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आपराधिक कानून

भोपाल गैस त्रासदी

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 12-Dec-2024

आलोक प्रताप सिंह (मृतक) रेम बनाम भारत संघ एवं अन्य

“भोपाल गैस त्रासदी के 40 वर्ष बाद, उच्च न्यायालय ने अधिकारियों की सुस्ती की आलोचना की और यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री साइट से ज़हरीले अपशिष्ट के तत्काल निपटान का आदेश दिया।”

मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन 

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री साइट से ज़हरीले अपशिष्ट को न हटाना एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ ने विलंब पर कड़ी असहमति जताई है। भोपाल गैस त्रासदी के 40 वर्ष बाद, न्यायालय ने तत्काल सफाई का आदेश दिया और चार सप्ताह के भीतर अनुपालन सुनिश्चित न होने पर ज़िम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध अवमानना ​​के आरोपों सहित सख्त कार्रवाई की धमकी दी। वर्ष 2004 से स्वीकृत योजना और संविदा प्रदान करने सहित कई निर्देशों के बावजूद, बहुत कम प्रगति हुई है, जिससे सार्वजनिक सुरक्षा और संभावित पर्यावरणीय खतरों के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।

आलोक प्रताप सिंह (मृतक) रेम बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री साइट, जो 40 वर्ष पहले घटित कुख्यात भोपाल गैस त्रासदी का स्थान था।
  • भोपाल गैस त्रासदी पर न्यायालय द्वारा वर्ष 1989, 1991 और 2023 में कई निर्णय पारित किये गए हैं।
  • वर्तमान जनहित याचिका (PIL) मूल रूप से वर्ष 2004 में दायर की गई थी, जिसका उद्देश्य फैक्ट्री साइट पर अभी भी मौजूद ज़हरीले अपशिष्ट और रसायनों के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों की लगातार निष्क्रियता को बताना था।
  • इस मामले में मुख्य मुद्दे निम्नलिखित हैं:
    • व्यापक विषाक्त संदूषण: हज़ारों टन विषाक्त अपशिष्ट और खतरनाक रसायन परित्यक्त यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री साइट पर अभी भी फेंके गए हैं, जिससे आसपास के भोपाल शहर के लिये पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।
    • लंबे समय से सरकारी निष्क्रियता: अनेक न्यायालयों के निर्देशों तथा मूल जनहित याचिका दायर होने के लगभग दो दशक बीत जाने के बावजूद, साइट की सफाई तथा विषाक्त पदार्थों को हटाने में न्यूनतम प्रगति हुई है।
    • वित्तीय आवंटन और संविदात्मक देरी: केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को धनराशि प्रदान की है, जिसमें से राज्य को कथित तौर पर 126 करोड़ रुपए मिले हैं। 23 सितंबर, 2021 को अपशिष्ट हटाने का ठेका दिया गया और ठेकेदार को संविदा राशि का 20% भुगतान किया गया। हालाँकि, सफाई प्रक्रिया शुरू करने के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
    • पर्यावरणीय खतरा: विषाक्त अपशिष्ट आसपास की मिट्टी और भूजल को दूषित कर रहा है, जिससे स्थानीय आबादी की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिये खतरा बना हुआ है।
  • कानूनी कार्यवाही में कई हितधारक शामिल हैं, जिनमें भारत संघ, मध्य प्रदेश राज्य सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न वकालत समूह शामिल हैं।
  • जनहित याचिका में सरकारी प्राधिकारियों को पर्यावरण कानूनों के तहत अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करने तथा ज़हरीले अपशिष्ट को साफ करने और यूनियन कार्बाइड फैक्टरी साइट को संदूषित करने के लिये व्यापक उपचारात्मक उपाय करने के लिये बाध्य करने की मांग की गई है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने इस मुकदमे की लंबी प्रकृति पर गंभीरता से विचार करते हुए कहा कि वर्ष 2004 में जनहित याचिका दायर किये जाने के बावजूद, लगभग 20 वर्ष बीत चुके हैं और प्रतिवादी पर्यावरणीय खतरे से निपटने के प्रारंभिक चरण में ही हैं।
  • उच्च न्यायालय ने संयंत्र साइट से विषाक्त अपशिष्ट को हटाने, MIC और सेविन संयंत्रों को बंद करने तथा आसपास की मिट्टी और भूजल में फैले प्रदूषकों से निपटने को भोपाल शहर में सार्वजनिक सुरक्षा के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताया है।
  • न्यायालय ने निरंतर निष्क्रियता की स्थिति पर महत्त्वपूर्ण न्यायिक अप्रसन्नता व्यक्त की तथा कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों के कई निर्देशों के बावजूद, संविदा दिये जाने और धन आवंटित किये जाने के बाद भी, विषाक्त अपशिष्ट/सामग्री को हटाने के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
  • न्यायिक पीठ ने कहा कि यदि तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की गई तो एक और पर्यावरणीय त्रासदी की संभावना है। उन्होंने मूल भोपाल गैस त्रासदी की 40वीं वर्षगाँठ पर मामले की गंभीरता को रेखांकित किया।
  • न्यायालय ने सरकारी जवाबों में विसंगतियाँ पाईं तथा केन्द्र सरकार के इस दावे पर गौर किया कि उसने राज्य सरकार को अपना हिस्सा दे दिया है, जबकि राज्य सरकार ने दावा किया कि उसे 126 करोड़ रुपए प्राप्त हो गए हैं तथा उसने ठेका भी दे दिया है, फिर भी कोई सार्थक कार्रवाई शुरू नहीं की गई है।
  • न्यायिक टिप्पणियों में उठाए गए न्यूनतम कदमों की तीखी आलोचना की गई तथा सरकारी प्रतिक्रिया को अपर्याप्त बताया गया तथा कहा गया कि निरंतर विलंब और निष्क्रियता के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
  • न्यायालय ने व्यापक पर्यावरणीय सुधार की आवश्यकता, पर्यावरण कानूनों के तहत राज्यों के कानूनी दायित्वों और विषाक्त पदार्थों के सुरक्षित निपटान की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को स्पष्ट रूप से मान्यता दी।
  • पीठ ने विशिष्ट समयसीमा के मुद्दों पर ध्यान दिया और कहा कि राज्य सरकार द्वारा 20 मार्च, 2024 को प्रस्तुत योजना में सफाई के लिये न्यूनतम 185 दिन और अधिकतम 377 दिन का समय दर्शाया गया था, फिर भी कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

