश्यकता है ।
- गिरफ्तार किये गए और निरोध में रखे गए प्रत्येक व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है कि उसे गिरफ्तारी के आधार के बारे में यथाशीघ्र सूचित किया जाए ।
- जब किसी व्यक्ति को बिना वारण्ट के गिरफ्तार किया जाता है, और गिरफ्तारी के पश्चात् यथाशीघ्र उसे गिरफ्तारी के आधारों को सूचित नहीं किया जाता है, तो यह अनुच्छेद 21 के अधीन गारंटीकृत उसके मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा ।
- यदि गिरफ्तारी के कारणों को यथाशीघ्र सूचित करने की आवश्यकता का अनुपालन करने में विफलता होती है, तो गिरफ्तारी को अमान्य माना जाता है । एक बार गिरफ्तारी के अमान्य घोषित कर दिये जाने के पश्चात्, गिरफ्तार व्यक्ति एक सेकंड के लिये भी निरोध में नहीं रह सकता है ।
- एक बार जब अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन के कारण गिरफ्तारी को असांविधानिक घोषित कर दिया जाता है, तो गिरफ्तारी स्वयं दोषपूर्ण हो जाती है और रिमाण्ड के आदेश के आधार पर ऐसे व्यक्ति का निरंतर निरोध भी दोषपूर्ण हो जाता है ।
- न्यायालय ने एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की, कि आरोप-पत्र दाखिल करना और संज्ञान लेना गिरफ्तारी को वैध नहीं ठहराएगा, जो कि स्वयं असांविधानिक है तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 का उल्लंघन है ।
- आगे न्यायालय ने स्पष्ट किया कि व्यक्ति को पुनः गिरफ्तार किया जा सकता है ।
- यह भी कि, जब कोई गिरफ्तार व्यक्ति न्यायालय के समक्ष यह दलील देता है कि गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए, तो अनुच्छेद 22(1) के अनुपालन को साबित करने का भार पुलिस पर होता है ।
- आगे न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि मजिस्ट्रेट पर यह पता लगाने का कर्त्तव्य आरोपित किया गया है कि अनुच्छेद 22 (1) का अनुपालन किया गया है या नहीं? इसका कारण यह है कि अनुपालन न करने के कारण गिरफ्तारी अवैध हो जाती है और इसलिये गिरफ्तारी अवैध होने के पश्चात् गिरफ्तार व्यक्ति को रिमाण्ड पर नहीं लिया जा सकता ।
- मौलिक अधिकारों को कायम रखना न्यायालय का कर्त्तव्य है ।
- इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया कि पत्नी को गिरफ्तारी के आधार संसूचित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) का वैध अनुपालन नहीं है ।
- अतः न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि मामले के तथ्यों को देखते हुए, न्यायालय को यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि अपीलकर्त्ता की गिरफ्तारी अवैध थी, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अधीन अपीलकर्त्ता को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित नहीं किया गया था ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अधीन उपलब्ध अधिकार क्या हैं?
- भारतीय संविधान, 1950 का अनुच्छेद 22(1) एक मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जो गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित किये जाने के अधिकार की गारंटी देता है ।
- इसमें अभिकथित किया गया है कि गिरफ्तार और निरोध में रखे गए किसी भी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाना चाहिये तथा उसे अपनी पसंद के विधिक अधिवक्ता से परामर्श करने और प्रतिरक्षा करने का अधिकार होना चाहिये ।
- यह प्रावधान गिरफ्तारी और निरोध में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है तथा मनमाने या अवैध निरोध को रोकता है ।
- इसके अतिरिक्त, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 में यह प्रावधान है कि गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार और जमानत के अधिकार के बारे में सूचित किया जाना चाहिये ।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 47, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 में उपबंधित प्रावधानों को दोहराती है ।
इस मामले में न्यायालय द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 पर कौन-से महत्त्वपूर्ण बिंदु अभिनिर्धारित किये गए हैं?
- इस मामले में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 पर अभिनिर्धारित महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं:
- गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों को सूचित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) की अनिवार्य आवश्यकता है ।
- गिरफ़्तारी के आधारों की जानकारी गिरफ़्तार व्यक्ति को इस तरह से दी जानी चाहिये कि आधारों को बनाने वाले बुनियादी तथ्यों की पर्याप्त जानकारी गिरफ़्तार व्यक्ति को दी जाए और उसे उस भाषा में प्रभावी ढंग से संप्रेषित की जाए जिसे वह समझता है । संप्रेषण का तरीका और विधि ऐसी होनी चाहिये जिससे सांविधानिक सुरक्षा का उद्देश्य प्राप्त हो सके ।
- जब गिरफ्तार अभियुक्त अनुच्छेद 22(1) की आवश्यकताओं का अनुपालन न करने का आरोप लगाता है, तो अनुच्छेद 22(1) की आवश्यकताओं के अनुपालन को साबित करने का भार सदैव अन्वेषण अधिकारी/अभिकरण पर होगा ।
- अनुच्छेद 22(1) का पालन न करना अभियुक्त के उस अनुच्छेद द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा । आगे, यह संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा । इसलिये, अनुच्छेद 22(1) की आवश्यकताओं का पालन न करना अभियुक्त की गिरफ्तारी को अमान्य करता है ।
- अतः आपराधिक न्यायालय द्वारा रिमाण्ड के लिये पारित किये गए प्रतिप्रेषण के आदेश भी अमान्य हैं । यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इससे अन्वेषण, आरोप-पत्र और विचारण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
- परंतु साथ ही, आरोप-पत्र दाखिल करना अनुच्छेद 22(1) के अधीन सांविधानिक जनादेश के उल्लंघन को वैध नहीं मानेगा ।
- जब किसी गिरफ्तार व्यक्ति को रिमाण्ड के लिये न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट का यह कर्त्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अनुच्छेद 22(1) और अन्य अनिवार्य सुरक्षा उपायों का अनुपालन किया गया है या नहीं; तथा
- जब अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन सिद्ध हो जाता है, तो न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह अभियुक्त को तत्काल रिहा करने का आदेश दे । यह जमानत देने का आधार होगा, भले ही जमानत देने पर वैधानिक प्रतिबंध मौजूद हों । संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 का उल्लंघन सिद्ध होने पर न्यायालय की जमानत देने की शक्ति पर वैधानिक प्रतिबंध प्रभाव नहीं डालते ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) पर ऐतिहासिक मामले क्या हैं?
- पंकज बंसल बनाम भारत संघ (2024):
- संविधान के अनुच्छेद 22(1) में अन्य बातों के साथ-साथ यह प्रावधान है कि गिरफ्तार किये गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों की यथाशीघ्र सूचना दिये बिना निरोध में नहीं रखा जाएगा ।
- चूँकि यह गिरफ्तार व्यक्ति को दिया गया मौलिक अधिकार है, इसलिये गिरफ्तारी के आधार को सूचित करने का तरीका आवश्यक रूप से सार्थक होना चाहिये ताकि इच्छित उद्देश्य की पूर्ति हो सके ।
- प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) (2024):
- न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि किसी अपराध के संबंध में गिरफ्तार व्यक्ति या निवारक निरोध में रखे गए व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) और 22(5) के अधीन गिरफ्तारी या निरोध के आधार को लिखित रूप में बताने की आवश्यकता पवित्र है और किसी भी स्थिति में इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है ।
- इस सांविधानिक आवश्यकता और वैधानिक आदेश का पालन न करने पर, यथास्थिति, निरोध या अभिरक्षा को अवैध माना जाएगा |