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आपराधिक कानून

यौन हमला सिद्ध करने हेतु शारीरिक चोटों की भूमिका

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 20-Jan-2025

दलीप कुमार उर्फ दल्ली बनाम उत्तरांचल राज्य

"यह एक आम मिथक है कि यौन उत्पीड़न के बाद चोटें लगना स्वाभाविक है। पीड़ित व्यक्ति आघात के प्रति अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं, जो डर, सदमे, सामाजिक कलंक या असहायता की भावना जैसे कारकों से प्रभावित होते हैं।"

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय एवं न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने दोहराया कि यौन उत्पीड़न सिद्ध करने के लिये शारीरिक चोटें आवश्यक नहीं हैं।

  • उच्चतम न्यायालय ने दिलीप कुमार उर्फ ​​दल्ली बनाम उत्तरांचल राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

दिलीप कुमार उर्फ दल्ली बनाम उत्तरांचल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अभियोक्त्री (जवाहरी लाल की बेटी, PW-1) का कथित तौर पर 18 मार्च 1998 को लगभग 3:00 बजे व्यपहरण किया गया था। 
  • दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) घटना के 24 घंटे से अधिक समय बाद 19.03.1998 को शाम 7:00 बजे दर्ज की गई थी।
  • अपीलकर्त्ता दलीप कुमार उर्फ ​​दल्ली का नाम FIR में नहीं था, लेकिन बाद में उन पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 363, 366-A, 366, 376 के साथ 149 एवं 368 के अधीन आरोप लगाए गए। 
  • अभियोक्त्री ने अपने अभिकथन में कहा कि:
    • अपीलकर्त्ता के साथ विवाह की बातचीत चल रही थी, लेकिन जातिगत मतभेदों के कारण उसके पिता ने इसका विरोध किया।
    • वह स्वेच्छा से अपीलकर्त्ता के साथ गई थी तथा कथित व्यपहरण के दौरान उसने कोई शोर नहीं मचाया।
  • इसके अतिरिक्त, सरिता जो अभियोक्त्री की छोटी बहन थी तथा जिसने उसे अपीलकर्त्ता के साथ जाते हुए देखा था, उसे साक्षी के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि प्रस्तुत किये गए चिकित्सा साक्ष्य से पता चला है कि अभियोक्त्री पर चोट या यौन हमले के कोई निशान नहीं थे।
  • इसके अतिरिक्त, अभियोक्त्री की उम्र 16-18 वर्ष के बीच होने का अनुमान लगाया गया था।
  • अधीनस्थ न्यायालयों ने निम्नलिखित निर्णय दिये:
    • ट्रायल कोर्ट ने यौन उत्पीड़न (धारा 376) सहित अधिक गंभीर आरोपों से आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। हालाँकि अपीलकर्त्ता एवं एक अन्य आरोपी को धारा 363 (व्यपहरण) और 366-A (अप्राप्तवय लड़की को अवैध संभोग के लिये प्रेरित करना) के अधीन दोषी ठहराया गया। 
    • उच्च न्यायालय ने धारा 363 एवं 366-A के अधीन अपीलकर्त्ता की सजा को यथावत रखा।
  • इस प्रकार, सजा के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • यौन उत्पीड़न को सिद्ध करने के लिये शारीरिक चोट के संबंध में न्यायालय ने माना कि यौन उत्पीड़न को सिद्ध करने के लिये शारीरिक चोट आवश्यक नहीं है।
  • उपर्युक्त के संबंध में, न्यायालय ने रूढ़िवादिता पर उच्चतम न्यायालय की पुस्तिका का उदाहरण दिया।
  • न्यायालय ने कहा कि यह एक आम मिथक है कि यौन उत्पीड़न से चोट लगनी ही चाहिये, हालाँकि, पीड़ित भय, सदमे, सामाजिक कलंक या असहायता की भावनाओं जैसे कारकों से प्रभावित होकर विभिन्न तरीकों से आघात का परिणाम दर्शाते हैं।
  • वर्तमान तथ्यों में न्यायालय ने पाया कि अभियोक्त्री ने स्वयं यह प्रमाणित किया है कि उसे अपीलकर्त्ता द्वारा बलपूर्वक नहीं ले जाया गया था। इस प्रकार, IPC की धारा 366 A की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये तत्त्व पर्याप्त नहीं हैं। 
  • इसके अतिरिक्त, एक अन्य महत्त्वपूर्ण साक्षी सरिता को अभियोजन पक्ष द्वारा रोक लिया गया था तथा अभियोक्त्री की आयु 18 वर्ष होने की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है। 
  • इसलिये, अभियोजन पक्ष IPC की धारा 366 A एवं धारा 363 के तत्त्वों को सिद्ध करने में विफल रहा।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत यौन हमला क्या है?