भोपाल गैस त्रासदी का समय क्या था?

एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (1986)

तथ्य:

  • श्रीराम फूड्स एंड फर्टिलाइज़र इंडस्ट्रीज़ का संयंत्र घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित था, जिसके 3 किलोमीटर के दायरे में लगभग 200,000 लोग निवास करते थे।
  • दिसंबर 1985 में संयंत्र से ओलियम गैस के रिसाव की घटनाएँ हुईं, जिससे वहाँ के निवासी प्रभावित हुए तथा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
  • संयंत्र वर्ष 1949 में चालू किया गया था, और इसके सुरक्षा उपायों को वर्ष 1985 में भोपाल आपदा तक अद्यतन नहीं किया गया था।
  • संयंत्र की सुरक्षा का आकलन करने और सुधार सुझाने के लिये कई विशेषज्ञ समितियाँ गठित की गईं।
  • इस मामले में मुद्दा यह था कि क्या घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित श्रीराम फूड्स एंड फर्टिलाइज़र इंडस्ट्रीज़ के कास्टिक क्लोरीन संयंत्र को समुदाय के लिये संभावित खतरे और जोखिम को देखते हुए पुनः शुरू किया जा सकता है?

टिप्पणी:

  • न्यायालय ने क्लोरीन गैस रिसाव के खतरे तथा इसके गंभीर परिणामों की संभावना को स्वीकार किया।
  • न्यायालय को श्रीराम प्रबंधन द्वारा संयंत्र के रखरखाव और संचालन में लापरवाही के सबूत मिले।
  • न्यायालय ने सुरक्षा उपायों और विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के पालन के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
  • न्यायालय ने माना कि दीर्घकालिक समाधान संयंत्र को स्थानांतरित करने में निहित है, लेकिन परिचालन पुनः आरंभ करने के संबंध में तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता को भी स्वीकार किया।
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने इस मामले में पूर्ण दायित्व के सिद्धांत को स्पष्ट रूप से मान्यता दी, जिसके अनुसार जो लोग खतरनाक गतिविधियों में संलग्न हैं, वे किसी भी प्रकार की हानि के लिये उत्तरदायी हैं, चाहे गलती किसी की भी हो।

यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ (UOI) एवं अन्य (1989)

तथ्य:

  • 3 दिसंबर, 1984 को भारत के भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कीटनाशक संयंत्र में भयावह गैस रिसाव हुआ।
  • भारी मात्रा में ज़हरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस निकली, जिसने संयंत्र के आसपास के घनी आबादी वाले क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले लिया।
  • इसका तात्कालिक प्रभाव विनाशकारी था, जिसमें हज़ारों लोगों की जान चली गई तथा अनगिनत लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।
  • इसके दीर्घकालिक परिणाम भी उतने ही दुखद रहे हैं, तथा बचे हुए लोगों को लगातार स्वास्थ्य समस्याओं और पर्यावरण प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है।
  • इसके बाद कानूनी लड़ाइयाँ शुरू हो गईं और भारतीय तथा अमेरिकी दोनों न्यायालयों में मामले दायर किये गए।
  • अंततः वर्ष 1989 में समझौता हो गया, लेकिन पीड़ितों को प्रदान किया गया मुआवज़ा अपर्याप्त बताकर उसकी व्यापक आलोचना की गई।

