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आपराधिक कानून
घृणास्पद भाषण रोकना आवश्यक है
« »18-Aug-2023
"दिल्ली उच्च न्यायालय महिला वकील फोरम (Delhi High Court Women Lawyers Forum (WLF) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ के समक्ष एक पत्र याचिका प्रस्तुत की, जिसमें नूंह जिले सहित हरियाणा में घृणास्पद भाषणों के मामलों में हस्तक्षेप की मांग की गई।"
स्रोतः टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय महिला वकील फोरम (Delhi High Court Women Lawyers Forum (WLF) की दिल्ली और गुड़गांव में प्रैक्टिस करने वाली 101 महिला वकीलों ने नूंह सहित पूरे हरियाणा में विभिन्न स्थानों पर नफरत भरे भाषणों की हालिया घटनाओं के मामले में उच्चतम न्यायालय (SC) के हस्तक्षेप की मांग करने के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ को एक पत्र याचिका सौंपी है।
हरियाणा हिंसा (Haryana Violence)
- 31 जुलाई 2023 को, विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित वार्षिक ब्रजमंडल यात्रा तीर्थयात्रा के दौरान मुसलमानों और हिंदुओं के बीच हरियाणा के नूंह जिले में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी।
- नूंह मेवात क्षेत्र का हिस्सा है, जो मेव समुदाय का घर है, जिन्होंने मुस्लिम काल के दौरान इस्लाम अपना लिया था।
- हरियाणा के नूंह में ब्रजमंडल यात्रा जिले में पवित्र हिंदू स्थलों को पुनर्जीवित करने के लिये तीन साल पहले विश्व हिंदू परिषद द्वारा शुरू की गई थी।
- हमले तब शुरू हुए जब विहिप की ब्रजमंडल यात्रा, जो पिछले तीन साल से नूंह से गुजर रही थी, को इस साल नूंह के खेड़ला मोड़ पर एक भीड़ ने रोक दिया और उस पर पत्थरों से हमला किया।
पृष्ठभूमि
- दिल्ली उच्च न्यायालय महिला वकील फोरम (Delhi High Court Women Lawyers Forum (WLF) ने अपने पत्र में दलील दी कि राज्य को घृणास्पद भाषण की घटनाओं पर अंकुश लगाने के निर्देश दिये जाने चाहिये क्योंकि सोशल मीडिया पर घृणास्पद भाषण वाले वीडियो सामने आये हैं।
- आगे यह भी कहा गया कि प्रसारित वीडियो जो किसी समुदाय/पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाने, क्षति पहुंचाने की धमकी देने या किसी समुदाय के आर्थिक बहिष्कार का आग्रह करने से संबंधित हैं, उन्हें ट्रैक किया जाना चाहिये और प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
- इस पत्र याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने नूंह हिंसा के बाद राज्य के अधिकारियों द्वारा किये गये विध्वंस का स्वत: संज्ञान कैसे लिया और न्यायालय के इस दृष्टिकोण ने कानून के शासन में नागरिकों का विश्वास पैदा करने में काफी मदद की है।
- पत्र याचिका निम्नलिखित घोषणाओं पर आधारित थी:
- तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ और अन्य (2018) के मामले में, उच्चतम ने माना था कि कड़े उपायों के माध्यम से भीड़ की सतर्कता और भीड़ की हिंसा पर अंकुश लगाना संबंधित सरकारों की जिम्मेदारी है।
- इसके अलावा, शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ (2023) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि समुदायों के बीच सद्भाव होना चाहिये और नूंह में हाल की सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिम समुदाय का बहिष्कार करने का आह्वान "अस्वीकार्य" था।
- दिल्ली उच्च न्यायालय महिला वकील फोरम (Delhi High Court Women Lawyers Forum (WLF) द्वारा यह आग्रह किया गया था कि राज्य सरकार को निम्नलिखित निर्देश जारी किये जाएं:
- हरियाणा राज्य में सभी धर्मों के नागरिकों के लिये सम्मान और स्वतंत्रता के माहौल को बढ़ावा देना और सांप्रदायिक सद्भाव के कार्यों के लिये समावेशन और पुरस्कारों को उजागर करने वाले कार्यक्रमों की घोषणा करके समुदायों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देना;
- घृणास्पद भाषण की घटनाओं को रोकने के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार कदम उठाना;
- उन वीडियो को ट्रैक करना और प्रतिबंधित करना जो किसी समुदाय/पूजा स्थलों को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते हैं या किसी समुदाय के आर्थिक बहिष्कार का आग्रह करते हैं;
- घृणास्पद भाषण के कृत्यों के लिये जिम्मेदार पाए गये व्यक्तियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई करना।
घृणास्पद भाषण
- संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार आम बोलचाल की भाषा में "घृणास्पद भाषण" का तात्पर्य किसी समूह, या किसी व्यक्ति को अंतर्निहित विशेषताओं (जैसे जाति, धर्म या लिंग) के आधार पर लक्षित करने वाले आक्रामक भाषण या बोल से है और जो सामाजिक शांति के लिये खतरा हो सकता है।
- राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, नफरत फैलाने वाले भाषण को बढ़ावा देने के लिये दर्ज किये गये मामलों में भारी वृद्धि हुई है क्योंकि इस सिलसिले में 2014 में केवल 323 मामले दर्ज किये गये थे, जो 2020 में बढ़कर 1,804 मामले हो गये हैं।
- भारत में किसी भी कानून में नफरत फैलाने वाले भाषण को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँकि, धारा 295A, 153A, 505 आदि भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) उन भाषणों या शब्दों से संबंधित है जो शरारत/नफ़रत पैदा कर सकते हैं या राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 नाम का विधेयक जो हाल ही में संसद में पेश किया गया है, धारा 297 के तहत नफरत फैलाने वाले भाषण से संबंधित है, अगर इसे संसद की मंजूरी मिल जाती है तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 295A को प्रतिस्थापित करेगा।