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अध्याय V में महिलाओं एवं बच्चों के विरुद्ध अपराधों का उल्लेख किया गया है। 
  • BNS की धारा 74 में महिला की शील भंग करने के आशय से उस पर हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के अपराध का प्रावधान है। 

BNS की धारा 74 के तत्त्व इस प्रकार हैं:

  • निषिद्ध कार्य:
    • किसी महिला के विरुद्ध हमला या आपराधिक बल का प्रयोग निषिद्ध है, यदि यह विशिष्ट आशय या ज्ञान के साथ किया गया हो।
    • आशय या ज्ञान:
      • अपराधी को या तो:
        • महिला की शील भंग करने का आशय रखना, या
        • इस ज्ञान के साथ कि उनके कार्यों से उसकी शील भंग होने की संभावना है।
  • सज़ा:
    • कारावास:
      • न्यूनतम अवधि: 1 वर्ष। 
      • अधिकतम अवधि: 5 वर्ष।
    • अर्थदण्ड:
      • अपराधी को अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • उद्देश्य:
    • इस धारा का उद्देश्य महिलाओं की गरिमा, शील एवं व्यक्तिगत अखंडता की रक्षा करना है, तथा ऐसे कृत्यों को अपराध घोषित करना है जो उनकी शील का उल्लंघन करते हैं।
  • गैर-शमनीय अपराध:
    • इस धारा के अंतर्गत अपराध का समाधान पक्षों के बीच आपसी समझौते से नहीं किया जा सकता तथा इसे गंभीर प्रकृति का माना जाता है।
  • लिंग-विशिष्ट संरक्षण:
    • यह विधान विशेष रूप से महिलाओं के विरुद्ध किये गए अपराधों से संबंधित है।

उच्चतम न्यायालय की रूढ़िवादी पुस्तिका में यौन हमले के संबंध में क्या दिशानिर्देश दिये गए हैं?

  • लैंगिक रूढ़िवादिता पर पुस्तिका भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा विधिक भाषा एवं निर्णयों में उल्लिखित लैंगिक रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने एवं उसका सामना करने में न्यायाधीशों एवं विदि विशेषज्ञों की सहायता करने के आशय से जारी की गई है। 
  • पुस्तिका में यौन हमले के विषय में उल्लिखित कुछ रूढ़िवादिताएँ इस प्रकार हैं:

रूढ़िवादिता

वास्तविकता

पुरुषों द्वारा यौन हमला या बलात्संग की शिकार महिलाएँ लगातार रोती रहती हैं और उदास या आत्महत्या करने की सोचती हैं। अगर किसी महिला का व्यवहार इस सांचे के अनुरूप नहीं है, तो वह बलात्संग के विषय में झूठ बोल रही है।

अलग-अलग लोग दर्दनाक घटनाओं पर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण के लिये, माता-पिता की मृत्यु के कारण एक व्यक्ति सार्वजनिक रूप से रो सकता है जबकि इसी तरह की स्थिति में दूसरा व्यक्ति सार्वजनिक रूप से कोई भावना प्रदर्शित नहीं कर सकता है। इसी तरह, किसी पुरुष द्वारा यौन उत्पीड़न या बलात्संग किये जाने पर एक महिला की प्रतिक्रिया उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर भिन्न हो सकती है। कोई भी “सही” या “उचित” तरीका नहीं है जिससे कोई पीड़ित या पीड़ित व्यवहार करे।

जिन महिलाओं पर पुरुषों द्वारा यौन हमला या बलात्संग कारित किया जाता है, वे तुरंत ही अन्याय की शिकायत करती हैं। अगर वे कुछ समय बाद शिकायत करती हैं, तो वे झूठ बोल रही होती हैं।

यौन अपराध की रिपोर्ट करने के लिये साहस एवं शक्ति की आवश्यकता होती है क्योंकि इससे कलंक जुड़ा होता है। यौन हिंसा से जुड़े कलंक के कारण महिलाओं के लिये दूसरों को घटना के विषय में उल्लेख करना कठिन हो जाता है।

किसी पुरुष के लिये किसी सेक्स वर्कर के साथ बलात्संग करना संभव नहीं है।

किसी पुरुष द्वारा सेक्स वर्कर का बलात्संग करना संभव है। सेक्स वर्कर अपने पेशे के कारण किसी भी या सभी पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने के लिये सहमति नहीं देते हैं। बलात्संग का अपराध तब भी हो सकता है जब सेक्स वर्कर किसी भी कारण से सहमति न दे, जिसमें यह कारण भी शामिल है कि पुरुष उसे भुगतान करने के लिये तैयार नहीं था। सेक्स वर्कर उन समूहों में से एक हैं जो यौन हिंसा के लिये सबसे अधिक संवेदनशील हैं।

बलात्संग एक ऐसा अपराध है जो पीड़िता/उत्तरजीवी या उसके परिवार के सम्मान को कलंकित करता है। लेकिन यदि बलात्संगी पीड़िता/उत्तरजीवी से विवाह कर लेता है तो उसका सम्मान बहाल हो जाता है।

बलात्संग से पीड़िता या उसके परिवार की इज्जत पर दाग नहीं लगता। बलात्संगी का पीड़िता से विवाह करने से इज्जत बहाल नहीं होती। बल्कि, इससे पीड़िता/पीड़ित के दुख में और बढ़ोत्तरी होता है तथा बलात्संगी को और हिंसा करने के लिये बढ़ावा मिलता है। विवाह बलात्संग की हिंसा का उपाय नहीं है। बलात्संग एक आपराधिक अपराध है, जिसे विवाह से बदला नहीं जा सकता।

पुरुष अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते।

पुरुष, अन्य सभी मनुष्यों की तरह, अपनी यौन इच्छाओं सहित अपने सभी कार्यों पर नियंत्रण रखते हैं। इस तरह के तर्क पुरुषों की एजेंसी को कम आंकते हैं तथा फिर इस कथित एजेंसी की कमी को बहाना बनाते हैं।

किसी महिला के साथ, जिसने पहले यौन संबंध बनाए हों, बलात्संग नहीं किया जा सकता क्योंकि उसकी “नैतिकताएँ दोषपूर्ण” या “चरित्र दूषित” है।

जो महिला एक पुरुष के साथ यौन क्रियाकलाप के लिये सहमति देती है, वह सभी पुरुषों के साथ यौन क्रियाकलाप के लिये सहमति नहीं देती।