टिप्पणी:

  • भोपाल गैस रिसाव त्रासदी के पीड़ितों के लिये न्यायालय द्वारा अनुमोदित समझौता निम्नलिखित विचारों पर आधारित था:
    • पीड़ित व्यक्तियों को तत्काल अनुतोष।
    • न्यायिक प्रक्रिया में निहित अनिश्चितताएँ और विलंब।
    • मृत्यु और गंभीर व्यक्तिगत चोटों की संख्या का प्रथम दृष्टया अनुमान।
    • आपदा की प्रकृति के कारण मुआवज़े के उच्च मानकों को लागू करने की आवश्यकता।
  • न्यायालय ने अति-खतरनाक प्रौद्योगिकियों और सख्त दायित्व से संबंधित व्यापक कानूनी सिद्धांतों को संबोधित करने में समझौते की सीमाओं को स्वीकार किया।
  • न्यायालय ने ऐसे खतरनाक कार्यों से सुरक्षा के लिये एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने के महत्त्व पर बल दिया है।

यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ (UOI) एवं अन्य (1991)

तथ्य:

  • यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी (IRCS) के माध्यम से पीड़ितों को अंतरिम अनुतोष के रूप में 5 मिलियन डॉलर की पेशकश की।
  • एक अमेरिकी न्यायालय के आदेश में निर्देश दिया गया कि यह राशि अंतिम निपटान में जमा कर दी जाएगी।
  • बाद में, भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड के साथ 470 मिलियन डॉलर में मामला सुलझा लिया।
  • IRCS ने दावा किया कि 5 मिलियन डॉलर एक अलग निधि थी और समझौते का हिस्सा नहीं थी।

न्यायालय की टिप्पणी:

  • अमेरिकी न्यायालय के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि 5 मिलियन डॉलर किसी अंतिम निर्णय के विरुद्ध अग्रिम भुगतान या ऋण था।
  • निधि की प्रकृति के संबंध में IRCS और अमेरिकन रेड क्रॉस के बीच किसी भी समझौते से अमेरिकी न्यायालय के आदेश में कोई बदलाव नहीं होगा।
  • न्यायालय ने IRCS की अर्ज़ी खारिज कर दी।
  • 5 मिलियन डॉलर का बचा हुआ हिस्सा भोपाल गैस अनुतोष कोष का हिस्सा बन जाता है।

यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ (UOI) एवं अन्य (2023)

तथ्य:

  • भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) के विरुद्ध अमेरिका में मुकदमा दायर किया, लेकिन मामला खारिज कर दिया गया और विवाद भारतीय न्यायालयों में स्थानांतरित हो गया।
  • वर्ष 1989 में एक समझौता हुआ, जिसमें UCC ने पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिये भारत सरकार को 470 मिलियन डॉलर का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की।
  • भारत संघ ने उस मामले को फिर से खोलने और बढ़े हुए मुआवज़े की मांग करने के लिये यह मुकदमा दायर किया।

टिप्पणी:

  • न्यायालय ने परिस्थितियों और तत्काल अनुतोष की आवश्यकता को देखते हुए समझौता राशि को उचित माना।
  • न्यायालय ने भविष्य में पीड़ितों द्वारा दावे की संभावना को स्वीकार किया, जिनमें बाद में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • न्यायालय ने भारत सरकार पर यह ज़िम्मेदारी डाली कि वह पीड़ितों को पर्याप्त मुआवज़ा प्रदान करे, भले ही निपटान राशि अपर्याप्त साबित हो।
  • न्यायालय ने कानूनी मामलों में अंतिमता के महत्त्व पर ज़ोदिया, विशेषकर उन मामलों में जिनमें विलंब होता है।
  • न्यायालय ने भारत संघ द्वारा दायर सुधारात्मक याचिकाओं को खारिज कर दिया, क्योंकि वे वैध कानूनी आधार पर आधारित नहीं थीं और अंतिमता तथा पूर्वन्याय के सिद्धांतों को कमज़ोर करतीं।
  • न्यायालय ने वर्ष 1989 के समझौते को बरकरार रखा, तथा मामले को फिर से खोलने के भारत संघ के प्रयास को खारिज कर दिया। न्यायालय ने अंतिम निर्णय की आवश्यकता तथा पीड़ितों को तत्काल अनुतोष प्रदान करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।