- धारा 297 - जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के ठिमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासाँ का अपमान उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयल्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति कै कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
निर्णय विधि
उच्चतम न्यायालय ने बार-बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया है और ऑनलाइन भाषण के मामले पर फैसले दिये हैं, जिनमें से कुछ पर नीचे चर्चा की गई है:
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015):
- न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 66A को रद्द कर दिया, जिसमें ऑनलाइन भाषण को अपराध घोषित किया गया था, यह कहते हुए कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- सुकुमार बनाम तमिलनाडु राज्य (2019):
- न्यायालय ने माना कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नफरत फैलाने वाला भाषण भारत के संविधान (COI), 1950 के तहत प्रदत्त वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार द्वारा संरक्षित नहीं है।
घृणास्पद भाषण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provision Related to Hate Speech)
संविधान का अनुच्छेद 19(1)(A) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ उचित प्रतिबंधों से संबंधित है जो अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 19 - बोलने की स्वतंत्रता आदि से संबंधित कुछ अधिकारों का संरक्षण
(1) सभी नागरिकों को अधिकार होगा-
(a) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये।
अनुच्छेद 19 (2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता], राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत घृणास्पद भाषण (Constitutional Provision Related to Hate Speech)
भारतीय दंड संहिता में मुख्य रूप से धारा 153A, 295A, 505 आदि के तहत नफरत फैलाने वाले भाषण के प्रावधान शामिल हैं। उनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया गया है:
भारतीय दंड संहिता की धारा 153क के अनुसार,
जो कोई--
(क) बोले गए या लिखे गए शब्दों या संकेतों या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय या भाषायी या प्रादेशिक समूहों, जातियों या समुदायों के बीच असौहार्द्र अथवा शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर संप्रवर्तित करेगा या संप्रवर्तित करने का प्रयत्न करेगा, अथवा
(ख) कोई ऐसा कार्य करेगा, जो विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है और जो लोक-शान्ति में विघ्न डालता है या जिससे उसमें विघ्न पड़ना सम्भाव्य हो, अथवा
(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आन्दोलन, कवायद या अन्य वैसा ही क्रियाकलाप इस आशय से संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किये जाएंगे या यह सम्भाव्य जानते हुए संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किये जाएंगे अथवा ऐसे क्रियाकलाप में इस आशय से भाग लेगा कि किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए भाग लेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षित किये जाएंगे और ऐसे क्रियाकलाप से ऐसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्यों के बीच, चाहे किसी भी कारण से, भय या संत्रास या असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है या उत्पन्न होनी सम्भाव्य है, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
पूजा के स्थान आदि में किया गया अपराध - जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
- धारा 505 - भारतीय दंड संहिता की धारा 505 के अनुसार, जो भी कोई किसी कथन, जनश्रुति या सूचना -
(क) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, भारत की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक विद्रोह करे या अन्यथा वह उस नाते, अपने कर्तव्य की अवहेलना करे या उसके पालन में असफल रहे, अथवा
(ख) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, सामान्य जन या जनता के किसी भाग को ऐसा भय या संत्रास कारित हो जिससे कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध या सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध करने के लिये उत्प्रेरित हो, अथवा
(ग) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, उससे व्यक्तियों का कोई वर्ग या समुदाय किसी दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिये उकसाया जाए, को रचेगा, प्रकाशित या परिचालित करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
विभिन्न वर्गों में शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य पैदा या सम्प्रवर्तित करने वाले कथन - जो भी कोई जनश्रुति या संत्रासकारी समाचार अन्तर्विष्ट करने वाले किसी कथन या सूचना, इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर पैदा या संप्रवर्तित हो, को रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
पूजा के स्थान आदि में किया गया उपधारा (2) के अधीन अपराध - जो भी कोई उपधारा (2) में निर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान पर या किसी जनसमूह में, जो धार्मिक पूजा या कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास, जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
अपवाद--ऐसा कोई कथन, जनश्रुति या सूचना इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध की कोटि में नहीं आती, जब उसे रचने, प्रकाशित करने या परिचालित करने वाले व्यक्ति के पास इस विश्वास के लिये यथोचित आधार हो कि ऐसा कथन, जनश्रुति या सूचना सत्य है और वह उसे सद्भावपूर्वक तथा पूर्वोक्त जैसे किसी आशय के बिना रचता, प्रकाशित करता या परिचालित करता है।